झारखंड:विपक्षी गठबंधन की राह आसान नहीं, तालमेल में हैं कई पेंच

सभी कुछ सकारात्मक अंदाज में आगे बढ़ रहा है, इस कारण आगामी 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में महागठबंधन बन जाने की उम्मीद प्रबल है लेकिन…

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(पत्रिका ब्यूरो,रांची): झारखंड में वर्ष 2019 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने गठबंधन की घोषणा जरूर कर दी है, लेकिन यह गठबंधन सिर्फ झामुमो-कांग्रेस के बीच रहेगा या फिर भाजपा के खिलाफ महागठबंधन तैयार कर झारखंड विकास मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल और अन्य वामपंथी दलों को इसमें शामिल किया जाएगा, इस पर अभी सस्पेंस कायम है। हालांकि सभी प्रमुख विपक्षी दलों के नेता महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने का संकेत दे रहे है, लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर कई तरह की अड़चन से इंकार नहीं किया जा सकता है।


पूर्व में भी हुई गठबंधन पर चर्चा पर नहीं बनी बात

वर्ष 2014 में भी झामुमो ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन सीट शेयरिंग के विवाद को लेकर पार्टी ने सभी विधानसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार उतार दिया था, वहीं कांग्रेस और झारखंड विकास मोर्चा पहले भी मिलकर चुनाव लड़ चुके है और इस बार भी कांग्रेस-झाविमो के नेता आपस में मिलकर चुनाव लड़ने की इच्छा जता रहे है। लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने नई दिल्ली में पार्टी प्रभारी आरपीएन सिंह की मौजूदगी में सिर्फ झामुमो के साथ मिलकर आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया।


यूं हो सकता है चुनाव में सीटों का बटवारा

इसके तहत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी, वहीं विधानसभा चुनाव में झामुमो अधिक सीटों पर उम्मीदवार मैदान में उतारेगा। लेकिन पार्टी के अंदर ही जब सुबोधकांत सहाय, रामेश्वर उरांव समेत अन्य नेताओं ने सवाल उठाये, तो फिर कांग्रेस की ओर से स्पष्ट किया गया कि गठबंधन में झाविमो , राजद और अन्य दलों को भी शमिल किया जाएगा। लेकिन अब तक इन दलों के नेताओं के बीच कोई औपचारिक बैठक नहीं हुई है, हालांकि ये नेता लगातार आपस में मिल-जुल रहे है और चुनाव की रणनीति पर भी चर्चा कर रहे है। लेकिन अब तक इनकी ओर से कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गयी है।

 

स्थिति के आंकलन में जुटे राजनीतिक दल

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है सभी प्रमुख विपक्षी दल अपनी स्थिति का आकलन कर रहे है और यह मान रहे है कि यदि वे अकेले चुनाव मैदान में उतरते है, तो गैर भाजपा मतों के विभाजन के कारण भाजपा को हराना मुश्किल होगा, इसलिए ये दल के नेता भी आपस में मिलकर सैद्धांतिक रूप से सहमत है। चुनाव निकट आने के बाद ये सभी दल सीटों के विवाद को भी सुलझाने में सफल होगा। यही कारण है कि झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी की ओर प्रत्यक्ष रूप से कोडरमा लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ ही दिल्ली की राजनीति करने का संकेत दिया जा चुका है, वहीं कांग्रेस भी यह घोषणा कर चुकी है कि वह राज्य में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चुनाव लड़ने को तैयार है।


बातचीत से अडचने खत्म करने के चल रहे प्रयास

इसके अलावा राजद और अन्य वामपंथी दलों की ओर से भी विधानसभा चुनाव में इतनी अधिक सीट की मांग नहीं की जा रही है,जिससे तालमेल ही खतरे में पड़ जाए। सभी कुछ सकारात्मक अंदाज में आगे बढ़ रहा है, इस कारण आगामी 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में महागठबंधन बन जाने की उम्मीद प्रबल है, लेकिन अब भी इसमें कई पेंच है, जिसे सहयोगी दल के नेताओं ने बातचीत के माध्यम से सुलझाने की कोशिश शुरू कर दी है।

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