अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ सकती है मौत की सजा, अजमल कसाब की फांसी पर खर्च हुए थे 48 करोड़

कैबिनेट में ‘प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस’ यानी POCSO एक्ट में संशोधन पर भी मुहर लग गई।

नई दिल्ली। केंद्रीय कैबिनेट ने शनिवार को नाबालिग से रेप के मामलों मौत की सजा के प्रावधान गर मुहर लगा दी। इसके लिए कैबिनेट में ‘प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस’ यानी POCSO एक्ट में संशोधन पर भी मुहर लग गई। इस संशोधन के बाद 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप के मामलों में आरोपियों को फांसी की सजा देने का रास्ता साफ हो जाएगा। नाबालिग से रेप के मामलों में आरोपियों को फांसी देने की सजा करने की मांग पूरे देश में काफी समय से उठ रही थी, लेकिन जम्मू कश्मीर के कठुआ में एक मंदिर में आठ साल की बच्ची के साथ गैंगरेप की घटना सामने आने के बाद इस मांग ने जाेर पकड़ लिया था। इस कानून के बन जाने के बाद गैंगरेप जैसे घिनौने कृत्य करने वालों के मन में खौफ जरुर पैदा होगा लेकिन सरकार का यह फैसला देश की अर्थव्यवस्था पर भी भारी पड़ सकता है। दरअसल किसी भी अपराधी को फांसी के फंदे पर लटकाने के लिए सरकार को भारी रकम खर्च करनी पड़ती है। यदि अपराधी कोई हाईप्रोफाइल व्यक्ति होता है तो यह खर्च अधिक बढ़ जाता है। कई मामलों में केस के लंबा चलने पर इस खर्च में और बढ़ोत्तरी की संभावना रहती है।
कसाब को फांसी देने में खर्च हुए थे 48 करोड़ से ज्यादा

मुंबई के 26/11 हमले में एकमात्र जिंदा पकड़े गए आरोपी अजमल कसाब को फांसी के फंदे तक पहुंचाने के लिए सरकार को करीब 48 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े थे। सरकारी सूत्रों के अनुसार अजमल कसाब पर सरकार ने रोजाना करीब 3.5 लाख करोड़ रुपए खर्च किए थे। इसमें कसाब का खाना, सुरक्षा और वकील का खर्च शामिल था। कसाब को 27नवंबर 2008 को पकड़ा गया था और उसे 21 नवंबर 2012 को फांसी दी गई थी। यदि इस अवधि के खर्च को 3.5 लाख रुपए रोजाना के हिसाब से जोड़ा जाए तो यह राशि 48 करोड़ से ज्यादा बैठती है। एेसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि नाबालिगों से रेप के मामलों में फांसी की सजा का प्रावधान देश की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ सकता है।
दुनियाभर में 18,750 कैदियों को मौत का इंतजार

2013 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक उस समय दुनियाभर की जेलों में करीब 18,750 अपनी सजा-ए-मौत की इंतजार कर रहे थे। इस रिपोर्ट के मुताबिक अमरीका में मौत की सजा पाए एक आरोपी को फांसी पर लटकाने तक औसतन दो दशक का समय लगता है। जापान में यह समय एक दशक है। हालांकि दुनियाभर में सबसे ज्यादा मौैत की सजा देने के लिए मशहूर पड़ोसी देश चीन में 3-4 महीनों में ही मामले को निपटाकर फांसी की सजा दे दी जाती है। लेकिन भारत में इसके लिए कोई निश्चित समय तय नहीं है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आजादी से 1991 तक 52 व्यक्तियों को फांसी की सजा दी गई है। रिपोर्ट की मानें तो 1995 से अब तक देश में केवल पांच आरोपियों को फांसी की सजा दी गई है। भारत में आखिरी बार 1993 के मुंबई बम ब्लास्ट के आरोपी याकूब मेनन को 30 जुलाई 2015 को फांसी की सजा दी गई थी।
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