Dev Deepawali 2020 : देव दीपावली पर इन बातों का रखें खास ख्याल, सभी इच्छाएं होंगी पूरी

सभी देवता स्वर्ग से उतरकर बनारस के घाटों पर दीपों का उत्सव मनाते हैं…

<p>Take special care of these things on Dev Diwali</p>

सनातन हिंदू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक पांच दिवसीय पर्व दीपावली के प्रमुख त्योहार यानि दीपावली के तीसरे दिन दिवाली के 16वें दिन देव दिवाली/दीपवली मनाई जाती है। मान्यता के अनुसार इस दिन देवता भी धरती पर उतरकर दिवाली पर्व मनाते हैं, इसी कारण इसे देव दिवाली / देव दीपावली Dev Deepawali कहा जाता है।

एक ओर जहां कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी यानि नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहते हैं, वहीं इसके बाद अमावस्या को बड़ी दिवाली मनाई जाती हैं, जबकि पूर्णिमा को देव दिवाली / देव दीपावली Dev Deepawali , जिसे कई जगह बुढ़ी दिवाली भी कहते हैं, मनाते हैं। इस बार पूर्णिमा तिथि 29 नवम्बर 2020 को दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से शुरु होकर अगले दिन यानि 30 नवम्बर 2020 को दोपहर 02 बजकर 59 मिनट तक रहेगी।

ऐसे में देव दीपावली 2020 तिथि (Dev Deepawali 2020 Tithi) 29 नवंबर 2020 को मनाई जाएगी। वहीं देव दीपावली 2020 के शुभ मुहूर्त (Dev Deepawali 2020 Shubh Muhurat) के तहत प्रदोषकाल देव दीपावली मुहूर्त शाम 5 बजकर 08 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा से कुछ दिन पहले देवउठनी एकादशी पर नारायण अपने 4 महीने की निद्रा से जागते हैं। जिसकी खुशी में सभी देवता स्वर्ग से उतरकर बनारस के घाटों पर दीपों का उत्सव मनाते हैं।

इसके अलावा एक अन्य मान्यता के अनुसार कि इस दिन भगवान शंकर ने त्रिपुर नाम के असुर का वध करके उसके दुष्टों से काशी को मुक्त कराया था। जिसके बाद देवताओं ने इसी कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने सेनापति कार्तिकेय के साथ भगवान शंकर की महाआरती की और इस पावन नगरी को दीप मालाओं कर सजाया था।

देवताओं का महापर्व : Mahaparva of gods
इसके बाद देवताओं ने इसी कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने सेनापति कार्तिकेय के साथ भगवान शंकर की महाआरती की और इस पावन नगरी को दीप मालाओं कर सजाया था। परंपराओं और संस्कृतियों से रची-बसी काशी की देश दुनिया में पहचान बाबा विश्वनाथ, गंगा और उसके पावन घाटों से है। श्रावण में शिवपूजन और गंगा तीरे होने वाली शाम की आरती के बाद यदि कोई पर्व लोगों को इस शहर की ओर आकर्षित करता है तो वह देव दीपावली ही है, जिसे देवताओं का महापर्व भी माना जाता है।

ऐसे में कार्तिक पूर्णिमा यानि देव दीवाली हिंदुओं का वह त्योहार है जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के वाराणसी मे मनाया जाता है। यह विश्व के सबसे प्राचीन शहर काशी की संस्कृति एवं परम्परा है, यह पर्व दीपावली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन गंगा नदी की पूजा की जाती है और लाखों दीए जलाए जाते हैं। देवदिवाली की परम्परा की शुरुआत सबसे पहले पंचगंगा घाट 1915 मे हजारों दिये जलाकर की गयी थी।

ऐसे में आज हम आपको 05 ऐसे कार्य बता रहे हैं, जिन्हें देव दीपावली के दिन करना शुभ माना जाता है।

1. नदी में स्नान- कार्तिक के पूरे माह में पवित्र नदी में स्नान करने का प्रचलन और महत्व रहा है। इस मास में श्री हरि जल में ही निवास करते हैं। माना जाता है कि कार्तिक मास में इंद्रियों पर संयम रखकर चांद-तारों की मौजूदगी में सूर्योदय से पूर्व ही पुण्य प्राप्ति के लिए स्नान नित्य करना चाहिए। पूर्णिमा के दिन स्नान करना अति उत्तम माना गया है।

2. तुलसी पूजा – इस दिन में शालिग्राम के साथ ही तुलसी की पूजा, सेवन और सेवा करने का बहुत ही ज्यादा महत्व है। इस कार्तिक माह में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है।

3. पूर्णिमा का व्रत – इस दिन व्रत का भी बहुत ही महत्व है। इस दिन उपवास करके भगवान का स्मरण, चिंतन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। कार्तिकी पूर्णिमा से शुरु होकर प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

4. दीपदान – देव दीपावली के दिन सभी देवता गंगा नदी के घाट पर आकर दीप जलाते हैं। इसलिए इस दिन नदी, तालाब आदि जगहों पर दीपदान जरूर करें।

5. दान- इस दिन में दान का भी बहुत ही ज्यदा महत्व होता है। अपनी क्षमता अनुसार अन्न दान, वस्त्र दान और अन्य जो भी दान कर सकते हो वह करें।


देव दीपावली पूजा विधि (Dev Deepawali Puja Vidhi)

1. देव दीपावली के दिन साधक को गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए और स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।

2. इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। लेकिन इनकी पूजा से पहले भगवान गणेश की विधिवत पूजा अवश्य करें।

3.भगवान शिव को इस दिन पूजा में पुष्प, घी, नैवेद्य, बेलपत्र अर्पित करें और भगवान विष्णु को पूजा में पीले फूल, नैवेद्य, पीले वस्त्र, पीली मिठाई अर्पित करें।

4. इसके बाद भगवान शिव और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें और देव दीपावली की कथा सुनें।कथा सुनने के बाद भगवान गणेश, भगवान शिव और भगवान विष्णु की धूप व दीप से आरती उतारें।

5.अंत में भगवान शिव और भगवान विष्णु को मिठाई का भोग लगाएं और शा्म के समय गंगा घाट पर दीपक जलाएं। यदि आप ऐसा नहीं कर सकते तो अपने घर के मुख्य द्वार पर तो दीपक अवश्य जलाएं।

धार्मिक मान्यता है कि इस दिन सभी देवता काशी में खुशियां मनाने आते हैं। इसलिए पूरी काशी को रोशनी से सजाया जाता है। बनारस के घाटों को दीपों से जगमगाया जाता है।

: पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के कुछ दिन पहले देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु 4 महीने की निद्रा से जागते हैं। जिसकी खुशी में सभी देवता स्वर्ग से उतरकर बनारस के घाटों पर दीपों का उत्सव मनाते हैं।

: ऐसी एक अन्य मान्यता है कि दीपावली पर माता लक्ष्मी अपने प्रभु भगवान विष्णु से पहले जाग जाती हैं, इसलिए दीपावली के 15वें दिन कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवताओं की दीपावली मनाई जाती है।

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