जानकारों के अनुसार पापमोचनी एकादशी ( Papmochani Ekadashi ) का अर्थ ही है पाप को नष्ट करने वाली एकादशी। इस दिन विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। साथ ही किसी की निंदा करने और झूठ बोलने से बचना चाहिए। इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, स्वर्ण चोरी, मदिरापान, अहिंसा और भ्रूणघात समेत अनेक घोर पापों के दोष से मुक्ति मिलती है।
Papmochani Ekadashi shubh timing : शुभ मुहूर्त…
एकादशी तिथि आरंभ- 07 अप्रैल 2021 प्रातः तड़के 02 बजकर 09 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 08 अप्रैल 2021 प्रातः 02 बजकर 28 मिनट पर
पापमोचनी एकादशी पारणा मुहूर्त :13:39:14 से 16:10:59 तक 8, अप्रैल तक
अवधि : 2 घंटे 31 मिनट
हरि वासर समाप्त होने का समय :08:42:30 पर 8, अप्रैल को
Papmochani Ekadashi Vrat Katha : पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा…
व्रत ( Papmochani Ekadashi vrat ) की कथा के अनुसार एक बार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि घोर तपस्या में लीन थे। उनकी तपस्या से इंद्र भी घबरा गए। लिहाजा तपस्या भंग करने के लिए इंद्र ने मंजुघोषा नाम की एक अप्सरा को उनके समीप भेजा। उसने अपने नृत्य, गायन और सौंदर्य से मेधावी मुनि का ध्यान भंग कर दिया और मुनि मेधावी मंजूघोषा अप्सरा पर मोहित हो गए। इसके बाद वे उसी अप्सरा के साथ रहने लगे। बहुत समय बीत जाने के पश्चचात मंजूघोषा ने वापस जाने के लिए अनुमति मांगी, तब मेधावी ऋषि को अपनी भूल और तपस्या भंग होने का आत्मज्ञान हुआ जिससे वे क्रोधित हो गए।
उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचिनी बनने का श्राप दिया। इसके बाद अप्सरा ऋषि के पैरों में गिर गई और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। मंजूघोषा के बार-बार विनती करने पर मेधावी ऋषि ने उसे श्राप से मुक्ति पाने के लिए बताया कि पापमोचनी एकादशी ( Papmochani Ekadashi ) का व्रत करने से तुम्हारे समस्त पापों का नाश हो जाएगा और तुम पुन:अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी।
अप्सरा को मुक्ति का मार्ग बताकर मेधावी ऋषि अपने पिता के महर्षि च्यवन के पास पहुंचे। श्राप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा कि- ”हे पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया, ऐसा कर तुमने भी पाप कमाया है, इसलिए तुम भी पापमोचनी एकादशी ( Papmochani Ekadashi ) का व्रत करो।” इस प्रकार पापमोचनी एकादशी ( Papmochani Ekadashi ) का व्रत करके अप्सरा मंजूघोषा को श्राप से मुक्ति मिल गई और मेधावी ऋषि के भी सभी पापों से मुक्ति प्राप्त हो गई।
Papmochani Ekadashi Vrat Vidhan : इस व्रत का विधान…
: एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें।
: पूजा स्थल पर पीले कुशा आसन पर बैठकर घी का दीपक जलाकर भगवान विष्णु की प्रार्थना करें। कथा करें, हवन भी कर सकते हैं।
: भगवान श्री विष्णु जी के चतुर्भुज रूप का षोडशोपचार पूजा विधान सहित धुप, दीप, चंदन, ऋतुफल एवं नैवैद्य का भोग लगाएं ।
: पूजन के बाद मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।।) का कम से कम 108, 501 या फिर 1100 बार जप करें ।
: इस दिन न तो किसी की निंदा न करें और न ही झूठ न बोलें, साथ ही किसी का दिल भी न दुखाएं।
: इस दिन नमक व शक्कर से बने पदार्थों का सेवन बिलकुल भी न करें । संभव हो तो दोनों समय निराहर ही रहे, सादे पानी में नींबू मिलाकर पी सकते हैं ।
: व्रत को अगले दिन द्वादशी तिथि में पारण के बाद ही खोलें।
: स्वयं भोजन करने से पहले किसी ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देकर व्रत खोलने से व्रत पूर्ण माना जाता हैं ।