त्योहार

मासिक दुर्गाष्टमी 2021: जानें व्रत, पूजा विधि, मुहूर्त-तिथियां, महत्व, कथा और आरती

शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हिंदी कैलेंडर के अनुसार…

भोपालFeb 21, 2021 / 11:35 am

दीपेश तिवारी

Monthly Durgashtami 2021: know every thing about Durga Ashtami

हर माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हिंदी कैलेंडर के अनुसार मासिक दुर्गा अष्टमी मनाई जाती है। जिसे दुर्गाष्टमी और मास दुर्गाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के समय पड़ने वाली दुर्गाष्टमी को महाष्टमी कहते हैं, इसके अलावा हर माह भी दुर्गा अष्टमी पर मां दुर्गा का पूजन और व्रत किया जाता है। कई जानकारों के अनुसार हर माह पड़ने वाली मासिक दुर्गाष्टमी का महत्व बहुत ज्यादा होता है।

इस दिन भक्त दुर्गा मां दुर्गा की उपासना करते हैं, व्रत करते हैं साथ ही पूजा-पाठ भी करते हैं। इसके अलावा इस दिन मां की आरती और भजन भी किए जाते हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन दुर्गा मंत्रों का जाप करने से घर में सुख- समृद्धि आती है। तो आइए आज जानते हैं मासिक दुर्गाष्टमी की तिथि, मासिक दुर्गाष्टमी शुभ मुहूर्त, मासिक दुर्गाष्टमी पूजा विधि और मासिक दुर्गाष्टमी का महत्व, मासिक दुर्गाष्टमी की कथा, मासिक दुर्गाष्टमी आरती-


1. इस दिन प्रातः उठकर दैनिक क्रिया से निवृत्त होने के बाद स्नान कर लाल रंग के साफ-सुथरे कपड़े पहनें व तांबे के पात्र में लाल रंग का तिलक लगाकर सूर्य देवता को अर्ध्य दें।
2. घर की साफ-सफाई करके पूजा स्थान और घर में गंगाजल छिड़कें।
3. लकड़ी का एक साफ पाटा या चौकी लेकर उसपर लाल वस्त्र बिछाएं।
4. चौकी को गंगाजल से शुद्ध करें और माँ दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें।
5. मां की मूर्ति पर लाल रंग का पुष्प चढ़ाकर धूप और दीप जलाना चाहिए, इसके साथ ही मां को 16 श्रृंगार का सामान भी चढ़ाएं।

6. फल और मिठाई अर्पित करने के बाद माां दुर्गा की आरती उतारें।
7.इसके बाद मां दुर्गा की ज्योति जलाकर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय दुर्गा सप्तसती का पाठ करना चाहिए, इस दिन दुर्गा चलीसा का पाठ भी कर सकते हैं।
8.सप्तसती का पाठ करने के बाद ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चै’ का जाप करना चाहिए।
9. फिर मां को चढ़ाए गए 16 श्रृंगार का सामान किसी सुहागन या नवदुर्गा के मंदिर में दे देना चाहिए, मान्यता है कि ऐसा करने से घर की रूठी हुई खुशियां दोबारा वापस आने लगती हैं।

मासिक दुर्गाष्टमी पूजा के समय इस बातों का रखें ध्यान…
1. घर में सुख और समृद्धि के लिए मां की ज्योति आग्नेय कोण में जलाना चाहिए।
2. पूजा करने वाले का मुख पूजा के समय पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए।
3. पूजा के समय पूजा का सामान दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना चाहिए।
4. इस दिन कभी न करें ये गलतियां: मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि पूजा में तुलसी, आंवला, दूर्वा, मदार और आक के पुष्प का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
5. घर में कभी एक से अधिक मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो नहीं रखना चाहिए।

मासिक दुर्गाष्टमी 2021 तिथियां : Masik Durga Ashtami 2021 Date…
जनवरी 21, 2021, बृहस्पतिवार – पौष, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ – 01:14 PM, जनवरी 20
समाप्त – 03:50 PM, जनवरी 21
फरवरी 20, 2021, शनिवार – माघ, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ – 10:58 AM, फरवरी 19
समाप्त – 01:31 PM, फरवरी 20
मार्च 22, 2021, सोमवार – फाल्गुन, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ – 07:09 AM, मार्च 21
समाप्त – 09:00 AM, मार्च 22
अप्रैल 20, 2021, मंगलवार – चैत्र, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ – 12:01 AM, अप्रैल 20
समाप्त – 12:43 AM, अप्रैल 21
>मई 20, 2021, बृहस्पतिवार – वैशाख, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ – 12:50 PM, मई 19
समाप्त – 12:23 PM, मई 20
जून 18, 2021, शुक्रवार – ज्येष्ठ, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ – 09:59 PM, जून 17
समाप्त – 08:39 PM, जून 18
जुलाई 17, 2021, शनिवार – आषाढ़, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ – 04:34 AM, जुलाई 17
समाप्त – 02:41 AM, जुलाई 18
अगस्त 15, 2021, रविवार – श्रावण, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ – 09:51 AM, अगस्त 15
समाप्त – 07:45 AM, अगस्त 16
सितम्बर 14, 2021, मंगलवार – भाद्रपद, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ – 03:10 PM, सितम्बर 13
समाप्त – 01:09 PM, सितम्बर 14
अक्टूबर 13, 2021, बुधवार – आश्विन, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ – 09:47 PM, अक्टूबर 12
समाप्त – 08:07 PM, अक्टूबर 13
नवम्बर 11, 2021, बृहस्पतिवार – कार्तिक, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ – 06:49 AM, नवम्बर 11
समाप्त – 05:51 AM, नवम्बर 12
दिसम्बर 11, 2021, शनिवार – मार्गशीर्ष, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ – 07:09 PM, दिसम्बर 10
समाप्त – 07:12 PM, दिसम्बर 11

दुर्गा अष्टमी व्रत का महत्व ; Masik Durga Mahatva
मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि की दुर्गाअष्टमी तो बहुत महत्व रखती ही है इसके अलावा मासिक दुर्गाष्टमी हर माह में पड़ने वाला ऐसा दिन होता है, जब भक्त शक्ति की अराधना कर उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। मासिक दुर्गाष्टमी के दिन, देवी दुर्गा के भक्त उनकी पूजा करते हैं, साथ ही पूरे दिन उपवास भी करते हैं। जो भक्त प्रत्येक मासिक दुर्गाअष्टमी को व्रत और पूजन करते हैं, मां आदिशक्ति जगदंबे उनके सारे कष्टों का हरण कर लेती है। उन्हें स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और खुशहाली की प्राप्ति होती है।

दुर्गाष्टमी की कथा (मासिक दुर्गाष्टमी कथा) : Masik Durga Ashtami Katha
पौराणिक मान्यताओं अनुसार, प्राचीन काल में असुर दंभ को महिषासुर नाम के एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी, जिसके भीतर बचपन से ही अमर होने की प्रबल इच्छा थीं। अपनी इसी इच्छा की पूर्ति के लिए उसने अमर होने का वरदान हासिल करने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या आरंभ की। महिषासुर द्वारा की गई इस कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न भी हुए और उन्होंने वैसा ही किया जैसा महिषासुर चाहता था। ब्रह्मा जी ने खुश होकर उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा, ऐसे में महिषासुर, जो सिर्फ अमर होना चाहता था, उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगते हुए खुद को अमर करने के लिए उन्हें बाध्य कर दिया।

परन्तु ब्रह्मा जी ने महिषासुर को अमरता का वरदान देने की बात ये कहते हुए टाल दी कि जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म निश्चित है, इसलिए अमरता जैसी किसी बात का कोई अस्तित्व नहीं है। जिसके बाद ब्रह्मा जी की बात सुनकर महिषासुर ने उनसे एक अन्य वरदान मानने की इच्छा जताते हुए कहा कि ठीक है स्वामी, यदि मृत्यु होना तय है तो मुझे ऐसा वरदान दे दीजिये कि मेरी मृत्यु किसी स्त्री के हाथ से ही हो, इसके अलावा अन्य कोई दैत्य, मानव या देवता, कोई भी मेरा वध ना कर पाए।

जिसके बाद ब्रह्मा जी ने महिषासुर को दूसरा वरदान दे दिया। ब्रह्मा जी द्वारा वरदान प्राप्त करते ही महिषासुर अहंकार से अंधा हो गया और इसके साथ ही बढ़ गया उसका अन्याय। मौत के भय से मुक्त होकर उसने अपनी सेना के साथ पृथ्वी लोक पर आक्रमण कर दिया, जिससे धरती चारों तरफ से त्राहिमाम-त्राहिमाम होने लगी। उसके बल के आगे समस्त जीवों और प्राणियों को नतमस्तक होना ही पड़ा। जिसके बाद पृथ्वी और पाताल को अपने अधीन करने के बाद अहंकारी महिषासुर ने इन्द्रलोक पर भी आक्रमण कर दिया, जिसमें उन्होंने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर भी कब्ज़ा कर लिया।

महिषासुर से परेशान होकर सभी देवी-देवता त्रिदेवों (महादेव, ब्रह्मा और विष्णु) के पास सहायता मांगने पहुंचे। इस पर विष्णु जी ने उसके अंत के लिए देवी शक्ति के निर्णाम की सलाह दी। जिसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर देवी शक्ति को सहायता के लिए पुकारा और इस पुकार को सुनकर सभी देवताओं के शरीर में से निकले तेज ने एक अत्यंत खूबसूरत सुंदरी का निर्माण किया। उसी तेज से निकली मां आदिशक्ति जिसके रूप और तेज से सभी देवता भी आश्चर्यचकित हो गए।

त्रिदेवों की मदद से निर्मित हुई देवी दुर्गा को हिमवान ने सवारी के लिए सिंह दिया और इसी प्रकार वहां मौजूद सभी देवताओं ने भी मां को अपने एक-एक अस्त्र-शस्त्र सौंपे और इस तरह स्वर्ग में देवी दुर्गा को इस समस्या हेतु तैयार किया गया। माना जाता है कि देवी का अत्यंत सुन्दर रूप देखकर महिषासुर उनके प्रति बहुत आकर्षित होने लगा और उसने अपने एक दूत के जरिए देवी के पास विवाह का प्रस्ताव तक पहुंचाया। अहंकारी महिषासुर की इस ओच्छी हरकत ने देवी भगवती को अत्याधिक क्रोधित कर दिया, जिसके बाद ही मां ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा।

मां दुर्गा से युद्ध की ललकार सुनकर ब्रह्मा जी से मिले वरदान के अहंकार में अंधा महिषासुर उनसें युद्ध करने के लिए तैयार भी हो गया। इस युद्ध में एक-एक करके महिषासुर की संपूर्ण सेना का मां दुर्गा ने सर्वनाश कर दिया। इस दौरान माना ये भी जाता है कि ये युद्ध पूरे नौ दिनों तक चला जिस दौरान असुरों के सम्राट महिषासुर ने विभिन्न रूप धककर देवी को छलने की कई बार कोशिश की, लेकिन उसकी सभी कोशिश आखिरकार नाकाम रही और देवी भगवती ने अपने चक्र से इस युद्ध में महिषासुर का सिर काटते हुए उसका वध कर दिया। अंत: इस तरह देवी भगवती के हाथों महिषासुर की मृत्यु संभव हो पाई।

माना जाता है कि जिस दिन मां भगवती ने स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक और पाताल लोक को महिषासुर के पापों से मुक्ति दिलाई उस दिन से ही दुर्गा अष्टमी का पर्व प्रारम्भ हुआ।

मां दुर्गा की आरती (मासिक दुर्गाष्टमी आरती) Masik Durga Ashtami Aarti…
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति,
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ..टेक..
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को,
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ..जय..
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै,
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ..जय..
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी,
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ..जय..
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती,
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ..जय..
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती,
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ..जय..
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू,
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ..जय..
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी,
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ..जय..
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती,
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ..जय..
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै,
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ..जय..

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