जयकारों के बीच रथ पर दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी सवार हुए
परिक्रमा से पहले दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी और बस्तर दशहरा समिति के पदाधिकारियों की मौजूदगी में देवी की पूजा आराधना कर मावली माता से आज्ञा ली गई। माता के जयकारों के बीच रथ पर दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी सवार हुए। पारंपरिक वाद्य यंत्रों के बीच पुलिस बल ने हर्ष फायर कर सलामी दी। इसके बाद शहर सहित आस-पास से आए श्रद्धालुओं ने रस्से से रथ को खींचना शुरू किया। यह रथ सिरहासार भवन में गोलबाजार, मिताली चौक होते हुए दंतेश्वरी मंदिर के सामने एक परिक्रमा होने के बाद खड़ा कर
दिया गया।
जहां पर मां दन्तेश्वरी का छत्र विराजीत होता है
दशहरा का रथ कुल 35 फीट उंचा और 13 फीट चौड़ा तथा 33 फीट लंबा होता है। फूलरथ में 4 फ ीट के चार चक्के लगते हैं। दो मंंजिले रथ का आधार मगरमुंही लकड़ी के उपर स्थित होता है। जिसके ऊपर 5 फारा लगाया जाता है। जिसे मसका फारा कहते हैं। उसके ऊपर कैचा, आड़बंध, खंजवा और ढेकरी लगाया जाता है। इस भाग की उंचाई लगभग 13 फीट होती है। इसके ऊपर पृथ्वी फारा लगाया जाता है। जिसके तीन FEET ऊपर डाबा बनाया जाता है। इसकी उंचाई 7 फ ीट होती है। रथ के सबसे ऊपरी भाग को गुड़ी कहा जाता है, जिसकी उंचाई लगभग 10 फ ीट होती है। जहां पर मां दन्तेश्वरी का छत्र विराजीत होता है
विधान के साथ रथ का निर्माण पूर्ण होता है
वहीं रथ निर्माण में लगभग एक क्विंटल लोहा लगने की बात रथ निर्माण करने वाले लोहार ने दी है। झारउमरगांव और बेड़ाउमरगांव रथ निर्माण करने वाले दल ने बताया कि सर्वप्रथम हरियाली आमावस्या के दिन ठुरलु खोटला की पूजा पाट जात्रा विधान के तहत की जाती है। इसके बाद रथ के चक्कों के निर्माण के दौरान नार फोडऩी, मगरमुही, पाटा चढ़ाई जैसे विधान के साथ रथ का निर्माण पूर्ण होता है।