ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है की आखिर क्यों हम बप्पा को अलविदा विसर्जन करते हैं। पूरे गणेश उत्सव के दौरान जहां बप्पा को तरह-तरह के भोग लगाए जाते हैं और वहीं गणेश उत्सव के आखिरी दिन यानि अनंत चतुर्दशी के दिन धूमधाम के साथ गणेश जी को जल में विसर्जित कर दिया जाता है, इस बार यानि साल 2020 में बप्पा को विसर्जित करने का दिन अनंत चतुर्दशी 1 सितंबर,मंगलवार को है।
विसर्जन का अर्थ व मुहूर्त
विसर्जन संस्कृत भाषा का शब्द है उसका अर्थ है पानी में विलीन होना और यह सम्मान-सूचक प्रकिया है। जब भी हम घर में किसी भगवान की मूर्ति की पूजा करते हैं और उसके बाद उनका विसर्जित करके उन्हें सम्मान दिया जाता है।
बप्पा को विसर्जन बिल्कुल वैसे ही होता है जैसे वो घर पर आते हैं। गाजे बाजे के साथ लोग गणपति को अपने घर पर लाते हैं उनकी पूजा करते हैं. ठीक उसी तरह बप्पा का विसर्जन भी धूमधाम से होता है।
गणेश जी का विसर्जन
गणेश का विसर्जन यह दिखाता है कि गणेश जी मिट्टी से जन्में है और बाद में इस शरीर को मिट्टी में ही मिलना है। गणेश जी की प्रतिमा मिट्टी से बनती है और पूजा के बाद वो मिट्टी में मिल जाती है।
अनंत चतुर्दशी व्रत…
इस वर्ष अनंत चतुर्दशी व्रत 1 सितम्बर 2020, मंगलवार के दिन मनाया जायेगा। इसके अलावा बात करें अगर इस दिन के शुभ मुहूर्त की तो…
अनंत चतुर्दशी शुभ मुहूर्त : 05:59:17 से 09:40:54 तक
अवधि : 3 घंटे 41 मिनट
गणपति विसर्जन की सही विधि और मुहूर्त…
प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – 09 बजकर 18 मिनट से 02 बजकर 01 मिनट
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) – 03 बजकर 35 मिनट से 05 बजकर 10 मिनट
सायाह्न मुहूर्त (लाभ) – 08बजकर 10 PM से 09 बजकर 35 मिनट
रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) – 11 बजकर 01 मिनट से 03 बजकर 18 मिनट सितम्बर 02
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 31, 2020 को 08 बजकर 48 मिनट
चतुर्दशी तिथि समाप्त – सितम्बर 01, 2020 को 09 बजकर 38 मिनट
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जल तत्व के आधिपति हैं गणपतिइसके अलावा भगवान गणेश को जल तत्व के अधिपति कहा जाता है, लेकिन मुख्या कारण तो उनके विसर्जन का यही है की अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणपति की पूजा अर्चना के बाद उन्हें वापस जल में विसर्जित कर देते हैं. यानि वो जहां के अधिपति हैं उन्हें वहां पर उन्हें पहुंचा दिया जाता है।
विसर्जन से मिलती है ये सीख
विसर्जन ये सिखाता है कि मनुष्य को अगला जन्म पाने के लिए इस जन्म को त्यागना पड़ेगा। गणेश जी की मूर्ति मिट्टी की बनती है, उसकी पूजा होती है लेकिन फिर उन्हें अगले साल आने के लिए इस साल विसर्जित होना पड़ता है।
इस प्रकार हमारा जीवन भी यही है और हमें अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना होगा और समय समाप्त होने पर अगले जन्म के लिए हमें इस जन्म को छोड़ना पड़ेगा।
वहीं श्री गणेश जी को मूर्ति रूप में आने के लिए मिट्टी का सहारा लेना पड़ता है, मिट्टी प्रकृति की देन होती है लेकिन जब गणेश जी पानी में विलीन होते हैं तो मिट्टी फिर प्रकृति में ही मिल जाती है। इससे हमें यह समझ में आता है कि, जो प्रकृति से लिया है उसे लौटाना ही पड़ेगा, खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जाना पड़ेगा।
मान्यता के अनुसार बिना विसर्जन बप्पा की पूजा पूरी नहीं होती है. ऐसे में विसर्जन करना बेहद जरुरी है, तो चलिए जानते हैं आखिर क्या है इसकी पीछे की कहानी…
पुराणों में कहा गया है की श्री वेद व्यास जी गणपति जी को गणेश चतुर्थी से महाभारत की कथा सुनानी शुरु की थी और गणपति से उसे लिख रहे थे। इस दौरान व्यास जी ने अपनी आंख बंद कर ली और लगातार दस दिनों तक कथा सुनाते गए और गणपति जी लिखते गए. दस दिन बाद जब व्यास जी ने अपनी आंखे खोली तो उस वक्त गणपति के शरीर का तापमान बेहद बढ़ गया था, जिस कारण व्यास जी ने गणेश जी के शरीर को ठंडा करने के लिए उन्हें जल में डुबई लगवाई जिसके बाद उनका शरीर शांत हो गया। तभी से मान्यता है कि गणेश जी को शीतल करने के लिए उनका विसर्जन करते हैं। इसके बाद व्यास जी ने 10 दिनों तक गणपति जी को उनके पसंद का भोजन कराया था, इसी मान्यता के अनुसार प्रभु की पूजा के बाद उनका विसर्जन किया जाता है।