नोटबंदी या नोटबदली ? कैशलेस इंडिया का सपना धराशायी, जानिए कयों

देश में करेंसी सर्कुलेशन 17.82 लाख करोड़ पहुंच गया है जबकि नोटबंदी से पहले ये आंकड़ा 17.97 लाख करोड़ था।

नई दिल्ली। केन्द्र सरकार द्वारा किए गए नोटबंदी को लगभग डेढ़ साल होने वाला है। लेकिन नोटबंदी के इतने दिन बाद खबर ये आ रही है कि जितना कैश मार्के ट में नोटबंदी के पहले था, उतना ही अब फिर से आ चुका है। ऐसे में केन्द्र सरकार के कैशलेस इंडिया के सपने को एक बड़ा झटका लगा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही जारी किए अपने एक आंकड़ में बतायाा है कि, मौजूद समय में भारत में करेंसी का कुल सर्कुलेशन लगभग 17.82 लाख करोड़ है। जबकि नोटबंदी से पहले ये आंकड़ा 17.97 लाख करोड़ था। इसका मतलब यह हुआ के नोटबंदी के बाद केन्द्र सरकार के कैशलेस इंडिया के सपने पर पानी फिरते हुए दिखाई दे रहा है। मार्केट में कैश 99.17 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया है। बता दें कि नोटबंदी के बाद देश में कैश सर्कुलेशन लगभग आधा हो गया था। सरकार ने सरकार ने देश के कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाना चाहती है।


कैशलेस इंडिया के लिए अभी भी कई चुनौती

नोटबंदी के बाद से देश को कैशलेस अर्थव्यवस्था में बदलना एक बहुत बड़ी चुनौती है। देश में डिजिटल ट्रांजैक्शन को लंबे समय तक चलाने के लिए जिस इंफ्रास्ट्रक्चर और अवेयरनेस की जरूरत है, वो अभी तक पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाया है। अभी भी देश में छोट लेनदेन के लिए पीओएस (पीओएस) मशीन क ा इस्तेमाल नहीं हो रहा है। वहीं मोबाइल वॉलेट का प्रयोग भी हर किसी के बस की बात नहीं है। अभी भी बहुत लोगों में इसको लेकर भरोसा नहीं है। इसको लेकर एक और चुनौती है, और वो ये कि मोबाइल वॉलेट के लिए बेहतर इंटरनेट कनेक्शन की उपलब्धता भी होनी चाहिए। इन चुनौती के चलते देश में कैशलेस सपना इतनी आसानी से पूरा नहीं किया जा सकता है।


कम हो रहा है डिजिटल ट्रांजैक्शन का चलन

इस पर विशेषज्ञों का मानना है कि, वर्ष 1950 के बाद से ही करेंसी इन सर्कुलेशन जीडीपी ग्रोथ के लगभग बराबर है। जिसके हिसाब से मौजूदा समय में करेंसी इन सर्कुलेशन 22 करोड़ के आसपास होनी चाहिए। लेकिन इसको लेकर सरकार का कहना है कि डिजिटलीकरण के वजह से देश में लेनदेन के लिए कैश का इस्तेमाल कम हुआ है। लेकिन देश में डिजिटल ट्रांजैक्शन कम हो रहे है जिसके वजह से कैश से पेमेंट का चलन एक बार फिर से बढ़ रहा है।


सरकार के दावों की खुली पोल

जानकारों की मानें तो नोटबंदी के पहले और बाद में कैश के स्तर पर बराबरी होना अर्थव्यवस्था को कई तरह के नुकसान के तरफ इशारा कर रहा है। लोग पहले ही 2000 रुपए के नोट बंद होने के अफवाह का शिकार हो चुके हैं। नोटबंदी के दौरान सरकार ने कैशलेस अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए कई तरह की दलील दी थी। मसलन आतंकवाद की फंडिंग कम होगा, कालेधन पर रोक लगेगा, देश में अवैध लेनदेन में कमी आएगी, अधिक से अधिक लोग टैक्स के दायरे में आएंगे। आज नोटबंदी के लगभग डेढ़ साल बाद कैशलेस अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार के सभी दावे कागजी साबित हो रहे हैं।

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