चिड़चिड़ापन
ऐसा कहा जाता है कि कई बार देर रात तक फोन का इस्तेमाल करने से नींद काफी प्रभावित हो जाती है। जिससे जितनी जरूरत होती है नींद की वो पूरी नहीं हो पाती। और अगर नींद पूरी नहीं होगी, तो जाहिर सी बात है कि दिमाग को आराम नहीं मिल पाएगा। यह वजह से इंसान चिड़चिड़ापन और झुंझलाहट बन जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि कई बार देर रात तक फोन का इस्तेमाल करने से नींद काफी प्रभावित हो जाती है। जिससे जितनी जरूरत होती है नींद की वो पूरी नहीं हो पाती। और अगर नींद पूरी नहीं होगी, तो जाहिर सी बात है कि दिमाग को आराम नहीं मिल पाएगा। यह वजह से इंसान चिड़चिड़ापन और झुंझलाहट बन जाता है।
मानसिक विकार
हमारे दिमाग के लिए पूरी नींद लेना बहुत आवश्यक होता है। अगर दिमाग को आराम नहीं मिलता है तो कई मानसिक विकारों को पैदा करने में कारगर है। इसके अलावा स्मार्ट फोन में उपलब्ध सामग्री भी हमारे दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। जिससे तनाव, उदासीनता और डिप्रेशन जैसी समस्याएं सामने आने लगती है।
हमारे दिमाग के लिए पूरी नींद लेना बहुत आवश्यक होता है। अगर दिमाग को आराम नहीं मिलता है तो कई मानसिक विकारों को पैदा करने में कारगर है। इसके अलावा स्मार्ट फोन में उपलब्ध सामग्री भी हमारे दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। जिससे तनाव, उदासीनता और डिप्रेशन जैसी समस्याएं सामने आने लगती है।
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अनिद्रा की समस्या
स्मार्टफोन ज्यादा इस्तेमाल होने पर आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसका अत्यधिक इस्तेमाल आपके लिए अनिद्रा की समस्या को पैदा हो सकती है। खास तौर पर रात को ज्यादा समय तक स्मार्टफोन का प्रयोग नींद नहीं आने की समस्या को पैदा करता है। अपने सही समय पर अगर नींद नहीं लिया जाए तो नींद पूरी होने में परेशानी होती है।
अनिद्रा की समस्या
स्मार्टफोन ज्यादा इस्तेमाल होने पर आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसका अत्यधिक इस्तेमाल आपके लिए अनिद्रा की समस्या को पैदा हो सकती है। खास तौर पर रात को ज्यादा समय तक स्मार्टफोन का प्रयोग नींद नहीं आने की समस्या को पैदा करता है। अपने सही समय पर अगर नींद नहीं लिया जाए तो नींद पूरी होने में परेशानी होती है।
आंखों की रौशनी
स्मार्टफोन की रंगीन और अधिक रोशनी वाले स्क्रीन व तकनीकें हमारी आंखों की रौशनी पर काफी बुरा प्रभाव छोड़ती है। इसकी आयरिश अत्यधिक होने और फॉन्ट साइज के कारण हमारे आंखों को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ सकता है।
स्मार्टफोन की रंगीन और अधिक रोशनी वाले स्क्रीन व तकनीकें हमारी आंखों की रौशनी पर काफी बुरा प्रभाव छोड़ती है। इसकी आयरिश अत्यधिक होने और फॉन्ट साइज के कारण हमारे आंखों को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ सकता है।
सिरदर्द की समस्या
स्मार्टफोन से निकलने वाली हानिकारक किरणें सिरदर्द और अन्य दूसरे प्रकार की दिमागी तकलीफों के लिए बेहद जिम्मेदार साबित होती है। यह भी पढ़े :— फेस्टिव सीजन : इन तरीकों से करें मनचाही खरीदारी, नहीं बिगड़ेगा बजट और होगी बड़ी बचत
स्मार्टफोन से निकलने वाली हानिकारक किरणें सिरदर्द और अन्य दूसरे प्रकार की दिमागी तकलीफों के लिए बेहद जिम्मेदार साबित होती है। यह भी पढ़े :— फेस्टिव सीजन : इन तरीकों से करें मनचाही खरीदारी, नहीं बिगड़ेगा बजट और होगी बड़ी बचत
शरीर में दर्द
स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते समय हमारे शरीर का पोश्चर सही नहीं रहता। जो हमारे स्वास्थ से रिलेटेड कई तरह की समस्याओं को पैदा करने में सहायक होता है। इंफेक्शन
स्मार्टफोन के स्क्रीन पर कई तरह के कीटाणु होते हैं, जो हमें दिखाई नहीं देते। ये कीटाणु त्वचा संबंधी कई तरह की समस्याओं को उत्पन्न करने में सक्षम है। ये कीटाणु आपको बीमार भी कर सकते हैं।
स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते समय हमारे शरीर का पोश्चर सही नहीं रहता। जो हमारे स्वास्थ से रिलेटेड कई तरह की समस्याओं को पैदा करने में सहायक होता है। इंफेक्शन
स्मार्टफोन के स्क्रीन पर कई तरह के कीटाणु होते हैं, जो हमें दिखाई नहीं देते। ये कीटाणु त्वचा संबंधी कई तरह की समस्याओं को उत्पन्न करने में सक्षम है। ये कीटाणु आपको बीमार भी कर सकते हैं।
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लत लगना
स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले लोग इसके आदी हो जाते हैं। जो बेहद ही खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसे में लोग बिना फोन के बेचैनी महसूस करते हैं। यहां तक कि उन्हें कोई अनजाना भय और घबराहट भी महसूस होता है. जो कि एक गंभीर समस्या हैं
लत लगना
स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले लोग इसके आदी हो जाते हैं। जो बेहद ही खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसे में लोग बिना फोन के बेचैनी महसूस करते हैं। यहां तक कि उन्हें कोई अनजाना भय और घबराहट भी महसूस होता है. जो कि एक गंभीर समस्या हैं
भ्रम पैदा होना
कई बार फोन बंद या साइलेंट पर होने के बावजूद लोगों को ये एहसास होता है कि उनका फोन बज रहा है। इसे एक तरह का फोबिया कहा जा सकता है। जिसे नोमोफोबिया कहते हैं।
कई बार फोन बंद या साइलेंट पर होने के बावजूद लोगों को ये एहसास होता है कि उनका फोन बज रहा है। इसे एक तरह का फोबिया कहा जा सकता है। जिसे नोमोफोबिया कहते हैं।
निर्भरता
आज के ज़माने मे लोग अपने स्मार्टफोन पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर हो चुके हैं। कई बार तो एक ही घर में बैठे लोग एक दूसरे से मैसेज के जरिए ही बात करते हैं। इससे घर में आपकी छोटी मोटी एक्सरसाइज से भी आप वंचित रह जाते हैं, जो आपके स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है।
आज के ज़माने मे लोग अपने स्मार्टफोन पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर हो चुके हैं। कई बार तो एक ही घर में बैठे लोग एक दूसरे से मैसेज के जरिए ही बात करते हैं। इससे घर में आपकी छोटी मोटी एक्सरसाइज से भी आप वंचित रह जाते हैं, जो आपके स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है।