पाटन का गुजरा और बटरेल हुआ कुपोषण मुक्त, दुर्ग जिले के 11 हजार में से 3600 बच्चे भी आए सुपोषण की श्रेणी में

जिले में पाटन ब्लाक के दो गांव गुजरा और बटरेल पूरी तरह से कुपोषण मुक्त हो चुके हैं। मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के तहत यह बड़ी सफलता मिली है।

<p>पाटन का गुजरा और बटरेल हुआ कुपोषण मुक्त, दुर्ग जिले के 11 हजार में से 3600 बच्चे भी आए सुपोषण की श्रेणी में</p>
दुर्ग. जिले में पाटन ब्लाक के दो गांव गुजरा और बटरेल पूरी तरह से कुपोषण मुक्त हो चुके हैं। मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के तहत यह बड़ी सफलता मिली है। कोरोना काल में दिक्कतों के बावजूद यह लक्ष्य प्राप्त किया गया है। अभियान के तहत पहले चरण में जिले में 11 हजार कुपोषित बच्चे चिन्हित किए गए थे। इसमें से 3600 कुपोषण की श्रेणी से बाहर आ गए है। अब दूसरे चरण में 6 हजार बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने की दिशा में काम किया जा रहा है। मुख्यमंत्री सुपोषण मिशन के तहत गुजरा ग्राम पंचायत के 6 आंगनबाड़ी केंद्रों के 150 बच्चों में 16 बच्चे कुपोषित चिन्हांकित किए गए थे। पिछले हफ्ते मटिया ग्राम की एकमात्र कुपोषित बच्ची क्षमा भी कुपोषण के दायरे से बाहर आ गई। गुजरा गांव दो महीने पहले ही कुपोषण के दायरे से बाहर आ गया था। इसी प्रकार बटरेल में अक्टूबर 2019 में 177 बच्चों में से 5 कुपोषित थे। अभी यहां 230 बच्चे हैं और एक भी कुपोषित नहीं है।
इस तरह पहुंचे मंजिल पर
कुपोषण मुक्ति का लक्ष्य लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घर-घर गृह भेंट के लिए पहुंचे। कार्यकर्ता लता नायर ने बताया कि गृह भेंट के दौरान लोगों को बताया गया कि बच्चों को कुपोषण से बचाने बीच-बीच में खिलाना बेहद आवश्यक है। नारियल तेल के साथ रोटी देने की सलाह दी गई। पहले बच्चों के आहार में केवल चावल शामिल था, हमने रोटी की भी आदत की। खाने में मुनगा और भाजियों का समावेश किया।
महिला पुलिस वालंटियर की मदद
लोगों को कुपोषण मुक्ति के लिए प्रेरित करने पहल महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा की गई। पाटन ब्लाक के परियोजना अधिकारी सुमीत गंडेचा ने बताया कि महिला पुलिस वालंटियर की सहायता भी ली गई। वालंटियर शाम के भोजन के समय बच्चों के परिजनों से मिलने रोज पहुँचे। इससे नियमित रूप से बच्चों का आहार रूटीन में आ गया।

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