ऐसे काम करता है ऐप-
ऐप स्मार्टफोन के स्पीकर और माइक्रोफोन का उपयोग कर कान कैनाल में एक ऑडियो सिग्नल को पेपर कोन के माध्यम से अंदर भेजता है और पुन: सिग्नल प्राप्त करता है। कागज को अंदर-बाहर कर सिग्नल को बार-बार चेक किया जाता है। यह तकनीक चमगादड़ की ‘ इकोलोकेशन’ प्रणाली की तरह काम करती है। ऐप कान में कागज के जरिए 150 मिली सेकंड की दर से चहचहाने जैसी ध्वनि भेजता है जो कान की दीवारों से टकराकर वापस आती है। इसे स्मार्टफोन का माइक्रोफोन कैच कर लेता है। संक्रमण के कारण अगर कान में कोई रुकावट होगी तो ध्वनि के सिग्नल को को प्रभावित करती है। ऐप ध्वनि तरंगों की विविधताओं के आधार पर ईयरड्रम के पीछे तरल पदार्थ की मौजूदगी की संभावना का अंदाजा लगता है। इस प्रणाली के लिए किसी औपचारिक प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है।
परीक्षण में भी उतरा खरा-
इस ऐप की सटीकता पेशेवर ध्वनिक परावर्तक प्रणाली के बराबर थी जिसे परीक्षण की जांच के लिए उपयोग किया गया था। ऐप बनाने वाली टीम के जस्टिन चान ने कहा कि यह ध्वनि के पानी से भरे किसी गिलास को छूकर वापस आने जैसा है। गिलास में पानी की मात्रा ध्वनि पर असर डालती है। वैसे ही इयरड्रम के पीदे मौजूद तरल से टकराने पर ध्वनि अलग-अलग ध्वनि प्रसारित करती है। ऐप ने परीक्षण में 25 मरीजों के कान की जांच कर 19 में से 18 मरीजों के कान में संक्रमण की सटीक पुष्टि की। शोधकर्ताओं का कहना है कि आज सभी के पास स्मार्टफोन आसानी से मिल जाते हैं। ऐसे में यह तकनीक दूर-दराज के गांव में कान के संक्रमण से जूझ रहे रोगियों के इलाज में चिकित्सकों की मदद कर सकेंगे।