डब्ल्यूएचओ ने इसके साथ ही देश व सरकार के 50 प्रमुखों को इस संदर्भ में निर्णायक निर्णय लेने के लिए कहा, जोकि टीबी पर संयुक्त राष्ट्र के पहले उच्च स्तरीय बैठक में संभवत: अगले हफ्ते हिस्सा लेंगे।
रपट में बताया गया है कि पिछले वर्षो में टीबी से मरने वालों की संख्या में कुछ कमी आई है। 2017 में एक अनुमान के मुताबिक 1 करोड़ लोगों को टीबी हुआ और इससे 16 लाख मौतें हुईं, जिसमें 3 लाख एचआईवी -पॉजिटिव लोग भी शामिल हैं। टीबी के नए मामले में 2 प्रतिशत की कमी आई है।
हालांकि टीबी मामले में बिना रिपोर्ट किए (अंडररिपोर्टिग) और बिना रोग-निदान (अंडर-डाइगनोसिस) के मामले एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं। 2017 में जिन 1 करोड़ लोगों को टीबी हुआ, उसमें केवल 64 लाख मामले ही आधिकारिक रूप से नेशनल रिपोर्टिग सिस्टम में दर्ज कराए गए, जिसमें से 36 लाख लोगों का या तो इलाज नहीं हुआ या रोग की पहचान हुई लेकिन इसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई। रपट के अनुसार, 2030 तक टीबी समाप्त करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए 2025 तक ट्रीटमेंट कवरेज को बढ़ाकर 64 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक करना होगा।
अकसर टीबी का जिक्र होते ही कमजोरी, तेज खांसी और बुखार जैसे लक्षण लोगों के दिमाग में आते हैं। मान लिया जाता है कि मरीज के फेफड़ों में ही इन्फेक्शन होगा। मगर टीबी सिर्फ फेफड़ों की बीमारी नहीं है, बल्कि टीबी का इन्फेक्शन शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है। पेट, किडनी, रीढ़ की हड्डी, या ब्रेन में टीबी होना आजकल बहुत आम हो गया है।
हर बच्चे को जन्म के कुछ दिनों बाद बीसीजी वैक्सीन लगवानी चाहिए। हालांकि श्वसन तंत्र के टीबी को यह 100 प्रतिशत कंट्रोल नहीं कर पाती है, लेकिन टीबी मेनिनजाइटिस (जिसे दिमागी बुखार भी कहते हैं) या दूसरे अंगों के टीबी इन्फेक्शन से ज़रूर बचाती है। अत: बच्चों को बीसीजी की वैक्सीन जरूर लगवाएं। टीबी के प्रति आपकी जागरूकता ही इस रोग को थामने का सबसे सरल उपाय है। आजकल तो सरकारी अस्पतालों में भी टीबी के मुफ्त इलाज की सुविधाएं दी जा रही हैं।