भारत में बढ़ रही इस भयंकर बीमारी का कोई स्थाई इलाज नहीं

इस बीमारी में सोचने-समझने की शक्ति खत्म जाती है, मरीज अपने परिजनों और रिश्तेदारों को पहचनाना तक बंद कर देता है…
 

<p>Alzheimer</p>

नई दिल्ली। जरा कल्पना कीजिए कि आप एक दिन सब कुछ भूल जाएं … कुछ भी याद नहीं रहे…न आगे का, न पीछे का… न घरवालों को पहचान पाएं, न ही रिश्तेदारों को…तब कैसा महसूस करेंगे? हम आपको बता दें कि ये कोई कल्पना नहीं, हकीकत है। यह एक बीमारी है, जो पूरी दुनिया में बड़ी तेजी से बढ़ रही है। इस मामले में भारत सबसे आगे है। जी हां, ये अल्जाइमर है, जिसे भूलने की बीमारी कहते हैं। बीमारी जब एडवांस्ड स्थिति में पहुंच जाती है, तो मरीज अपने परिजनों और रिश्तेदारों को पहचनाना तक बंद कर देता है। देश में लगभग 16 लाख लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं। यह कहना है सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट कन्सलटेन्ट डॉ. विनीत सूरी का। डॉ. सूरी ने ‘विश्व अल्जाइमर दिवस’ पर बुधवार को आईएएनएस को जारी एक बयान में कहा कि भारत में लगभग 40 लाख लोग डीमेंशिया से पीडि़त हैं और इसमें अल्जाइमर के मामले सबसे ज्यादा हैं। तकरीबन 16 लाख मरीज अल्जाइमर से पीडि़त हैं।

उन्होंने कहा, “अक्सर लोग समझते हैं कि ‘डीमेंशिया’ और ‘अल्जाइमर’ एक ही हैं। हालांकि ये दोनों स्थितियां एक नहीं हैं, वास्तव में अल्जाइमर डीमेंशिया का एक प्रकार है। डीमेंशिया में कई बीमारियां शामिल हैं, जैसे अल्जाइमर रोग, फ्रंट टू टेम्पोरल डीमेंशिया, वैस्कुलर डीमेंशिया आदि। डीमेंशिया के मरीजों में शुरुआत में याददाश्त कमजोर होने लगती है और मरीज को रोजमर्रा के काम करने में परेशानी होने लगती है। मरीज तारीखों, रास्तों और जरूरी कामों को भूलने लगता है। वह घर या ऑफिस में काम करते समय गलत फैसले लेने लगता है।”

उन्होंने कहा, “मरीज को कुछ नई या हाल ही बातें याद रहने लगती हैं। बीमारी जब अडवांस्ड स्थिति में पहुंच जाती है, तो मरीज अपने परिजनों और रिश्तेदारों को पहचनाना तक बंद कर देता है। उनके व्यवहार में कई तरह के बदलाव आ सकते हैं, जैसे गुस्सा या उग्र व्यवहार करना, मूड में बदलाव आना, दूसरों पर भरोसा न करना, डिप्रेशन, समाज से दूरी बनाना या बेवजह इधर-उधर घूमने की आदत।”

बयान में एक अल्जाइमर मरीज तारा दुबे के बेटे करण दुबे ने कहा है, “मेरी मां 93 वर्ष की हैं और वह पिछले चार सालों से इस बीमारी से पीडि़त हैं। अक्सर वह मुझे भूल जाती हैं और मुझे अपना भाई समझने लगती हैं।” दुबे ने बताया, “बीमारी को समझने के लिए बहुत धैर्य की जरूरत होती है, आपको मरीज को हैंडल करना सीखना पड़ता है। मरीज को खूब प्यार और देखभाल की जरूरत होती है। जब मुझे पता चला कि मेरी मां इस बीमारी से पीड़ित है, तो मैंने इसके बारे में पढ़ा।”

डॉ. सूरी के अनुसार, अल्जाइमर पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता, लेकिन मरीज के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। ऐसी कई दवाएं हैं, जिनके द्वारा मरीज के व्यवहार में सुधार लाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि कई प्रयासों से मरीज के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है जैसे व्यायाम, सेहतमंद आहार, उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण, डिसलिपिडिमा और डायबिटीज पर नियंत्रण और मरीज को बौद्धिक गतिविधियों में शामिल करना जैसे नई भाषा सीखने, मेंटल गेम्स या म्यूजिक में व्यस्त रखना।


क्यों होता है अल्जाइमर रोग?

वैज्ञानिकों का मानना है कि ज्यादातर लोगों में, अल्जाइमर रोग आनुवांशिक, जीवनशैली और पर्यावरणीय कारकों के संयोजन से उत्पन्न होता है, जो समय के साथ मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। पांच प्रतिशत से भी कम बार, अल्जाइमर विशिष्ट आनुवंशिक परिवर्तनों के कारण होता है, जो वास्तव में यह रोग को विकसित करने की गारंटी देता है। हालांकि, अल्जाइमर रोग का कारण अभी तक पूरी तरह से निश्चित नहीं है, लेकिन मस्तिष्क पर इसका असर स्पष्ट है। अल्जाइमर रोग मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुक्सान पहुंचाता है या उन्हें मारता है। एक स्वस्थ मस्तिष्क की तुलना में, अल्जाइमर रोग से प्रभावित एक मस्तिष्क में बहुत कम कोशिकाएं होती हैं और जीवित कोशिकाओं के बीच बहुत कम संबंध होते हैं।

अल्जाइमर रोग के जोखिम और मुख्य कारक

– आयु – 85 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों को अल्जाइमर रोग होने का जोखिम अधिक होता है।
– पारिवारिक इतिहास – परिवार में अन्य लोगों को अल्जाइमर रोग होने के कारण आपको भी यह होने का उच्च जोखिम होता है।
– कम शैक्षिक और व्यावसायिक प्राप्ति।
– पहले की सिर की चोट।
– नींद के विकार (उदाहरण के लिए, स्लीप एपनिया)।

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