वजहें जो बोनमैरो करते प्रभावित –
हड्डियों में मौजूद बोनमैरो की स्पंजी सेल्स ब्लड का निर्माण करती हैं। इनके प्रभावित होने के कारण कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और ब्लड बनना बंद हो जाता है।
बोनमैरो में चोट : रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से इसकी कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और खून बनने की प्रक्रिया बाधित होती है।
हार्मोन असंतुलन : कुछ मामलों में प्रेग्नेंसी में हार्मोनल असंतुलन के कारण इम्यून सिस्टम बोन -मैरो को क्षति पहुंचाता है।
रेडियो या कीमोथैरेपी : कैंसर में दी जाने वाली रेडियो या कीमोथैरेपी से कई बार बोनमैरो की सेल भी प्रभावित हो जाती हैं। यह स्थायी या अस्थायी दोनों तरह से हो सकती है।
वायरल इंफेक्शन : ज्यादातर वायरस का संबंध ब्लड से होता है। इनमें हेपेटाइटिस, एचआईवी, परवो वायरस-बी 19 आदि हैं।
आर्थराइटिस की दवा : जोड़ों के दर्द में ली जाने वाली दवाएं और कुछ खास एंटीबायोटिक्स का असर बोनमैरो पर पड़ता है।
अधिक डोज के साथ कैंसर का इलाज कराने वाले मरीज, कीटनाशकों का छिड़काव करने वाले या इसे बनाने वाले कर्मचारी, गर्भवती महिलाएं, ऑटो इम्यून बीमारी से पीडि़तों को इसका खतरा अधिक होता है।
जांच : रक्त में आरबीसी, डब्ल्यूबीसी व प्लेटलेट्स की संख्या पता लगाने के लिए ब्लड काउंट टैस्ट कराया जाता है। ये काउंट निर्धारित मात्रा से कम मिलने पर बोनमैरो बायोप्सी भी की जाती है।
लक्षण : थकावट, सिरदर्द, सांस फूलना, चक्कर आना, धड़कनें अनियंत्रित होना, त्वचा पीली पडऩा, शरीर पर चकत्ते पडऩा, मसूढ़ों और नाक से ब्लीडिंग व पैरों में सूजन आदि।
इलाज –
एप्लास्टिक एनीमिया का इलाज स्थिति की गंभीरता के मुताबिक किया जाता है।
ब्लड ट्रांसफ्यूजन : एनीमिया होने पर लाल रक्त कणिकाएं (आरबीसी) और प्लेटलेट्स चढ़ाते हैं।
बोनमैरो ट्रांसप्लांट : रीढ़ की हड्डी से स्टेम सेल लेकर लैब में इनकी संख्या बढ़ाकर मरीज मेंं ट्रांसप्लांट करते हैं।
दवाएं : अगर यह रोग ऑटोइम्यून होता है तो दवाएं देते हैं जो अधिक सक्रिय इम्यून सिस्टम को सामान्य करती हैं।
बचाव -आर्थराइटिस की दवाइयां डॉक्टर की सलाह से ही लें।
कीटनाशक या कैमिकल से दूरी बनाएं। हेपेटाइटिस व एचआईवी से बचाव के लिए सुरक्षा उपाय अपनाएं।
नोट : रक्तमें आरबीसी-ऑक्सीजन की पूर्ति, डब्लूबीसी-संक्रमण से बचाव और प्लेटलेट्स- थक्का बनाने में मदद करता है।