टाइप-1…
टाइप 1 डायबिटीज में पेन्क्रियाज इंसुलिन नहीं बनाता जिससे शरीर में ग्लूकोज की कमी होने से ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है। यह आमतौर पर जेनेटिक होता है लेकिन अन्य कारणों से भी यह बीमारी हो सकती है।
टाइप-2
टाइप 2 डायबिटीज में शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का निर्माण नहीं होता है और इसका प्रयोग भी नहीं कर पाता।
जेस्टेशनल –
प्रेग्नेंसी के दौरान हार्मोन में बदलाव से जेस्टेशनल मधुमेह की आशंका रहती है जो प्रसव के बाद ठीक हो जाती है।
कुछ खास बातें-
एक चौथाई मरीजों को पता नहीं होता कि उन्हें मधुमेह है। कई बार लोग 10 साल तक भी प्री-डायबिटिक स्टेज पर होते हैं जिसमें ब्लड ग्लूकोज का स्तर बॉर्डरलाइन पर होता है। यह स्थिति भी सेहत के लिए हानिकारक होती है। इस दौरान कोई लक्षण नहीं दिखते हैं लेकिन अंदर ही अंदर नुकसान होता रहता है। ऐसे में सभी को समय पर ब्लड शुगर की जांच करवानी चाहिए।
ज्यादा शुगर सभी के लिए हानिकारक होती है। जबकि डायबिटीज जेनेटिक, खराब जीवनशैली व पर्यावरण संबंधी कई कारणों से होती है। शुगर फैट वाली चीजों जैसे कुकीज, आइसक्रीम, मिठाइयां आदि में होता है। ज्यादा मात्रा में फैट-शुगर की चीजें खाने से वजन बढ़ता है जो मधुमेह का अप्रत्यक्ष कारण है।
अधिक वजन डायबिटीज का एक कारण है। लेकिन दुबले लोगों को भी इस रोग की आशंका रहती है। खराब जीवनशैली व खानपान और पेन्क्रियाज के ठीक से काम न करने से भी यह रोग हो सकता है। इसलिए सतर्क रहें। कार्बोहाइड्रेट से युक्त चीजें (केवल मीठी ही नहीं) ग्लूकोज की मात्रा को प्रभावित कर सकती हैं। ऐसे में नीम, करेला जैसी कड़वी चीजों में भी कार्बोहाइड्रेट की मात्रा होती हैं जो ब्लड शुगर के स्तर को बिगाड़ती हैं।