पीलिया: झाड़-फूंक के चक्कर में न पड़ें वरना जान भी जा सकती है

यदि पीलिया के लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें, जरा-सी लापरवाही जानेलवा हो सकती है…
 

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आंखों का रंग पीला होने लगे और थकान महसूस होने के साथ पाचनतंत्र खराब रहने लगे, तो सतर्क होने की जरूरत है। आंखें व त्वचा तभी पीली होती हैं, जब शरीर में बिलुरुबिन (पीला पदार्थ) की मात्रा बढ़ जाती है। बिलुरुबिन लिवर में जाता तो है, लेकिन मात्रा अधिक होने से न तो पच पाता है और न ही सही मात्रा में शरीर से निकल पाता है। इससे लिवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने के साथ इस अंग के पाइप, बाइल डक्ट आदि में भी संक्रमण होता है, जिससे कैंसर व मल्टी ऑर्गन फेल्योर का खतरा बढ़ जाता है। लाल रुधिर कणिकाओं (आरबीसी) के टूटने से भी बिलुरुबिन लेवल बढ़ता है। पीलिया की शिकायत होने पर झाड़-फूंक में समय बर्बाद न करें। इलाज में देरी रोगी की जान को खतरे में डाल सकती है। दरअसल, पीलिया सीधे लिवर को प्रभावित करता है।

पीलिया के लक्षण
– त्वचा का पीला होना
– शरीर में खुजली होना
– अचानक वजन घटना
– उल्टी आना, जी मचलाना
– पेट में दर्द व चक्कर आना

इन्हें खतरा
रक्त में पित्त की मात्रा बढऩे से आंखों के सफेद भाग और त्वचा में पीलापन आ जाता है। नाखून भी पीले नजर आने लगते हैं। अधिक शराब पीने वालों को पीलिया का खतरा अधिक होता है। इसके अलावा गॉल ब्लैडर में स्टोन या किसी तरह की रुकावट होने पर भी इस रोग का खतरा बढ़ जाता है। जन्म के बाद नवजात को पीलिया हो जाए, तो घबराने की जरूरत नहीं, शिशु रोग विशेषज्ञ की सलाह लें। हालांकि नवजात को हुआ पीलिया 24-48 घंटे में स्वत: ठीक भी हो जाता है।

प्रमुख जांचें
आंखों का रंग पीला हो जाए, तो डॉक्टर को दिखाने में देर न करें। चिकित्सक मुख्य रूप से ब्लड काउंट, एसजीपीटी, एसजीओटी, एलएफटी, बिलुरुबिन और एल्कलाइन लेवल की जांच कराते हैं। लिवर की स्थिति को जानने के लिए पैट व सीटी स्केन और एमआरआई कराते हैं।

देसी उपाय…
-मरीजों को रोजाना साफ व धुले हुए गन्ने का एक गिलास जूस पिलाना चाहिए। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
– भोजन करने के बाद फल में केला खाना लाभदायक होता है।
– दिन में कम से कम 3-4 बार आधे से एक चम्मच की मात्रा शहद की ले सकते हैं।
– तुलसी के पत्ते लिवर में मौजूद विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में सहायक होते हैं। रोजाना तुलसी के 3-4 पत्तों को निगल सकते हैं।
– दही में प्रोबायोटिक बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो लिवर को मजबूती देते हैं। ऐसे में इसे खाने से पीलिया का प्रभाव कम होता है।
– 3-4 कली लहसुन की पीसकर दूध में मिलाकर पीने से भी फायदा होता है।

इलाज के तरीके

एलोपैथी: रोग की गंभीरता व बिलुरुबिन का स्तर जानने के बाद दवाएं तय होती हैं। पीलिया लिवर को नुकसान पहुंचाता है, इसलिए लिवर को मजबूत करने के लिए दवाएं दी जाती हैं। कब्ज न हो इसके लिए भी दवा देते हैं। पेटदर्द या मरोड़ होने पर अस्पताल में भर्ती कर फ्लूड चढ़ाया जाता है। संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं भी दी जाती हैं।

आयुर्वेद : इलाज के दौरान तीन हफ्ते तक परहेज करना होता है। शहद और सुपाच्य भोजन दवा का काम करते हैं। पंचकर्म और विरेचन भी लाभदायक है। कुटकी, मुनक्का, हरिद्रा, आरोग्य वर्धनी के प्रयोग से भी आराम मिलता है। साफ गन्ने का रस पीएं और मौसमी फल खाएं।

होम्योपैथी : पीलिया का बेहतर इलाज संभव है। रोग के दौरान शरीर में होने वाले बदलावों के आधार पर दवाएं दी जाती हैं। इसमें जैलीडोनियम, फॉसफोरस के अलावा पेट और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने के लिए दवा देते हैं। उबला पानी ठंडा कर पीना फायदेमंद है।

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