शहर की दिनचर्या को व्यवस्थित करता था निहाल टावर
धौलपुर. वैसे तो जिला मुख्यालय में गौरव पथ पर एक के बाद एक लगातार तीन भव्य इमारतें स्थित है, लेकिन इस पथ का गौरव या कहें धौलपुर रियासत को गौरव स्तम्भ निहाल टॉवर(घंटाघर) है। रियासत के समययह घंटाघर धौलपुर शहर के दिनचर्या का व्यवस्थित रखा करता था। इसके प्रति घंटे बजने वाले घंटे की ध्वनि की गूंज 8 मील तक गूंजा करती थी। काफी समय बाद इसकी घड़ी बंद हो गई और यह केवल इमारत- स्तम्भ सा मूक हो गया। इतिहासकार अरविंद शर्मा बताते है कि लाल-सफेद पत्थरों से बना यह टाइम टावर महाराजा निहाल सिंह के समय बनना शुरू हुआ, इसलिए इसके निहाल टावर कहा जाता है। यहां जालियां पर एनटी यानी कि निहाल टावर लिखा हुआ है। टावर स्थापत्य कला अद्भूत बेहद मोहक नमूना है। आज इसकी घड़ी बंद होने के साथ ही इसका आस्तित्व भी खतरे में है। इस इमारत से किसी भी वाहन की दुर्घटना ना हो, इसके लिए एक सर्कल में रखन की जरूरत दिखाई दे रही है। समय की यह पताका धौलपुर के गौरव की एक अनूठी गाथा है, जिसे आज संरक्षण व सुरक्षा की दरकार है।
धौलपुर. वैसे तो जिला मुख्यालय में गौरव पथ पर एक के बाद एक लगातार तीन भव्य इमारतें स्थित है, लेकिन इस पथ का गौरव या कहें धौलपुर रियासत को गौरव स्तम्भ निहाल टॉवर(घंटाघर) है। रियासत के समययह घंटाघर धौलपुर शहर के दिनचर्या का व्यवस्थित रखा करता था। इसके प्रति घंटे बजने वाले घंटे की ध्वनि की गूंज 8 मील तक गूंजा करती थी। काफी समय बाद इसकी घड़ी बंद हो गई और यह केवल इमारत- स्तम्भ सा मूक हो गया। इतिहासकार अरविंद शर्मा बताते है कि लाल-सफेद पत्थरों से बना यह टाइम टावर महाराजा निहाल सिंह के समय बनना शुरू हुआ, इसलिए इसके निहाल टावर कहा जाता है। यहां जालियां पर एनटी यानी कि निहाल टावर लिखा हुआ है। टावर स्थापत्य कला अद्भूत बेहद मोहक नमूना है। आज इसकी घड़ी बंद होने के साथ ही इसका आस्तित्व भी खतरे में है। इस इमारत से किसी भी वाहन की दुर्घटना ना हो, इसके लिए एक सर्कल में रखन की जरूरत दिखाई दे रही है। समय की यह पताका धौलपुर के गौरव की एक अनूठी गाथा है, जिसे आज संरक्षण व सुरक्षा की दरकार है।