देहरादून। उत्तराखंड में हुई मूसलाधार बारिश और भूस्खलन से प्रदेश के लोगों को राहत मिलने में करीब 8 से 10 माह का समय लग सकता है। हालांकि जिन स्थानों को कंक्रीट करना है वहां करीब एक साल या फिर इससे भी ज्यादा का समय लग सकता है। उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित एक संयुक्त टीम ने अपनी रिपोर्ट में यह उल्लेख किया है। टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अब तक आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जो भी काम हुए हैं वे पूरी तरह से अस्थाई हैं। क्योंकि अब भी प्रदेश के सभी 13 जनपदों में मूसलाधार बारिश हो रही है। जिससे प्रभावित क्षेत्रों में न ही सटीक तरीके से सर्वेक्षण और न ही यह जानकारी मिल पा रही है कि पेयजल और ग्रामीण मोटर मार्ग बारिश या भूस्खलन की चपेट में आकर कहां कहां क्षतिग्रस्त हुए हैं।
पाइप लाइनें और छोटे पुल क्षतिग्रस्त टीम ने यह भी माना है कि आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के पास सडक़ों, पेय जल और पर्यटक स्थलों के ध्वस्त होने की जो भी सूचनाएं हैं वे जुलाई माह तक की ही हैं। जबकि अगस्त माह में भी प्रदेश में भयंकर बारिश हुई है और काफी नुकसान हुआ है। सूत्रों की मानें तो 1500 पेय जल की पाइप लाइनें और 800 छोटे पुल पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए हैं। मोटर मार्ग का अब तक सटीक आकलन नहीं हो पाया है। लेकिन मााना जा रहा है कि यह आंकड़ा एक हजार से उपर पहुंच चुका है। सरकार द्वारा चलाए जा रही शिविरों की संख्या 40 है लेकिन इस संख्या को भी सरकार द्वारा गठित टीम ने बढ़ाने का सुझाव दिया है।
7 जनपदों में राशन की किल्लत
टीम ने यह भी माना है कि राशन की किल्लत करीब 7 जनपदों में हैं और पेय जल और बिजली की सप्लाई 5 जनपदों गड़बड़ है। जिससे स्थानीय लोगों को भारी परेशनी का सामना करना पड़ रहा है। आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र भी यह मान रहा है कि टीम की रिपोर्ट पर सरकार बेहद गंभीर है। बरसात पूरी तरह से थमने पर ही आपदा से प्रभावित जनपदों की सही तस्वीर सामने आ पाएगी। टीम ने कहा है कि पूरी तरह से जन जीवन लौटने में कम से कम एक साल का समय लग जाएगा। अभी तो प्रदेश में बारिश से ही तबाही है। सूत्रों की मानें तो करीब एक हजार करोड़ रुपए की जरूरत है ताकि प्रभावित जनपदों में मरम्मत या आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सके।
टीम ने यह भी माना है कि राशन की किल्लत करीब 7 जनपदों में हैं और पेय जल और बिजली की सप्लाई 5 जनपदों गड़बड़ है। जिससे स्थानीय लोगों को भारी परेशनी का सामना करना पड़ रहा है। आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र भी यह मान रहा है कि टीम की रिपोर्ट पर सरकार बेहद गंभीर है। बरसात पूरी तरह से थमने पर ही आपदा से प्रभावित जनपदों की सही तस्वीर सामने आ पाएगी। टीम ने कहा है कि पूरी तरह से जन जीवन लौटने में कम से कम एक साल का समय लग जाएगा। अभी तो प्रदेश में बारिश से ही तबाही है। सूत्रों की मानें तो करीब एक हजार करोड़ रुपए की जरूरत है ताकि प्रभावित जनपदों में मरम्मत या आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सके।
उत्तराखंड सरकार के पास फंड का अभाव
उत्तराखंड सरकार जल्द ही केंद्र से मोटी रकम की मांग करने वाली है ताकि आपदा से हुए नुकसान की भरपाई की जा सके। क्योंकि उत्तराखंड सरकार के पास फंड का अभाव है। लिहाजा सरकार इतनी मोटी रकम खर्च करने की स्थिति में नहीं है। आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के अधिशासी निदेशक डा.पीयूष रौतेला के मुताबिक प्रभावित जनपदों को पटरी पर लाने में एक साल का समय तो लग ही जाएगा। हालांकि 8 से 10 माह के अंदर जरूरी चीजें पटरी पर लाने की कोशिश की जा रही है।
उत्तराखंड सरकार जल्द ही केंद्र से मोटी रकम की मांग करने वाली है ताकि आपदा से हुए नुकसान की भरपाई की जा सके। क्योंकि उत्तराखंड सरकार के पास फंड का अभाव है। लिहाजा सरकार इतनी मोटी रकम खर्च करने की स्थिति में नहीं है। आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के अधिशासी निदेशक डा.पीयूष रौतेला के मुताबिक प्रभावित जनपदों को पटरी पर लाने में एक साल का समय तो लग ही जाएगा। हालांकि 8 से 10 माह के अंदर जरूरी चीजें पटरी पर लाने की कोशिश की जा रही है।