इस महिला के जज्बे ने बचा लिया पूरा परिवार, जान की लगा दी थी बाजी, पढ़ें पूरी कहानी

महिला ने खुद की जान दाव पर लगातार अपने पूरे परिवार को बचा लिया था। तब उठाया गया उनका यह कदम आज भी खुशहाल परिवार का उदाहरण है….

<p> Women&#8217;s Day 2020 </p>

दमोह। एक महिला। जिसे समाज भले ही अवला समझता हो, लेकिन एक महिला क्या-क्या कर सकती हैं, यह तब ही पता चलता है, जब वह अपने रास्तों पर निकलकर सफलता के झंडे गाड़ देती हैं। अब भले ही वक्त बदलाव की ओर हो, महिलाएं अपने बलवूते पर बड़े-बड़े काम करने लगी हों, लेकिन 10 साल पहले महिलाएं किस जगह पर थी, सभी जानते हैं। हम भी आपको 10 साल पहले ही ले जा रहे हैं, जब एक महिला ने खुद की जान दाव पर लगातार अपने पूरे परिवार को बचा लिया था। तब उठाया गया उनका यह कदम आज भी खुशहाल परिवार का उदाहरण है। वहीं दुख, दर्द और परेशानियों के समय कैसे डटकर इनका सामना करना चाहिए, इसकी मिशाल भी वह आम महिलाओं के लिए बनी हुईं है।

इस वूमेन डे पर पत्रिका ऐसी सभी महिलाओं को सलाम करता हैं, जिन्होंने हालात को हराते हुए अपने जीवन की नई कहानी रची हैं। ऐसी ही एक महिला दमोह की सविता सोनी है। जिन्होंने अपने हालातों से ऐसे समय लड़ाई की। जबकि महिलाओं को इतना सम्मान, इतना रुतबा समाज में नहीं मिलता था। तब इंदिरा गांधी जैसे उदाहरण तो थे, लेकिन समाज में महिलाओं को वह स्थान नहीं मिल सका था कि कोई महिला अकेले अपनी लड़ाई लड़ सके। इतने सब के बाद भी सविता ने अपने परिवार को बचाने आगे आई और समाज को एक ऐसा संदेश दिया कि लोग इसे मरते दम तक याद रखेंगे।

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सविता सोनी दमोह शहर के बस स्टैंड के पास रहने वाले महेंद्र कुमार सोनी की पत्नी है। इनकी शादी १९८६ में हुई थी। सविता का विवाह वैसे तो संपन्न घर में हुआ था, लेकिन २००७ में एक ऐसा वक्त आया तक उनके पति महेंद्र बीमारियों से घिर गए। पहले डायबिटीज और फिर ब्लडप्रेशर जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रसित हुए। हालत गंभीर होती चली गई और नागपुर में डॉक्टर ने बताया कि उनकी दोनों किडनियां फेल हो चुकी हैं।

अपनी ताकत पर था विश्वास, नहीं मानी हार

इतना सुनने के बाद भी सविता ने हार नहीं मानी। अपनी चार बेटियों का साहस भी बनाया और पति के उपचार में कमी भी नहीं होने दी। २००९ में वह अपने गुरु जिमी अलमेड़ा मुंबई के पास पहुंची। उनसे गुजराज के नडय़ाड़ जाकर किडनी ट्रांसपरेंट की बात कही गई। सविता ने तब भी पीछे नहीं देखा और अपने भाई को साथ लेकर नडय़ाड़ पहुंची। यहां डॉक्टर ने परिवार के सदस्यों से किडनी देने की बात कही। भाई, बहन की किडनी ने मिलने पर सविता स्वयं किडनी देने अड़ गई। जिस पर डॉक्टर्स भी झुक गए और किडनी ट्रांसपरेंट के टेस्ट शुरू किए।दंपती का ब्लड ग्रुप समान होने के साथ ही ९८ प्रतिशत किडनी भी मेच हुई और ऑपरेशन सफल हो गया। आज १० साल बीतने के बाद भी सोनी परिवार स्वयं को सबसे खुशहाल मानता है।

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पत्नी ही हैं मेरी जान- महेंद्र

तीन साल तक जितने दर्द और कष्ट मिले, वह कोई झेल नहीं सकता। लेकिन पत्न के साथ ने मुझे इस दर्द से राहत मिली।मैं तो धन्य हूं जो इतनी समर्पित पत्नी मिली। उसकी प्रतिज्ञा ही है कि किडनी ट्रांसपरेंट के १० साल बाद भी हम खुश हैं। परिवार को गुलाब बाबा, गुरु जिमी अलमोड और ज्योति ताई ने नया जीवन दिया है। पत्नी और गुरुओं के बारे में शब्द कम है। निश्चित ही प्यार और समर्पण का दूसरा नाम मेरी पत्नी है।

हमेशा साथ देने की दी थी कसमें

सविता सोनी का कहना है कि प्यार करने के अपने-अपने तरीके होते है। यह मेरा कर्तव्य था, जिसे मैने निभाया। गुरुजी जिमी अलमेड़ा और उनकी पत्नी ज्योति ताई द्वारा बढ़ाए गए मनोबल का ही नतीजा था कि मैं यह निर्णय ले सकी। सभी महिलाओं से कहना चाहती हूं कि अपने जीवनसाथी के प्रति आदर और समर्पण की भावना हमारे अंदर होना चाहिए। दिखावे से दूर रहकर यह भावना जरूरी है, तभी हमारा जीवन सफल है। शरीर और मन के विकारों से दूर रहने के लिए सकारात्मक सोच और खुश रहना जरूरी है।

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