खो-खो की भी रह चुकी हैं बेहतरीन खिलाड़ी
बचपन में सुनीता का रुझान खो-खो की ओर था। वह खो खो में नेशनल स्तर पर खेल चुकी थीं। इसके बाद अपनी मां के कहने पर उन्होंने अपना खेल बदल लिया। उनकी मां ने कहा कि जितना समय वह खो खो में दे रही हैं, अगर इसके बदले वह यह समय क्रिकेट में दे तो इसका परिणाम बेहतर हो सकता है। उन्होंने कहा कि आप इस खेल में कितने अच्छे हो, इससे करियर नहीं बनने वाला। यह न तो राष्ट्रीय खेल है और न ही अंतरराष्ट्रीय। इसीलिए खुद को क्रिकेट के लिए तैयार करो। यह काफी लोकप्रिय खेल है और इसमें करियर है। मां की सलाह के बाद सुनीता ने क्रिकेट को गंभीरता से लेना शुरू किया। इसके बाद वह जल्द ही चयनकर्ताओं की निगाह में आ गई। इस मीडियम पेसर कोक एक बार ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टीम इंडिया में मौका भी मिला था। सुनीता के मुताबिक, अंतिम एकादश में शामिल होने के बावजूद मैच की सुबह उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया।
मां के कहने पर ही बनीं कोच
जब सुनीता का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परवान नहीं चढ़ सका, तब उनकी मां ने उनका दाखिला क्रिकेट कोचिंग प्रोग्राम में करवा दिया। 1976 में वह पटियाला में नेशनल इंस्टीट्यूट से कोचिंग डिप्लोमा हासिल करने वाली पहली महिला क्रिकेट कोच बनीं। सुनीता ने बताया कि इसके बावजूद लोग शुरुआत में उनके पास अपने बच्चों को भेजने से हिचकते थे, क्योंकि उनकी पसंद पुरुष कोच थे। मगर जल्द ही लोगों को यह पता चल गया कि पुरुष सहयोगियों की तुलना में वह कम सक्षम नहीं हैं। इसके बाद तो उन्होंने भारत को कई महिला-पुरुष प्रथम श्रेणी और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर दिए। क्रिकेट के क्षेत्र में बेहतरीन काम करने के कारण उन्हें 2005 में द्रोणाचार्य अवॉर्ड भी मिला। देश को कई विश्व स्तरीय क्रिकेटर देने वाली सुनीता शर्मा का लेकिन यह सपना नहीं था। वह कोच नहीं, बल्कि वह एक बेहतरीन क्रिकेटर बनना चाहती थीं।
भेदभाव का भी करना पड़ा सामना
सुनीता शर्मा ने अपने पूरे कोचिंग करियर के दौरान मां और गुरु दोनों की भूमिका निभाई। दो बच्चों की मां सुनीता ने मैदान पर कोच की और घर पर मां की दोहरी जिम्मेदारी उठाई। उन्होंने बताया कि कोचिंग के दौरान उन्हें भेदभाव का भी सामना करना पड़ा। लेकिन उन्हें खुद पर भरोसा था और वह जानती थीं कि यहां तक पहुंचने और युवाओं को तराशने की उनमें योग्यता है।
दीप दास गुप्ता ने जिद कर ली सुनीता से ट्रेनिंग
टीम इंडिया के पूर्व विकेटकीपर बल्लेबाज और बंगाल से रणजी खेल चुके दीप दास गुप्ता ने 7 साल की उम्र में सुनीता शर्मा से क्रिकेट की ट्रेनिंग लेनी शुरू की थी। हालांकि गुप्ता जब थोड़े बड़े हो गए, तब उनके माता-पिता अपने बेटे के लिए एक पुरुष कोच चाहते थे, मगर दीप दास ने जिद कर कहा कि वह तो ‘आंटी’ से ली ट्रेनिंग लेंगे। इसके बाद ददीप दास का जब टीम इंडिया के लिए चयन हुआ तो उन्होंने मोहाली में इंग्लैंड के खिलाफ शतक जड़कर उन्हें गुरु दक्षिणा दी।
सुनीता शर्मा के शिष्यों में दीप दास गुप्ता के अलावा मशहूर महिला क्रिकेटर शशि गुप्ता, अंजु जैन, अंजुम चोपड़ा आदि नाम भी हैं। 1975 से 1990 के अपने कोचिंग करियर के बीच उन्होंने शांता रंगास्वामी, डायना एडुल्जी, संध्या अग्रवाल जैसी कई अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ियों के लिए कोचिंग कैंप भी लगाया।