हाथ के हुनर पर तकनीक पड़ रही भारी

हाथ के हुनर पर आधुनिक चकाचौंध भारी पड़ रही है। शहर के वार्ड संख्या 12 निवासी मोहम्मद सलीम सूत के धागे से डिजाइनदार पलंग एवं बैठने के लिए पीढ़े तैयार करता है, लेकिन आधुनिकता की दौड़ में सलीम के हुनर पर तकनीक हावी होने लगी है।

<p>हाथ के हुनर पर तकनीक पड़ रही भारी</p>

सादुलपुर. हाथ के हुनर पर आधुनिक चकाचौंध भारी पड़ रही है। शहर के वार्ड संख्या 12 निवासी मोहम्मद सलीम सूत के धागे से डिजाइनदार पलंग एवं बैठने के लिए पीढ़े तैयार करता है, लेकिन आधुनिकता की दौड़ में सलीम के हुनर पर तकनीक हावी होने लगी है। सलीम बचपन से ही मूक-बघिर है। वह हाथ से सूत के धागे से चारपाई एवं पीढ़े भरने के काम में माहिर है। चारपाई औैर पीढ़े में परंपरागत भारतीय संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है। डिजाइनदार चारपाई एवं पीढ़े लोगों की पसंद भी है। चारपाई के पांच सौ रुपए तथा पीढ़े के दो सौ रुपए मिलते हैं। वर्तमान में लोग बने-बनाए चारपाई और पीढ़े खरीदने लगे हैं। इसके चलते सलीम का काम-काज ठप-सा हो गया है। अब सलीम को परिवार का खर्च चलाने में परेशानी उठानी पड़ रही है।
समय के साथ ढलना समझदारी
व्यवसायी उम्मेद मालू तथा पार्षद हैदर अली ने बताया कि वर्ष 2000 में सलीम के सर से पिता का साया उठ गया था। मूक-बघिर होने से उसे दूसरों की भाषा समझने या फि र सलीम की भाषा को समझने में परेशानी उठानी पड़ी। समय के साथ सलीम ने चुनरी पर आरा-तारी का काम शुरू कर दिया। इसकी कमाई से वह अपने से छोटे तीन भाइयों एवं मां-बहिन का भरण-पोषण करने लगा। बाद में सलीम ने अपने ननिहाल ददरेवा में नाना से चारपाई और पीढ़े बनाने का काम सीख लिया। इसके बाद उसने अच्छी मजदूरी कमाई, लेकिन सलीम के हुनर पर तकनीकी हावी हो गई। ऐसे में यह काम भी ठप-सा हो गया है। सलीम ने संकेतों से समझाया कि परंपरागत शैली को और हुनर को बचाने के लिए उसने यह काम शुरू किया था। जो अब खत्म सा हो गया है। महीने में कभी-कभार कोई काम आता है।
सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल
मोहम्मद सलीम सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी है। होली-दीपावली के पर्व पर वह अपने हिंदू समाज के लोगों के साथ मिलकर मनाता है। यही नहीं नगर पालिका प्रशासन की ओर से निकाली जाने वाली तीज पर तीज माता का आकर्षक शृंगार भी करता है।

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