चित्तौड़ जिले में तीन हजार से ज्यादा प्रसूताएं वंचित
चित्तौडग़ढ़ जिले में वर्ष २०२०-२१ में कुल १६ हजार ३०४ संस्थागत प्रसव हुए थे। इनमें से सिर्फ १३ हजार १४६ प्रसूताओं को ही योजना का लाभ दिया गया। जबकि ३ हजार १५८ प्रसूताएं संस्थागत प्रसव के बाद भी योजना के लाभ से ंवंचित रही। विभाग की लापरवाही और नियमों की बाधा के चलते सभी प्रसूताओं को यह लाभ नहीं मिल पाया।
चित्तौडग़ढ़ जिले में वर्ष २०२०-२१ में कुल १६ हजार ३०४ संस्थागत प्रसव हुए थे। इनमें से सिर्फ १३ हजार १४६ प्रसूताओं को ही योजना का लाभ दिया गया। जबकि ३ हजार १५८ प्रसूताएं संस्थागत प्रसव के बाद भी योजना के लाभ से ंवंचित रही। विभाग की लापरवाही और नियमों की बाधा के चलते सभी प्रसूताओं को यह लाभ नहीं मिल पाया।
प्रदेश में जालौर सबसे पीछे
संस्थागत प्रसव पर प्रसूताओं को जननी सुरक्षा योजना का लाभ देने में जालौर जिला सबसे पीछे रहा है। यहां वर्ष २०२०-२१ में कुल २१ हजार ३९४ संस्थागत प्रसव हुए थे, इनमें से मात्र १४ हजार ३५४ प्रसूताओं को ही इस योजना का लाभ दिया गया। जबकि ७ हजार १० प्रसूताओं को योजना के लाभ से वंचित कर दिया गया। जिन प्रसूताओं को लाभ नहीं मिला, उनका प्रतिशत ३२.९१ है। पिछड़े जिलों में दूसरे स्थान पर जयपुर द्वितीय है, जहां इस अवधि में १५ हजार ९८६ संस्थागत प्रसव हुए और मात्र १० हजार ७२९ प्रसूताओं को ही इस योजना का लाभ दिया गया। ५ हजार २५७ यानी ३२.८९ प्रतिशत प्रसूताएं लाभ से वंचित रही। जैसलमेर जिले में भी इस योजना को लेकर स्थिति संतोष जनक नहीं रही। यहां इस अवधि में कुल १० हजार ४०४ संस्थागत प्रसव हुए थे, लेकिन योजना का लाभ सिर्फ ७ हजार ६७ प्रसूताओं को ही मिला। ३ हजार ३३७ यानी ३२.०७ प्रतिशत प्रसूताएं योजना के लाभ से वंचित रही। इसी तरह बाड़मेर में ३०.६१, भरतपुर में २५.५८, अजमेर में १४.१८, बांसवाड़ा में १६.२३२, भीलवाड़ा में १२.२४, उदयपुर में १५.३६, जोधपुर में २८.३८, सिरोही में २५.४३, प्रतापगढ़ में २०.६६ फीसदी प्रसूताओं को जननी सुरक्षा योजना का लाभ नहीं मिला। प्रदेश में कोई भी जिला ऐसा नहीं रहा, जहां संस्थागत प्रसव होने पर सौ फीसदी प्रसूताओं को इस योजना का लाभ दिया गया हो। यह सरकारी आंकड़े इस योजना को आइना दिखा रहे हैं।
संस्थागत प्रसव पर प्रसूताओं को जननी सुरक्षा योजना का लाभ देने में जालौर जिला सबसे पीछे रहा है। यहां वर्ष २०२०-२१ में कुल २१ हजार ३९४ संस्थागत प्रसव हुए थे, इनमें से मात्र १४ हजार ३५४ प्रसूताओं को ही इस योजना का लाभ दिया गया। जबकि ७ हजार १० प्रसूताओं को योजना के लाभ से वंचित कर दिया गया। जिन प्रसूताओं को लाभ नहीं मिला, उनका प्रतिशत ३२.९१ है। पिछड़े जिलों में दूसरे स्थान पर जयपुर द्वितीय है, जहां इस अवधि में १५ हजार ९८६ संस्थागत प्रसव हुए और मात्र १० हजार ७२९ प्रसूताओं को ही इस योजना का लाभ दिया गया। ५ हजार २५७ यानी ३२.८९ प्रतिशत प्रसूताएं लाभ से वंचित रही। जैसलमेर जिले में भी इस योजना को लेकर स्थिति संतोष जनक नहीं रही। यहां इस अवधि में कुल १० हजार ४०४ संस्थागत प्रसव हुए थे, लेकिन योजना का लाभ सिर्फ ७ हजार ६७ प्रसूताओं को ही मिला। ३ हजार ३३७ यानी ३२.०७ प्रतिशत प्रसूताएं योजना के लाभ से वंचित रही। इसी तरह बाड़मेर में ३०.६१, भरतपुर में २५.५८, अजमेर में १४.१८, बांसवाड़ा में १६.२३२, भीलवाड़ा में १२.२४, उदयपुर में १५.३६, जोधपुर में २८.३८, सिरोही में २५.४३, प्रतापगढ़ में २०.६६ फीसदी प्रसूताओं को जननी सुरक्षा योजना का लाभ नहीं मिला। प्रदेश में कोई भी जिला ऐसा नहीं रहा, जहां संस्थागत प्रसव होने पर सौ फीसदी प्रसूताओं को इस योजना का लाभ दिया गया हो। यह सरकारी आंकड़े इस योजना को आइना दिखा रहे हैं।
यह है जननी सुरक्षा योजना
यह योजना सम्पूर्ण राज्य में वर्ष 2005 से लागू की गई थी। इसका उद्देश्य संस्थागत प्रसव को बढावा देकर मातृ एवं शिशु मृत्यु दर कम करना है। इसका लाभ सभी वर्ग की महिलाओं को सरकारी एवं चिन्हित गैर सरकारी संस्थान पर प्रसव कराने पर देय है। इस योजना के अन्तर्गत शहरी क्षेत्र में एक हजार रूपए व ग्रामीण क्षेत्र में १४ सौ रूपए का लाभ देय है। संबंधित आशा सहयोगिनी को तीन सौ रूपए गर्भवती महिलाओं के पंजीयन व जांचे पूरी करवाने पर तथा तीन सौ रूपए संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करने पर देय है। राज्य से बाहर की प्रसूताओं को राज्य में प्रसव होने पर एएनसर कार्ड प्रस्तुत करने पर योजना का लाभ देय है।
यह योजना सम्पूर्ण राज्य में वर्ष 2005 से लागू की गई थी। इसका उद्देश्य संस्थागत प्रसव को बढावा देकर मातृ एवं शिशु मृत्यु दर कम करना है। इसका लाभ सभी वर्ग की महिलाओं को सरकारी एवं चिन्हित गैर सरकारी संस्थान पर प्रसव कराने पर देय है। इस योजना के अन्तर्गत शहरी क्षेत्र में एक हजार रूपए व ग्रामीण क्षेत्र में १४ सौ रूपए का लाभ देय है। संबंधित आशा सहयोगिनी को तीन सौ रूपए गर्भवती महिलाओं के पंजीयन व जांचे पूरी करवाने पर तथा तीन सौ रूपए संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करने पर देय है। राज्य से बाहर की प्रसूताओं को राज्य में प्रसव होने पर एएनसर कार्ड प्रस्तुत करने पर योजना का लाभ देय है।
बैंक खातों की समस्या
नियमानुसार गर्भवती महिलाओं का पंजीयन होने के साथ ही उन्हें बैंक खाता खुलवाने के लिए प्रेरित करना होता है, लेकिन अधिकांश मामलों में प्रसव होने के बाद तक भी बैंक खाते नहीं खुलने या बैंक पासबुक की फोटो प्रति उपलब्ध नहीं करवाने से योजना का लाभ देने में परेशानी आ रही है।
नियमानुसार गर्भवती महिलाओं का पंजीयन होने के साथ ही उन्हें बैंक खाता खुलवाने के लिए प्रेरित करना होता है, लेकिन अधिकांश मामलों में प्रसव होने के बाद तक भी बैंक खाते नहीं खुलने या बैंक पासबुक की फोटो प्रति उपलब्ध नहीं करवाने से योजना का लाभ देने में परेशानी आ रही है।
डीजल महंगा, भुगतान की दर १७ साल पुरानी
संस्थागत प्रसव होने पर यदि प्रसूता निजी वाहन से अस्पताल तक पहुंचती है और अस्पताल से छुट्टी मिलने पर निजी वाहन से ही घर लौटती है तो उसे सिर्फ सात रूपए प्रति किलोमीटर की दर से ही भुगतान किया जाता है। यह दर वर्ष २००५ में योजना शुरू हुई तब की तय की हुई है। आज की परिस्थितियों में डीजल और पेट्रोल बहुत महंगा है, ऐसे में सात रूपए की दर ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है।
संस्थागत प्रसव होने पर यदि प्रसूता निजी वाहन से अस्पताल तक पहुंचती है और अस्पताल से छुट्टी मिलने पर निजी वाहन से ही घर लौटती है तो उसे सिर्फ सात रूपए प्रति किलोमीटर की दर से ही भुगतान किया जाता है। यह दर वर्ष २००५ में योजना शुरू हुई तब की तय की हुई है। आज की परिस्थितियों में डीजल और पेट्रोल बहुत महंगा है, ऐसे में सात रूपए की दर ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है।