Independence Day: 1857 से पहले यहां हुआ था फिरंगियों के खिलाफ विद्रोह लेकिन…

इतिहास के अनदेखे अध्यायों में 1857 से 15 साल पहले फिरंगियों के खिलाफ बुंदेलखंड में विरोध की चिंगारी सुलगने की रोशनी मिलती है.

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चित्रकूट: ब्रिटिश साम्राज्य की जंजीरों में कैद भारत मां को मुक्त कराने के लिए असंख्य वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी. बर्तानिया हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंकते हुए क्रांतिवीरों ने आज़ादी की लड़ाई का शंखनाद किया. यूं तो इतिहास के उजले पन्नों पर स्वतंत्रता आंदोलन की पहली लड़ाई सन 1857 में बताई जाती है लेकिन इतिहास के उन्ही अनदेखे अध्यायों में 1857 से 15 साल पहले फिरंगियों के खिलाफ बुंदेलखंड में विरोध की चिंगारी सुलगने की रोशनी मिलती है. इस आंदोलन की गूंज भगवान श्री राम की तपोभूमि चित्रकूट में भी गूंजी थी और क्रांतिवीर भारत मां की आजादी का सपना लिए फांसी के तख़्त पर चढ़ गए थे. आज भी सन 1842 के ब्रिटिश गजेटियर में इस क्रांति का उल्लेख मिलता है.
तपोभूमि में भड़की विद्रोह की चिंगारी


विद्रोह के दौरान 6 जून 1842 को बुंदेलखण्ड के चित्रकूट जनपद की मऊ तहसील में 5 फिरंगियों को फांसी पर लटका दिया गया था. बताया जाता है कि अंग्रेजों द्वारा चित्रकूट में गोकशी को लेकर विद्रोह की ये चिंगारी भड़की थी. उस समय जनपद में मराठा शासकों का राज था लेकिन बर्तानियां हुकूमत के आगे वे भी गोकशी के खिलाफ विरोध नहीं कर पा रहे थे. दिनों दिन जनता में इस बात को लेकर विद्रोह की चिंगारी आग का रूप ले रही थी. बुंदेलों ने एक दूसरे को एकत्र करते हुए जनजागरूकता फैलाई और 6 जून 1842 को मऊ तहसील को घेरते हुए अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया और अदालत लगाते हुए 5 फिरंगियों को फांसी दे दी गई. तत्कालीन बांदा गजेटियर 1842 में इस घटना का उल्लेख मिलता है. क्रांति की चिंगारी लपटें बनकर आस पास के इलाकों में भी फ़ैल गईं और बांदा का बबेरू बाजार भी अंग्रेजों से क्रांतिकारियों ने आजाद करा लिया. उसके बाद तिंदवारी तहसील में भी बुंदेली क्रांतिवीरों ने कब्जा करते हुए सरकारी अभिलेख जला दिए. 15 जून 1842 को क्रांतिकारियों ने बांदा में फिरंगी अफसर काकरेल की हत्या कर अंग्रेजों में क्रांति के प्रति खौफ कायम करने का प्रयास किया और युद्ध परिषद का गठन कर बुंदेलखण्ड को आजाद घोषित कर दिया गया.
कुचल दिया गया आंदोलन

इन सबके बावजूद क्रांतिकारियों का कोई ठोस नेतृत्व न होने और छोटे बड़े रियासतों के राजाओं की गद्दारी के चलते अंग्रेजों ने बुंदेलखण्ड से भड़कने वाली विद्रोह की इस चिंगारी को बुझा दिया और आंदोलन को कुचल दिया गया. अंग्रेजों ने क्रांति के दौरान अपनी सहायता के लिए बांदा के नवाब से गुहार लगाई थी और पन्ना छतरपुर गौरिहार व् अजयगढ़ के राजाओ को आंदोलन को कुचलने के लिए तैयार किया था. हालांकि कुछ राजाओं के सैनिकों ने फिरंगियों के खिलाफ बुंदेलों के विद्रोह में उनकी सहायता भी की थी.

आजादी की लड़ाई की कहानी कहते खंडहर


जिले में ऐसे कई स्थान हैं जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांतिकारियों के बलिदानों की कहानियां बयां करते हैं. आजादी के इतने वर्षों के बाद भी इन स्थानों को सुरक्षित व सरंक्षित करने का कच्छप प्रयास भी परवान नहीं चढ़ पाया. बतौर उदाहरण जनपद की ब्रिटिश कालीन मऊ तहसील मानिकपुर थाना आदि ऐसे ऐतिहासिक स्थान हैं जो स्वतंत्रता आंदोलन की निशानियों के रूप में आज भी खंडहर बनकर अपने दिन बहुरने की आस में हैं.
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