नगरनिगम की गोशाला, खर्च लाखों में आमदनी शून्य

महीनेभर में सौ क्विंटल भूसे की होती है खपत, आठ से अधिक कर्मचारियों की ड्यूटी

<p>chhindwara</p>

छिंदवाड़ा। नगर निगम क्षेत्र में स्थित पाठाढाना गोशाला में आवारा गोवंशों को पकडकऱ रखा जाता है। नगर निगम वर्षभर में सिर्फ उनकी खुराक पर दस लाख रुपए से अधिक खर्च कर रहा है। हालांकि इन गोवंशों से निगम को कोई आय नहीं होती है। सडक़ पर बैठे गोवंश किसी की मौत का कारण न बनें और गोवंशों की भी सुरक्षा होती रहे, इसी उद्देश्य से नगर निगम द्वारा हर महीने 100 क्विंटल भूसे की खुराक पाठाढाना गोशाला की गायों को दी जाती है। जोन प्रभारी रामवृक्ष यादव ने बताया कि गायों के लिए करीब चार ट्रॉली भूसे की जरूरत हर महीने पड़ती है। इसे ऑफ सीजन में नौ रुपए किलो तक खरीदना पड़ता है।जिसकी कीमत करीब 90 हजार रुपए तक आ जाती है।

आठ कर्मचारी करते हैं नियमित ड्यूटी
गोशाला के प्रबंधन का दायित्व देख रहे नीरज गोदरे सहित कुल आठ कर्मचारियों की नियमित ड्यूटी गायों की देखरेख के लिए लगाई गई है। इनमें से चार कर्मचारियों का काम गोशाला में साफ-सफ ाई करना है। इसके अलावा सब्जी मंडी से गायों के लिए बची हुए सब्जियां भी इन्हीं कर्मचारियों से मंगवाई जाती हैं। इन सब में निगम का महीने में करीब 75 हजार रुपए वेतन एवं मानदेय के रूप में अतिरिक्त खर्च होता है।

गोशाला से नहीं है कोई आमदनी
नगर निगम द्वारा गोशाला में सालाना करीब 20 लाख रुपए खर्च किया जाता है लेकिन आय के स्रोत के रूप में सिर्फ वे गौवंश हैं जिन्हें सडक़ों से पकडकऱ बंद किया जाता है अथवा किसी के द्वारा गोवंश के लिए दान दिया जाता है। जुलाई माह में करीब 50 गोवंश पकड़े गए। इनमें से छह गोवंशों को उनके मालिक कुल 7600 रुपए जुर्माना व खुराकी की रकम भरकर छुड़ाए, लेकिन शेष गोवंश अभी बंद हैं। इसी तरह पिछले डेढ़ साल में पाठाढाना गोशाला में करीब 150 से अधिक गोवंश स्थाई रूप से हैं। इनसे न तो जैविक खाद के रूप में और न ही दूध के रूप में आय हो रही है।

इनका कहना है
आवारा गोवंश को रखने के लिए पाठाढाना गोशाला में व्यवस्था की गई है। उनके लिए खुराकी व कर्मचारियों के खर्च तो हैं ही, साथ ही बीमार गोवंश के लिए डॉक्टरों एवं दवाओं की व्यवस्था भी की जाती है।
अनंत कुमार धुर्वे
सहायक आयुक्त निगम

कांजी हाउस में जो अपने गोवंश छुड़ाने आते हैं वही शुल्क बतौर जुर्माना जमा होता है। जो गोवंश बूढ़ी हो जाती हैं, दूध नहीं देती, उन्हें उनके मालिक लेने नहीं पहुुंचते।
अनिल मालवी, प्रभारी स्वास्थ्य अधिकारी

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