(चंडीगढ): पंजाब विधानसभा में पिछले 28अगस्त को सम्पन्न हुए मानसून सत्र में पारित धार्मिक ग्रथों के अपमान पर आजीवन कारावास की सजा तय करने वाला भारतीय दण्ड संहिता पंजाब संशोधन विधेयक एक बार फिर असहमति के घेरे में आ गया है।
देश के करीब तीन दर्जन पूर्व नौकरशाहों ने इसे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ बताया है। उन्होंने पंजाब कैबिनेट से अपील की है कि इस विधेयक को वापस लिया जाए। इससे पहले पंजाब की अकाली दल सरकार ने गुरूग्रंथ साहिब के अपमान पर आजीवन कारावास की सजा के लिए भारतीय दण्ड संहिता पंजाब संशोधन विधेयक 2016 पारित करवाया था लेकिन इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी नही मिली थी क्योंकि इसमें सिर्फ एक ही धर्म के ग्रंथ गुरूग्रंथ साहिब के अपमान पर आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया था।
एक ही धर्म पर आधारित विधेयक को सभी धर्मों की समानता के सिद्धांत के विपरीत देखा गया। इसके बाद पंजाब की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने सिख धर्म के साथ सनातन धर्म के ग्रंथ गीता और इस्लाम के ग्रंथ कुरान,ईसाई ग्रंथ बाइबल को शामिल कर इनके अपमान पर आजीवन कारावास के प्रावधान के लिए भारतीय दण्ड संहिता पंजाब संशोधन विधेयक पारित कराया है। विधेयक को अभी राष्ट्रपति की मंजूरी मिलना बाकी है।
धार्मिक ग्रंथों के अपमान पर सीएम का बयान
इधर गुरू ग्रंथ साहिब की बेअदबी के मामले पर अपना रूख साफ करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने कहा कि गुरू ग्रंथ साहब के अपमान के कुछ मामलों में आईएसआई का हाथ होने की आशंका है। मुख्यमंत्री के इस बयान को असली दोषियों और अकालियों को बचाने के नजरिए से देखा जा रहा है।
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