बूंदी

दुर्लभ व लुप्त होते वन्यजीवों का आशियाना बन रहे हाड़ौती के जंगल

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Published: September 14, 2021 09:39:41 pm
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1. कैरेकल
जंगली बिल्लियों में गिना जाने वाला वन्यजीव कैरेकल या सियागोश है। हाड़ौती में यह रामगढ़ विषधारी अभयारण्य, भैंसरोडगढ़ और मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में मिलता है। हालांकि गिने चुने होने के कारण यह दिखाई नहीं देता और न ही वन्यजीव गणना में इसकी मौजूदगी का कोई सबूत मिलता है। रामगढ़ विषधारी अभयारण्य में वर्ष 2005 तक इसकी मौजूदगी वन्यजीव गणना में भी मिलती है। 2005 में यहां 5 कैरेकल गणना में आए थे। हालांकि विभाग के कर्मचारियों का कहना है कि कैरेकल अभी भी यहां मौजूद है।

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रस्टी स्पोटेड केट दुनिया की सबसे छोटी बिल्ली के नाम से पहचानी जाने वाली रस्टी स्पोटेड केट भी हाड़ौती में मिलती है। यह शर्मीली होने के कारण आसानी से नजर नहीं आती। ऐसे में इसे आमतौर पर देखना भी काफी मुश्किल हो जाता है। हाड़ौती में रामगढ़ विषधारी अभयारण्य में इसकी मौजूदगी मानी जाती है। वर्ष 2014 में एक सड़क दुर्घटना में मृत रस्टी स्पोटेड केट मिली थी। इसके बाद से इसकी पुष्टि भी हो गई।

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चौसिंगा शाकाहारी वन्यजीवों में चौसिंगा काफी दुर्लभ हो गया। इसके सिंगों के कारण इसका शिकार भी काफी हुआ। ऐसे में यह अब दिखाई नहीं देता, लेकिन हाड़ौती में रामगढ़ विषधारी अभयारण्य, भैंसरोडगढ़ और मुकुंदरा में इसकी उपस्थिति मानी जाती है। ट्रेकिंग के दौरान इसे देखा भी गया, लेकिन ऐसे मौके एक-दो बार ही आए बताए। हालांकि वन्यजीव प्रेमी और वन विभाग के कर्मचारी मानते हैं कि कुछ गिने चुने चौसिंघा यहां मौजूद है।

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रेटल (कबर बिज्जू) कबर बिज्जू हाड़ौती क्षेत्र में मिल रहे हैं। यदि राजस्थान की बात की जाए तो पूरे प्रदेश में इनकी उपलब्धता अधिकांशत हाड़ौती के शेरगढ़ और रामगढ़ में ही है। रामगढ़ के जैतपुर रेंजर धर्मराज गुर्जर ने बताया कि कबर बिज्जू रामगढ़ में अच्छी स्थिति में है। कई बार फोटो ट्रेप कैमरे में भी इसका फोटो आया है।

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गोडावण के लिए योजना जरूरी वर्ष 1996 तक बारां के सोरसन में गोडावण की संख्या 5 बताई जाती है, लेकिन इसके बाद यह यहां से लुप्त हो गए। इन्हें यहां फिर से बसाने के लिए सरकार ने योजना भी बनाई। विभाग ने डब्ल्यूआइआइ से वैज्ञानिकों की मांग की, लेकिन उनके उपलब्ध नहीं होने से इन्हें सोरसन में बसाने का काम आगे नहीं बढ़ सका।

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उदबिलाव जल की बात हो और चंबल नदी का नाम न आए, ऐसा हो नहीं सकता। और चंबल नदी की बात हो तो यहां पाए जाने वाले उदबिलाव का जिक्र भी जरूर होगा। उदबिलाव लुप्त होती प्रजातियों में शामिल है। गिनी-चुनी संख्या होने के कारण इसे रेयरेस्ट माना जाता है, लेकिन हाड़ौती में यह चंबल नदी में मिलता है। रावतभाटा के पास सेटल डेम, जवाहर सागर में इसे देखा गया है। वहां इनकी कॉलोनी मिली है।

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भेडिय़ा एक और लुप्त होती प्रजाति है भेडिय़ा। इसकी मौजूदगी भी रामगढ़ विषधारी अभयारण्य, डाबी, जवाहर सागर क्षेत्र में मिली है। इसके अलावा जवाहर सागर क्षेत्र में भी इसके होने के संकेत मिलते हैं। वन्यजीव प्रेमी पृथ्वी सिंह राजावत ने बताया कि कुछ समय पहले ही बरधा बांध में पक्षियों के फोटो लेते समय भेडिय़ा दिखाई दिया था। हाड़ौती क्षेत्र में दुर्लभ वन्यजीव मिलते हैं। सबसे ज्यादा दुर्लभ प्रजाति ऑटर यानि उदबिलाव

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