हेपेटाइटिस ए को ‘इंफेक्टिव हेपेटाइटिस’ कहते हैं। यह रोग दूषित पानी, खानपान और इसके रोगी के संपर्क में आने से फैलता है। हेपेटाइटिस बी को ‘वायरल हेपेटाइटिस’ भी कहते हैं। लार, रक्त व शरीर के स्रावों के जरिए जब यह वायरस रक्त में प्रवेश कर जाता है तो हेपेटाइटिस हो जाता है।
क्या हैं लक्षण
हेपेटाइटिस की शुरुआत में कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते। सामान्य रूप से इस रोग की पहचान भूख की कमी एवं कमजोरी से होती है। कुछ दिनों के बाद ये लक्षण उल्टी, बुखार और सिरदर्द में परिवर्तित हो जाते हैं। रोगी को कमजोरी महसूस होती है और उसके पेशाब का रंग पीला या नारंगी हो जाता है। लिवर बहुत बड़ा हो जाता है और दाहिनी पसलियों के नीचे दर्द होता है व अंत में व्यक्ति को पांडु (पीलिया) रोग हो जाता है। इस रोग में लिवर रक्त से दूषित पदार्थ को साफ नहीं कर पाता है।
प्रारंभिक उपचार: इसमें पीडि़त को पूर्ण आराम और हल्का भोजन करना चाहिए, पानी खूब पिएं, धूप लें, पेशाब का रंग पीला रहने तक घी, मसाले आदि से परहेज करें। बुखार हो तो इसके खत्म हो जाने पर दिन में तीन-चार बार सब्जी का सूप लें। इसके बाद उबला भोजन लेना चाहिए। फल और दूध जरूर लें।
यौगिक उपचार
आसन : अगर बीमारी के दौरान मांसपेशियां एवं जोड़ कड़े हो गए हों तो पवन मुक्तासन, सूर्य नमस्कार तीन से सात चक्र सूर्योदय के समय कर सकते हैं।
प्राणायाम : भस्त्रिका, सूर्यभेदन, नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास इसमें राहत देता है।
मुद्रा एवं बंध : पाशिनी मुद्रा, योगमुद्रा, विपरीतकरणी मुद्रा से इसका उपचार किया जाता है।
इन आसनों के रोजाना अभ्यास से शरीर और दिमाग का तनाव दूर होकर मन को सुकून मिलता है। लेकिन इन्हेें किसी विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही करें।
इस रोग में टहलना, कुंजल क्रिया और योग निद्रा फायदा करती है।