अपने तन-मन और आत्मा का खयाल रखिए
मनोवैज्ञानिक शेैरिल जीगलर कहते हैं कि मोबाइल सोसायटी के इस दौर में परिवार के सदस्य रोजगार के सिलसिले में काफी दूर रहते हैं, धर्म के प्रति हमारा रुझान घट रहा है। ऐसे में हम में से बहुत अपने परिजनों, परिवार और समुदाय से दूर होते जा रहे हैं। जब हालात बुरे हों या कोई हादसा हो जाए तो ऐसे में हम किस के पास मदद के लिए जाएंगे? अपना दुख कहने के लिए हम अक्सर मंदिर-मस्जिद या बउ़ों के पास जाते थे। यह जरूरी नहीं कि आप आज भी मंदिर-मस्जिद या गुरुद्वारे में ही जारएं लेकिन अपने मन में कहीं न कहीं अध्यात्मिकता का दयिा जला कर रखें। फिर चाहे आपकी मान्यताएं कोई भी हों। यदि आपके पास कोई समुदाय नहीं है, एक बनाओ। क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है।