जोड़ों को जकड़ता है रुमेटाइड आर्थराइटिस

रुमेटाइड आर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है, जो व्यक्ति के जोड़ों में विकृति व विकलांगता पैदा कर सकती है। इसमें जोड़ों में दर्द व सूजन आ…

<p>Rheumatoid arthritis</p>

रुमेटाइड आर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है, जो व्यक्ति के जोड़ों में विकृति व विकलांगता पैदा कर सकती है। इसमें जोड़ों में दर्द व सूजन आ जाती है जिससे इनका मूवमेंट कम हो जाता है। वैसे इस बीमारी से शरीर का कोई भी जोड़ प्रभावित हो सकता है, लेकिन ज्यादातर यह समस्या हाथों व पैरों के जोड़ों में देखने को मिलती है।

यह परेशानी किसी भी आयुवर्ग के लोगों को हो सकती है। पर आमतौर पर इसके लक्षण 40-६० की उम्र के बीच सामने आते हैं साथ ही पुरुषों की तुलना में महिलाएं इस रोग से अधिक ग्रसित होती हैं।


ये हैं लक्षण


यह ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें रोग प्रतिरोधक तंत्र की कुछ कोशिकाएं सही तरीके से काम नहीं कर पातीं और हमारे स्वस्थ ऊत्तकों पर हमला करना शुरू कर देती हंै। जोड़ों में जकडऩ, वजन कम होना, बुखार बने रहना, भूख कम लगना आदि इसके प्रारंभिक लक्षण हैं। जोड़ों में जकडऩ की समस्या सुबह के समय एक-दो घंटे या फिर दिनभर भी हो सकती है।


बच्चों में परेशानी


बच्चों में यह दिक्कत 16 या इससे कम उम्र में देखने को मिलती है। इसे जुवेनाइल रुमेटाइड आर्थराइटिस कहा जाता है। सुबह उठने के बाद पैर से लंगड़ाकर चलना व एक या दोनों आंखें लाल होना इसके प्रारंभिक लक्षण हैं। ये परेशानी बच्चों में थोड़े दिनों के लिए या जीवनपर्यंत भी हो सकती है। इसके कारण बच्चों का विकास रुक सकता है।

 

कारण

 

यह समस्या आनुवाशिंक वजहों से हो सकती है।
हार्मोन संबंधी परेशानी होने से स्त्रियों में इसका खतरा बढ़ जाता है।
जिन लोगों के दांतों व आंतों में बार-बार इंफेक्शन होता है, उनमें भी इसकी आशंका होती है।


धूम्रपान व अन्य नशीले व्यसनों से भी बीमारी का जोखिम बढ़ता है।
थायरॉइड के मरीजों में भी इसका खतरा अधिक होता है।

यह करें

दर्द वाले स्थान पर ठंडा सेंक करें। इससे दर्द व सूजन में राहत मिल सकती है।
अधिक परिश्रम वाले काम के दौरान बीच-बीच में थोड़ा आराम करें।
आठ घंटे की पूरी नींद लें।


फिजियोथैरेपिस्ट की मदद से ऐसे व्यायाम करें जिनसे दर्द में राहत मिले।
डॉक्टर के अनुसार समय पर दवाएं लें।
जिन लोगों का 40 वर्ष की उम्र से पहले जोड़ प्रत्यारोपण हुआ है, वे भी डॉक्टरी सलाह से समय-समय पर आर्थराइटिस की जांच करवाते रहें।

ऐसे पता चलती है बीमारी

खून की जांच : इसमें खून की सामान्य जांच के जरिए डॉक्टर आरए फैक्टर, ईएसआर, सीआरपी, ब्लड काउंट, एएनए व यूरिक एसिड आदि के स्तर को देखकर रोग का पता लगाते हैं।
रेडियोग्राफिक जांच : हड्डियों में किसी प्रकार की क्षति का पता लगाने के लिए कई बार एक्स-रे व
एमआरआई भी कराते हंै।

 

इलाज


इसमें चिकित्सक स्टेरॉइड्स रहित दवाओं के जरिए सुबह होने वाली जकडऩ, सूजन व दर्द को नियंत्रित करते हैं। साथ ही एंटीरुमेटिक दवाओं की मदद से बीमारी को आगे बढऩे से रोकते हैं। यदि जोड़ गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं व मरीज असहनीय दर्द से पीडि़त है तो ऐसी स्थिति में रोगी को जोड़ प्रत्यारोपण की सलाह दी जाती है।


गर्भवती महिलाएं ध्यान रखें


गर्भावस्था के दौरान स्वाभाविक रूप से बीमारी का असर कम हो जाता है। लेकिन शिशु को जन्म देने के तीन माह बाद यह परेशानी पहले की तुलना में अधिक गंभीर होकर सामने आ सकती है। इसलिए ऐसी महिलाएं जो गर्भाधारण से पहले ही इस बीमारी से पीडि़त रही हैं, वे गर्भ नियोजन से तीन माह पूर्व इसकी जानकारी अपने डॉक्टर को दें। ताकि वे आवश्यकतानुसार दवाओं में बदलाव करके भविष्य में होने वाली किसी भी तरह की परेशानी को आगे बढऩे से रोक सकें।


अधिक दिनों की अनदेखी से


जोड़ों की भीतरी परत में सूजन होने के कारण कार्टिलेज व हड्डी दोनों को नुकसान पहुंच सकता है। ऐसे में हड्डियों का आकार विकृत हो सकता है।


जोड़ों में दर्द व गतिविधि कम या बंद हो सकती है।
फेफड़ों की भीतरी परत, हृदय के आसपास व रक्तवाहिनियों में सूजन आ सकती है।
खून की कमी होने लगती है।


सफेद रक्तकणिकाओं में कमी होने से कई बार प्लीहा (रक्त को शुद्ध करने का काम करता है) का आकार बड़ा हो जाता है।

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