बच्चों में होने वाली दुर्लभ बीमारियां

भारत में सात करोड़ से अधिक आबादी प्रोजेरिया और डिस्लेक्सिया जैसी दुर्लभ बीमारियों (रेयर डिजीज) से पीडि़त है। प्रोजेेरिया के बारे में फिल्म ‘पा’ और…

<p>dyslexia</p>

भारत में सात करोड़ से अधिक आबादी प्रोजेरिया और डिस्लेक्सिया जैसी दुर्लभ बीमारियों (रेयर डिजीज) से पीडि़त है। प्रोजेेरिया के बारे में फिल्म ‘पा’ और डिस्लेक्सिया पर ‘तारे जमीं पर’ फिल्म से लोगों में थोड़ी जागरुकता आई लेकिन ऐसी ६८०० से अधिक रेयर डिजीज और भी हैं जिनके बारे में हम जानते भी नहीं। दुनियाभर में लगभग ३५ करोड़ लोग इनसे पीडि़त हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों के जन्म के समय सचेत रहें तो कुछेक का इलाज संभव है।

अल्ट्रा रेयर डिजीज

अलग-अलग देशों में इसके अलग-अलग मानक हैं। भारत में दस हजार की आबादी में किसी एक को होने वाली बीमारी को रेयर जबकि एक लाख की आबादी में से दो लोगों को होने वाली बीमारी को अल्ट्रा रेयर डिजीज कहते हैं।

ये हैं लक्षण

दौरा या बेहोशी।
शरीर में अकडऩ या शिथिलता।
बार-बार बिना वजह उल्टी।
शरीर या पेशाब से तेज दुर्गंध।
त्वचा में बदलाव या दाने निकलना।
समय के साथ मानसिक या शारीरिक विकास न होना।
सिर का सामान्य से छोटा या बड़ा होना।
सांस ज्यादा तेज या धीमे आना।
चेहरे पर अजीब और असमय बदलाव।
मोतियाबिंद होना।
कमजोर हड्डियां ।


४१ लाख से ज्यादा रेयर डिजीज के मरीज राजस्थान में।
५-७ साल लगते हैं एक ेयर डिजीज की पहचान में।
५०त्न रेयर डिजीज जन्म से।
१९८३ में पहली बार अमरीका में बनी थी इसकी दवा।
३.३० लाख करोड़ रु. का दुुनियाभर में दवा कारोबार।

५०० प्रकार की दवाएं हैं अभी रेयर डिजीज के मरीजों के लिए।

कुछ अन्य बीमारियां और उनके लक्षण

प्रोजेरिया

फिल्म ‘पा’ में अमिताभ बच्चन ने इससे पीडि़त बच्चे का रोल किया था। यह ८० लाख में एक को होती है। इसमें सिर बहुत बढ़ जाता है और बच्चा बूढ़ा दिखने लगता है।

एएलएस

यह रेयर डिजीज प्रसिद्ध वैज्ञानिक और लेखक स्टीफन हॉकिंग्स को भी है। इसमें पीडि़त का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है। जिससे कुछ भी नहीं किया जा सकता है।


फिनाइल किटोनूरिया

यह एंजाइम की कमी से होता है। इसमें दिमागी विकास रुक जाता है।

गेलैक्टोसीमिया

इस बीमारी में मरीज को चीनी नहीं पचती। वजन नहीं बढ़ता है। शारीरिक विकास पूरी तरह से रुक जाता है।

बेंगलुरु से शुरू हुआ है अभियान

दुर्लभ बीमारियों से पीडि़त नौ मरीजों के अभिभावकों ने देश में रेयर डिजीज के मरीजों के लिए एक संस्था ‘रेयर डिजीज ऑफ इंडिया’ (ओआरडीआई) की स्थापना दो साल पहले बेंगलुरु में की।

अब संगठन में ३०० से अधिक डॉक्टर हैं जो नि:शुल्क परामर्श देते हैं। ओआरडीआई की ओर से देश में पहला हेल्प लाइन नंबर ०८८९२५५५००० शुरू किया गया है। इस नंबर पर रेयर डिजीज मरीजों के परिजन संपर्क कर मदद ले सकते हैं।

बचाव की संभावना

अधिकतर रेयर डिजीज से बचाव संभव नहीं है क्योंकि इनके कारणों का पता नहीं चल पाता। जेनेटिक कारणों से होने वाली २० फीसदी रेयर डिजीज में गर्भ के समय ही बचाव संभव है पर ऐसी तकनीक अपने देश में बहुत कम है।

नवजात में कुपोषण के कारण होने वाली ऐसी बीमारियों की पहचान कर इलाज की तकनीक हमारे देश में भी आ चुकी है। इसके लिए जन्म के बाद न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग क रानी चाहिए।

कराएं न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग

न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग में बच्चे के जन्म के समय ही खून की जांच होती है। अमरीका जैसे देशों में नवजात बच्चों की करीब ४५ प्रकार की जांचें होती हैं। जबकि भारत में २२-२५ प्रकार की जांच होने लगी हैं। जांच में ऐसी करीब २० प्रकार की रेयर डिजीज की पहचान हो जाती है जो कुपोषण से होती हैं। इनका समय रहते इलाज केवल डाइट मैनेजमेंट से हो सकता है।

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.