पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए घातक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में काम आने वाली सामग्रियों का अपशिष्ट पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए घातक है। इनके गैर-वैज्ञानिक तरीके से निपटान किए जाने से पानी, मिट्टी और हवा जहरीले होते जा रहे हैं। वर्षा का पानी जमीन में दबे ई वेस्ट के जहरीले और रासायनिक पदार्थ को भूजल में मिला रहा है। ये जहर स्वास्थ्य पर भी कहर बरपा सकता है। इनमें सीसा, कैडमियम, मर्करी, पॉलीक्लोरिनेटेड बाई फिनाइल, ब्रॉमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंटेस, आर्सेनिक, एस्बेस्टॉस व निकल जैसे खतरनाक रसायन होते हैं। फोटो नौशाद अली
प्रदेश में इलेक्ट्रॉनिक कचरा तेजी से बढ़ रहा है। हालात यह है कि बीते पांच साल में इसकी मात्रा चार गुणा बढ़ गई, लेकिन इसकी रीसाइक्लिंग की तरफ हमारा ध्यान नहीं जा रहा है। जबकि राजस्थान में ई वेस्ट मैनेजमेंट नीति पिछले साल जारी की जा चुकी है। इस पर गंभीरता से अमल नहीं हो रहा है। प्रदेश की स्थिति तो यह है कि महज छह जिलों में ही राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल की ओर से अधिकृत ई कचरे की रीसाइक्लिंग, रीफर्बिशिंग और डिसमेंटल करने की सुविधा उपलब्ध है। कई शहरों में तो यह वेस्ट इकट्ठा करने के लिए सत्यापित कलेक्शन सेंटर तक नहीं है। राज्य में आज भी यह कचरा कबाडिय़ों और स्क्रेप डीलर के भरोसे ही गैर वैज्ञानिक तरीके से निस्तारित हो रहा है। उपभोक्ताओं से प्राप्त ई वेस्ट रीसाइकलिंग के लिए अधिकृत पुनर्चक्रणकर्ताओं (रीसाइकलर्स) तक नहीं पहुंच रहा है। व्यापक नेटवर्क के कारण अधिकांश ई वेस्ट कबाड़ी वालों जरिए ही एकत्रित और संसाधित किया जा रहा है। फोटो नौशाद अली
कबाड़ी नेटवर्क के भरोसे ही ई-कबाड़ प्रदूषण नियंत्रण मंडल खुद मानता है कि स्क्रैप डीलर और कबाड़ी नेटवर्क घर-घर संग्रह में पारंगत है। लेकिन इनकी प्रसंस्करण तकनीक ठीक नहीं है। खुले और मैन्युअल विखंडन, बर्निंग, एसिड लीचिंग और अनियंत्रित डंपिंग से इस काम में लगे श्रमिकों और पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। इस पूरे नेटवर्क में पग-पग पर खतरा मंडरा रहा है लेकिन कोई नहीं चेत रहा। फोटो नौशाद अली