सिर से दूर होती राजस्थान की पहचान पगड़ी

सिर से दूर होती राजस्थान की पहचान पगड़ी

<p>सिर से दूर होती राजस्थान की पहचान पगड़ी</p>

स्टोरी बाय विनोद भोजक
बीकानेर. राजस्थान की आन शान की प्रतिक पगड़ी अब ग्रामीणों है दूर होती जा रही है। अगर किसी के सिर पर पगड़ी होती तो अपने आप ही यह आभास हो जाता था कि यह आदमी राजस्थानी है। उसकी रहने सहन और पहनावे से ही आभास होता था कि राजस्थान की पहचान हो जाती है। लेकिन जब से ग्रामीण का रुझान शहरों की तरफ होना शुरू हो गया था तभी से ही ग्रामीणों का रहन सहन और खान-पान में बदलाव आना शुरू हो गया था। इसके अलावा गांव की जिंदगी में भी बदलाव आना शुरू हो गया है। यह सही है कि अब शिक्षा ही सबकुछ हो गई है। ग्रामीणों की रुचि भी शिक्षा के प्रति होने लगी है। यह एक शुभ संकेत भी है। इसलिए ग्रामीण युवा अपनी भूमि को छोड़कर शहरों कु तरफ जा रहे हैं। लेकिन उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि वे अपने रहन सहन और खान-पान से भी दूर नहीं होना चाहिए। आज शहरों की तरफ आ रहे ग्रामीण युवाओं को पगड़ी पहनने में शरम आने लगी है। उन्हें यह लगने लगा है कि अगर शहरों में भी पगड़ी पहनना शुरू कर दिया तो लोग उन्हें अनपढ़ और गंवार समझने लगते है। लेकिन उन्हें यह नहीं लगता कि अगर सिर पर पगड़ी नहीं होगी तो आपकी पहचान ही खत्म होती जाएगी। आज राजस्थान की पहचान न केवल किलों, कुओं और मरुस्थल से ही नहीं है। पगड़ी भी राजस्थान की पहचान में अपना अहम स्थान रखता है। यही वजह है कि अगर कोई बाहरी व्यक्ति भी गांव आता है तो उसका स्वागत पगड़ी पहना कर ही किया जाता है। क्यों कि कहा भी जाता है कि पगड़ी अगर सिर से उतर गई तो सबकुछ उतर गया। पगड़ी के लिए तो गांव तथा परिवार की इज्जत है। पगड़ी उतर गई तो सब उतर गया।

यह भी गांवों में देखा जाता है कि बड़े बड़े फैसलों के लिए भी पगड़ी का ही सहारा लिया जाता है। कई लोग तो किसी बात को मनाने के लिए अपनी पगड़ी कौन ही सामने वाले के आगे रख देते थे। इतना सब होते हुए भी आज का युवा पगड़ी से दूर होता जा रहा है। क्योंकि उसे लगता है कि पगड़ी तो बुजुर्ग है की पहचान बन कर रह गई है। शहरीकरण होने के कारण गांवों में अब युवा रहना भी नहीं चाहता है। उसे लगता है कि गांव की जिंदगी रहने लायक नहीं है। शहर की चमक-दमक ही उसे अपने गांव से दुर करती आ रही है। वह अपने संस्कारों से दूर होता जा रहा है। खान-पान और पहनावे से दूर होता जा रहा है। उसे यह नहीं लग रहा है कि अगर संस्कार ही नहीं रहेंगे तो कुछ भी नहीं रहेगा। ग्रामीण युवाओं को यह सोचना चाहिए कि चाहे शहर में वह कितना ही रहे और पैसा कमाने के लिए कहीं पर भी नौकरी करें लेकिन अपने पहनावे को नहीं भूलना चाहिए। अब तो लोग साफा केवल शादी समारोह या तीज त्यौहार पर ही पहनते है।

राजस्थान में ऐसे बहुत सी शख्सियते है जो आज भी साफा पहनते हैं जिनमे से एक नाम बीकानेर के सांसद व केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल का हैं उनके अलावा और भी बहुत से नाम है जो नियमित साफा पहनें रखते हैं।
हिममतासर गांव के रेवंतराम इनखिनया का कहना है साफा ना सिर्फ़ हमारी संस्कृती का अहम हिस्सा है बल्कि राजस्थान की पहचान है… जहॉ आज के ना सिर्फ़ शहरी बल्कि ग्रामीण युवा भी साफा पहनने से कतराता है क्युंकि उन्हे ऐसा लगता हैं की ऐसा करने से लोग उन्हे अनपढ़ गंवार समझेंगे।
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