समलैंगिकता कोई अपराध नहीं है
मैं सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले का स्वागत करती हूं। समलैंगिकता कोई अपराध नहीं है। यह एलजीबीटी की आजादी है। यह निर्णय तो पहले ही हो जाना चाहिए था। अब एलजीबीटी की आजादी में कोई कानूनी अड़चन नहीं है। ये लोग इज्जत के साथ रह सकते हैं पर सोशल स्टेटस पाने की एक और लड़ाई इन्हें लड़नी होगी। जजमेंट पर वह कहती हैं, “दि रेनबो ऑफ इंडियन डेमोक्रेसी एंड कांस्टीट्यूशन शाइंस फाइनली।“
अन्य मनुष्यों की तरह समलैंगिकों का भी जीवन है
सुप्रीम कोर्ट का 377 पर जजमेंट स्वागत योग्य है। लोकतांत्रिक ढांचे में हरेक को यह अधिकार है कि वह पूरे सम्मान से जीवन व्यतीत करे। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मौलिक अधिकार की श्रेणी में आता है। अन्य मनुष्यों की तरह समलैंगिकों का भी जीवन है। शुभाश्री सवाल उठाती हैं कि यदि लिव इन रिलेशनशिप स्वीकार्य है तो थर्ड जेंडर क्यों नहीं? लोगों के माइंडसेट को बदलने की जरूरत है। ये अन्य लोगों से अलग हो सकते हैं पर प्रकृति ने उन्हें भी मानव जीवन की तरह जीने का अधिकार दिया है।
तहे दिल से फैसले का स्वागत
इस फैसले से किन्नरों का सामाजिक सशक्तीकरण होगा। यह जजमेंट ऐसा आक्सीजन है जो हमें सम्मान भी दिलाएगा और जिंदगी जीने की वजह भी। हमारा देश भी दुनिया का पहला देश बन गया है जहां कि अदालत ने किन्नरों को सम्मान दिलाने के लिए सरकार को कल्याणकारी कार्यक्रम बनाने के लिए एक तरह से निर्देशित किया है। धन्यवाद देते हैं सुप्रीमकोर्ट को जिसने हमारे समुदाय के दर्द को महसूस किया। इस फैसले का पूरा किन्नर समाज तहे दिल से स्वागत करता है।
नैतिक मान्यता भी मिले
उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दे दी है। पर सवाल यह है कि जब तक इसे नैतिक मान्यता नहीं मिलेगी, तब तक समलैंगिकों को नीची निगाह से देखा जाता रहेगा। उनके लिए यह एक त्रासदी हो सकती है। दूसरे शब्दों में कह लो तो सामाजिक ढांचे में रहते हुए सम्मान पाना। क्योंकि अब तक तो वह सार्वजनिक रूप से सामने ही नहीं आते थे। अब यहां से हमारे सहिष्णुता का नया अध्याय शुरू होगा।