भोपाल

कोरोना के बीच 12 लाख कुपोषित बच्चों को बचाना भी बड़ी चुनौती

– छोटे जिलों में बड़ा खतरा: घरों तक भेजा जा रहा रेडी टू ईट पोषण- आदिवासी जिलों में कोरोना से बचाव की तैयारी

भोपालApr 26, 2020 / 09:55 pm

anil chaudhary

aaganbadi

भोपाल. प्रदेश के आदिवासी जिलों में 12 लाख से ज्यादा कुपोषित बच्चों को बचाने की बड़ी चुनौती सरकार के सामने है। इनमें से सवा लाख बच्चे अतिकुपोषित हैं। खंडवा, खरगौन, धार, उमरिया और अलीराजपुर जिले तक कोरोना ने दस्तक दे दी है। इन जिलों में कुपोषित बच्चों की संख्या ज्यादा है। सरकार यहां हितग्राही के हर घर तक रेडी टू ईट पोषण आहार पहुंचा रही है। वहीं, आदिवासी विधायकों ने शिकायत की है कि पोषण आहार उनके क्षेत्रों में नहीं पहुंचा है।
– इन जिलों में सबसे ज्यादा कुपोषण
धार, बड़वानी, शिवपुरी, खरगौन, सतना, रीवा, मुरैना, सागर, अलीराजपुर, छपतरपुर, छिंदवाड़ा, झाबुआ, गुना, ग्वालियर और जबलपुर।

– पोषण आहार को लेकर सरकार के कदम
छह माह से छह साल तक के बच्चों और धात्री माताओं को तीन सप्ताह का टेक होम राशन एक साथ।
टोटल लॉकडाउन की अवधि में रेडी टू ईट पूरक पोषण आहार।
पोषण आहार तैयार करने में शामिल सभी सदस्यों का मेडिकल स्क्रीनिंग
रेडी टू ईट पोषण आहार में सत्तू, लड्डू, चूड़ा प्रतिदिन 200 ग्राम के मान से छह दिन के लिए 1200 ग्राम और तीन सप्ताह के लिए 3600 ग्राम और धात्री माताओं को तीन सप्ताह के लिए प्रतिदिन 250 ग्राम के मान से तीन सप्ताह के लिए 4500 ग्राम पोषण आहर।
रेडी टू ईट पोषण तैयार करने में शामिल सभी लोगों का मेडिकल चैकअप और स्वच्छता के मापदंड अनिवार्य।

 

– कम होती है रोग प्रतिरोधक क्षमता
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. शीला भाम्बेल का कहना है कि सामान्य बच्चों की तुलना में कुपोषित बच्चों में किसी भी तरह का संक्रमण होने की आशंका ज्यादा रहती है। इसकी सबसे बड़ी वजह उनका कमजोर इम्यून सिस्टम है। उन्होंने कहा कि ये अच्छी बात है कि कोरोना संक्रमित लोगों में बच्चों की संख्या बेहद कम है। फिर भी आदिवासी जिलों में सरकार पर निर्भरता के साथ लोगों को भी सुलभ पोषण पर ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा। ये पोषण उनके आस-पास ही उपलब्ध है जिसे घरेलू उपाय कहते हैं।
– पोषण आहार का विकेंद्रीकरण जरूरी
भोजन का अधिकार के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सचिन जैन कहते हैं कि कोरोना की आपदा के बाद सरकार को पोषण आहर के विकेंद्रीकरण की तरफ ध्यान देना होगा और इसे हमेशा के लिए अनिवार्य करना होगा। गांव में ही स्व-सहायता समूहों के जरिए पोषण आहार तैयार हो और हितग्राहियों तक पहुंचे, ताकि कभी इस तरह के लॉकडाउन के दौरान पोषण का संकट पैदा न हो। सस्ते राशन में भी आटा, चावल के अलावा दाल, तेल और शक्कर जैसी चीजें शामिल करनी पड़ेंगी। सरकार को इसकी मॉनिटरिंग पर खास फोकस करना होगा क्योंकि कई जगहों से पोषण आहार न मिलने की शिकायतें आ रही हैं।
– सरकार को लिखे पत्र
कांग्रेस के आदिवासी विधायक डॉ. हीरा अलावा ने कहा कि इस संबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखे हैं। सरकार को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना होगा, क्योंकि यदि कोरोना गांव तरफ आया तो यहां स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में हालात मुश्किल भरे हो जाएंगे। जहां कुपोषण ज्यादा है वहां पोषण आहार वितरण की निगरानी भी करनी होगी। अलावा ने कहा कि आदिवासी इलाकों में पोषण आहार नहीं पहुंच रहा है।

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