यहां देखें एनसीआरबी की रिपोर्ट
सबसे अधिक 14 से 18 साल से कम उम्र के बच्चों की आत्महत्या के मामले हैरान करते हैं। पिछले तीन वर्षों में देश में 24 हजार से अधिक बच्चे अपना जीवन खत्म कर चुके हैं। देश में मध्यप्रदेश सबसे आगे हैं। यहां 3115 बच्चों ने आत्महत्या की है।
यह भी पढ़ेंः NCRB report: छोटी-छोटी बातों और महंगे शौक ने 18 से 30 साल के युवाओं को बना दिया अपराधी
एमपी सबसे आगे
मध्यप्रदेश | 3,115 |
पश्चिम बंगाल | 2,802 |
महाराष्ट्र | 2,527 |
तमिलनाडु | 2,035 |
क्या कहते हैं एनसीआरबी के आंकड़े
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने हाल ही में संसद में बच्चों की आत्महत्या से संबंधित डाटा प्रस्तुत किया था। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 14-18 वर्ष के आयु वर्ग के 24,000 से अधिक बच्चों ने 2017 से लेकर 2019 तक यानी पिछले दो सालों में अपना जीवन खत्म कर लिया। इनमें परीक्षा में असफल होने के चार हजार से ज्यादा मामले हैं।
मध्यप्रदेश के छतरपुर के इस बच्चे ने फ्री फायर गेम की लत में अपनी मां के बैंक खाते से 40 हजार रुपए गंवा दिए। क्योंकि बच्चा अपनी मां के ही मोबाइल फोन पर गेम खेलता था। जब बच्चे को अहसास हुआ कि उसने गलत कर दिया है और माता-पिता को बताने में डरने लगा तो 12 साल के इस छोटे से बच्चे ने हिन्दी और अंग्रेजी में मासूमियत भरा सुसाइड नोट लिखा और फांसी का फंदा लगा लिया।
माता-पिता की अहम जिम्मेदारी
मध्यप्रदेश के जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि बच्चों की आत्महत्या के पीछे कारण कोई भी हो, इसके पीछे माता-पिता की बड़ी जिम्मेदारी है। क्योंकि बच्चों और माता-पिता के बीच संवाद अहम कड़ी होता है। बच्चों के साथ लगातार बातचीत करते रहना, घर का माहौल बच्चों के अनुकूल रखना अहम होता है। जितने अच्छे से आप बच्चे से व्यवहार करेंगे, बच्चे का व्यक्तित्व उतना ही अच्छा उभरकर आएगा। बच्चे गलती कर सकते हैं, क्योंकि वे छोटे हैं, लेकिन घर का वातावरण और माता-पिता का व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि बच्चों के मन में अपनी बात रखने या समस्या बताने का डर नहीं होना चाहिए। यदि बच्चा बेहिचके अपनी गलती व्यक्त कर सकता है तो बच्चों को ऐसे कदम उठाने से रोका जा सकता है।