घर में पैरेंट्स अपने बच्चे से कभी न करें ये उम्मीदें, डिप्ररेशन की हो सकती है शिकायत

घर में पैरेंट्स अपने बच्चे से कभी न करें ये उम्मीदें, डिप्ररेशन की हो सकती है शिकायत

<p> Children </p>

भोपाल। हर माता-पिता अपने बच्चों के बेहतर भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। वे चाहते हैं कि उनका बच्चा हर मामले में परफेक्ट हो। वे अपने बच्चों से काफी कुछ अपेक्षाएं और उम्मीदें पाले रहते हैं लेकिन बच्चों से परफेक्शन की उम्मीद पाले रखना बच्चों के हित में नहीं है। हर मामले में बच्चों को परफेक्शन के मापदंड पर मापना समझदारी नहीं है। शहर की काउंसलर शबनम खान बताती है कि पैरेंट्स की बच्चों के मामले में परफेक्शन की सोच बच्चों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है। आप भी अपने बच्चों को लेकर ऐसी ही सोच रखते हैं तो संभल जाएं।

हर हाल में जीत

अगर आप अपने बेटे या बेटी से हर हाल में कामयाब होने की अपेक्षा रखती हैं तो आपको थोड़ा सावधान होना चाहिए। हर हाल में जीतने की बच्चों से उम्मीद उनके लिए मुसीबत का कारण बन जाती है। बच्चे हर क्षेत्र में कामयाबी के लिए पूरा जतन करते हैं और समय-समय पर वे कामयाब भी होते हैं लेकिन कई मौके ऐसे भी होते हैं जब वे अपेक्षित नतीजे हासिल नहीं कर पाते। ऐसे में भी अगर आप हर हाल में जीतने की सोच रखते हैं तो यह सोच आपके बेटे या बेटी को मनोरोगों की तरफ बढ़ा सकती है। बच्चा आपकी अपेक्षाओं पर खरा न उतरने पर डिपे्रशन में आ सकता है।

खुशी से दूर

परफेक्शनिस्ट पेरेंट्स के बच्चों में यह भी देखने को मिलता है कि वे अपने काम के साथ खुश कम ही रहते हैं। उनके सिर पर पेरेंट्स की उम्मीदों का बोझ ऐसा हावी रहता है कि वे अपने काम का सही लुत्फ ले ही नहीं पाते। उनके लिए उनका बेहतर रिजल्ट ही मकसद बन कर रह जाता है। वे अपने काम का विश्लेषण करने या सफलता की सोच में ही उलझे रहते हैं। ऐसे में बच्चे हर एक काम में दबाव सा महसूस करते हैं। हर एक काम के पीछ वे एक ही तरह का नजरिया लेकर चलते हैं। यह दुष्प्रभाव होता है पेरेंट्स की इस सोच का कि मेरा बेटा या बेटी हर काम में परफेक्ट हो।

कमजोर आत्मविश्वास

हरदम बच्चों पर पेरेंट्स की उम्मीदों का बोझ उनके स्वाभिमान और आत्मविश्वास को कमजोर करने लगता है। हर बार बेहतर रिजल्ट की उम्मीद से बच्चे अपने काम को कमजोर आंकने लगते हैं। अपने काम पर उनका भरोसा धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है। छोटे-छोटे कामों पर पेरेंट्स की तरफ से शाबासी या उत्साहवर्जन न होने से वे हीन भावना के शिकार भी होने लगते हैं। उनके व्यक्तित्व में कमजोरी आना शुरू हो जाती है।

अलगाव की भावना

बच्चे से अपेक्षाओं का बड़ा बोझ उनमें अलगाव की भावना भी पैदा कर सकता है। जब बच्चे को लगने लगता है कि उससे हर कोई बेहतर से बेहतर रिजल्ट की उम्मीद करता है तो वह खुद को इस सब माहौल से अलग सा करने लगता है। वइ इन उम्मीदों और अपेक्षाओं के बोझ तले दबा सा महसूस करने लगता है और अलगाव के भाव उसमें पनपने लगते हैं। उसके छोटे और अन्य कामों की गणना न होने पर भी उसमें निराशा के भाव पनपने लगते हैं और वह खुद को अलग-थलग महसूस करता है।

 
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