कोर्ट ने महिला हवलदार सहित 2 पुलिस आरक्षकों को भेजा जेल, डीएसपी ने लगाई अग्रिम जमानत अर्जी

महिला के खिलाफ फर्जी मुकदमा लगाकर रफा—दफा करने के लिए मांगी थी 5 लाख रिश्वत

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भोपाल. महाराष्ट्र निवासी महिला के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज कर मामले को रफा दफा करने के एवज में 5 लाख रूपए की रिश्वत के मामले में अदालत ने साइबर क्राइम में पदस्थ महिला हवलदार इशरत जहां, इंद्रपाल सिंह और भट्ट की जमानत अर्जी खारिज कर जेल भेज दिया गया है। विशेष सत्र न्यायाधीश लोकायुक्त अमित रंजन समाधिया ने मंगलवार को यह आदेश दिए हैं।
लोकायुक्त पुलिस ने मंगलवार को चार आरोपियों के खिलाफ जिला अदालत में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत चालान पेश किया था ।मामले में आरोपी बनाए गए डीएसपी दीपक ठाकुर चालान पेश होने की सूचना के बावजूद कोर्ट नहीं पहुंचे, उनकी ओर से अग्रिम जमानत अर्जी पेश की गई। अर्जी पर बुधवार को सुनवाई होगी।
चालान पेश होने की सूचना पर महिला हवलदार इशरत जहां और दोनों आरक्षक कोर्ट पहुंचे थे। अदालत में तीनों की ओर से जमानत की मांग को लेकर अर्जी दायर की गई। अदालत ने तीनों की जमानत अर्जी खारिज कर दी।कोर्ट के अनुसार मामला गंभीर प्रकृति का है ऐसे मामलों में जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता। मामले के अनुसार वर्ष 2015 में डीएसपी ठाकुर सहित अन्य आरोपियों ने साइबर क्राइम थाने में महाराष्ट्र निवासी महिला के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज किया था। बाद में इसे रफा-दफा करने के लिए फरियादी महिला से 500000 की रिश्वत मांगी थी। महिला की शिकायत पर लोकायुक्त पुलिस ने चारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।
मुकदमा निरस्त कराने सुप्रीम कोर्ट तक गई

इन मां-बेटी ने खुद के खिलाफ फर्जी मुकदमा खारिज कराने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। जून 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने न केवल उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे को निरस्त कर दिया था, बल्कि राज्य सरकार को उन दोनों को 10 लाख रुपए मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि स्वतंत्रता की अपनी पवित्रता होती है। कोर्ट ने कहा था कि इन दोनों के खिलाफ मजिस्ट्रेट की अदालत में चल रहे मुकदमे में भारतीय दंड संहिता की धारा-420 (धोखाधड़ी) के अवयव का अभाव है, इसलिए मुकदमे को निरस्त किया जाता है।
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