एक माह बाद पता चला कि मिट गया है मांग का सिंदूर, अब मुफलिसी में मीरा

-दो जून की रोटी के भी लाले

<p>एक माह बाद पता चला कि मिट गया है मांग का सिंदूर, अब मुफलिसी में मीरा</p>
भरतपुर. वह हर दिन राह तकती थी कि उसका पति घर लौट आएगा। सांझ ढले वह बच्चों को यही दिलासा देती कि ‘पापाÓ दो वक्त की रोटी कमाकर घर लौट रहे होंगे, लेकिन कुदरत ने उसके साथ ऐसा क्रूर मजाक किया है, इसकी उसे भनक तक नहीं थी। उसे करीब एक माह बाद पता चला कि उसकी मांग का सिंदूर उजड़ गया है। पति के अंतिम दर्शन नहीं करने का दर्द उसे खूब साल रहा है। यह पीड़ा है शहर के तूफानी मोहल्ला निवासी मीरा की।
मीरा का पति राजकुमारी पल्लेदारी करने का काम करता था। गत 28 फरवरी को वह घर से कुछ काम करने की कहकर निकला था। जघीना गेट के पास पटरी पार करते समय ट्रेन की चपेट में आने से उसकी मौत हो गई। पुलिस उसकी शिनाख्तगी के प्रयास किए, लेकिन उसकी पहचान नहीं हो सकी। ऐसे में पुलिस ने ही राजकुमार का अंतिम संस्कार कर दिया। अब तीन अप्रेल को इसकी खबर मीरा को हुई तो उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। मीरा के दो बच्चे हैं। साथ ही मीरा की वृद्ध सास भी उसके साथ रहती है। घर में कमाने वाला सिर्फ राजकुमार ही था। अब यह परिवार दाने-दाने को मोहताज है। गर्भवती मीरा बच्चों का पेट पालने की खातिर इधर-उधर मदद की गुहार लगा रही है।
फोटो से की मीरा ने शिनाख्त

मीरा ने बताया कि 28 फरवरी को उसके पति को मजदूरी नहीं मिली तो वह शाम को पांच बजे इसी उम्मीद में घर से निकला कि शायद कोई काम मिल जाए तो बच्चों के लिए रोटी का जुगाड़ हो जाए, लेकिन राजकुमार रात्रि 10 बजे तक घर नहीं लौटा तो परिजनों को चिंता हुई। इसके बाद उसकी इधर-उधर खोज की गई। सभी रिश्तेदारियों में पूछताछ की गई, लेकिन उसका कहीं पता नहीं चल सका। इसके बाद परिजन जीआरपी थाने पहुंचे तो उन्हें पता चला कि राजकुमार की 28 फरवरी को ही मौत हो चुकी है। जीआरपी ने मृतक राजकुमार का फोटो खींच रखा था। तस्वीर से परिजनों ने उसकी शिनाख्त की।
आरटीई से शिक्षा पा रहे बच्चे

मीरा ने बताया कि उसकी बेटी करीब 10 साल एवं बेटा नौ साल का है। आरटीई के तहत किए आवेदन में उनका चयन एक निजी स्कूल में हो गया, लेकिन अब बच्चों को पढ़ाना तो दूर अब खाने के भी लाले पड़ रहे हैं। मीरा का कहना है कि उसके परिवार का आसरा सिर्फ राजकुमार था। अब परिवार का कोई सहारा नहीं है।
मदद से भर रहा पेट

मीरा बताती हैं कि कमाने वाला परिवार में कोई नहीं रहा है। ऐसे में परिवार का गुजारा लोगों की मदद के आधार पर चल रहा है। हाल ही में मीरा मदद की आस लेकर स्वास्थ्य मंदिर संस्थान के डॉ. वीरेन्द्र अग्रवाल के पास पहुंची। इस पर संस्थान की ओर से मीरा के परिवार को कुछ खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई है। गर्भवती मीरा को उम्मीद है कि अन्य लोग भी उसकी मदद को आगे आएंगे, इससे उसके परिवार का गुजारा हो सके।
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