यहां खननमाफिया का ऐसा राज…पुलिस, खनिज विभाग व प्रशासनिक तंत्र से लेकर हर कोई रोकने में नाकाम

-पुलिस, खनिज विभाग व प्रशासनिक तंत्र से लेकर हर कोई रोकने में नाकाम-जिले के पहाड़ी, भुसावर, बयाना, रूपवास इलाके में अवैध खनन का बड़ा नेटवर्क, प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित केंद्रीय विशेषाधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) भी कर रही है दौरा

<p>यहां खननमाफिया का ऐसा राज&#8230;पुलिस, खनिज विभाग व प्रशासनिक तंत्र से लेकर हर कोई रोकने में नाकाम</p>
पहाड़ी/रुदावल. जिले के बयाना, पहाड़ी, भुसावर, रूपवास समेत अन्य इलाकों में खननमाफिया का नेटवर्क इतना हावी हो चुका है कि पुलिस, खनिज विभाग व प्रशासनिक तंत्र भी उसे तोड़ पाने में फेल साबित हो चुका है। यही कारण है कि इनके गठजोड़ से ही यह नेटवर्क अब हर माह सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि पहुंचा रहा है। सरकारी कागजों में जिन लीजों को निरस्त किया जा चुका है, उन्हें भी खननमाफिया गिरोह समाप्त करने में जुटा हुआ है। कितने ही स्थानों पर पहाड़ गायब होते दिख रहे हैं। जबकि ऑफिसों में बैठे अफसरों को अवैध खनन नजर ही नहीं आता है।
पहाड़ी इलाके में धड़ल्ले से चल रहे हैं अवैध खनन का मामला किसी से छिपा नहीं है। रसूखदारों के प्रभाव और मिलीभगत के साए में पनप रहे इस अवैध कारोबार की जड़ खोदने में खनिज विभाग से लेकर प्रशासन और पुलिस अब तक पंगु साबित हुए हैं। दिखावे के लिए कार्रवाई शुरू से की जाती रही हैं, थानों में मुकदमे भी दर्ज हुए लेकिन कभी इस पर लगाम लग नहीं सकी। अगर यह कहा जाए कि अवैध खनन पर कभी लगाम लगाने के लिए वास्तव में काम ही नहीं किया गया तो यह कोई झूठ नहीं होगा। सिस्टम की मूक स्वीकृति ने इस अवैध कारोबार को हमेशा परवान पर ही चढ़ाया है। छपरा के पहाड़ में वर्ष 2005 में आवंटन के लिए लगाई आधा दर्जन से अधिक लीज निरस्त हो चुकी हैं, लेकिन हकीकत मे उन पर आज भी खनन अवैध रूप से जारी है। छपरा का पहाड़ गंगोरा गांव तक सटा है। इसमें गिनती की लीजें वैध है, लेकिन पहाड़ का शायद ही कोई हिस्सा हो जहां विस्फोट के धमाकों से ये छलनी नजर न आता हो। ऐसे ही हालात धोलेट व नांगल के खसरा नम्बर 162 में वैध लीजों के बीच में पड़ी खाली जगह वह छपरा में 2003 व 2005 में निरस्त लीजों में भी लम्बे अरसे से अवैध खनन हो रहा है। खनिज विभाग यहां अवैध खनन रोकने के लिए कार्रवाई करता जरूर है लेकिन वो कभी अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाती ये बात अलग है। मतलब यह है कि विभाग के अफसर इधर कार्रवाई कर इलाके से निकलते है उधर अवैध खनन शुरू हो जाता है। वहीं दूसरी ओ कामां में वन संरक्षित क्षेत्र घोषित करने के बाद भी अवैध खनन बेलगाम हो चुका है। रात में लेवड़ा, सुन्हेरा समेत कई गांवों में अवैध खनन कर पत्थर चोरी किया जा रहा है। इसकी जानकारी वन विभाग को होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है।
ऐसे समझिए अवैध खनन की कहानी

सरकारी सिस्टम के अवैध खनन को संरक्षण के तमाम सबूत मौके पर छलनी पड़ी पहाडिय़ां चीख- चीख कर दे देंगी। जमीनी हालात बताने के लिए काफी हैं कि इलाके में अवैध खनन चलते चलते एक लंबा अरसा बीतने को है, लेकिन कागजों में अभी भी वो ही अज्ञात के खिलाफ अवैध खनन के रस्म अदायगी वाले मुकदमे दर्ज करने की सरकारी परम्परा चल रही है। कई बार तो अवैध खनन के मुकदमों की स्क्रिप्ट ऐसी लिखी जाती है कि मुकदमा भी दर्ज हो जाए और माफिया का बाल भी बांका नहीं हो। इसमें सत्ता, पुलिस, प्रशासन व खनिज विभाग का गठजोड़ बहुत बारीकी से काम करता है। पिछले दिनों नांगल में की गई कार्रवाई में खनन माफिया को संरक्षण देने के लिए अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया। माफिया ने गाधानेर के चारागाह के पहाड़ को भी छलनी कर दिया है। हाल में 15 सितम्बर को जिला पुलिस अधीक्षक के निर्देशन में अवैध खनन के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की गई, लेकिन अंजाम तक अभी भी नहीं पहुंची। खनन माफिया ने अवैध खनन के साथ फर्जी ई- रवन्ना, रास्ते के नाम पर वसूली, क्रशरों पर बन्धी मांगने, लूटपाट की घटनाओं को अंजाम देना भी शुरू कर दिया है। इनके खिलाफ कार्रवाई करने में पुलिस के अधिकारी भी कन्नी काटते हैं।
यहां अवैध को वैध बनाने का चलता है खेल

खण्डा बोल्डर के लिए भुसावर एवं पहाड़ी क्षेत्र सुर्खियों में रहता है तो वहीं रूपवास एवं बयाना उपखण्ड खण्डा बोल्डर के साथ साथ सैण्ड स्टोन के कारोबार के लिए अपनी पहचान रखता है। रूपवास एवं बयाना उपखण्ड में सैण्ड स्टोन एवं खण्डा बोल्डर का कारोबार अवैध रूप से बड़े पैमाने पर किया जाता है। इस कारोबार को रोकने के लिए पिछले काफी समय से प्रशासनिक स्तर पर प्रयास किए गए है लेकिन प्रशासन के कड़े रुख के बाद भी अवैध खनन को रोकना मुश्किल भरा काम रहा है। रूपवास में बंशी पहाड़पुर इलाके में सिर्रोद, छऊआ मोड, तिघर्रा, महलपुर चूरा, वन क्षेत्र के गेट नम्बर 22 में सैण्ड स्टोन की खदानें है जहां से बेशकीमती पत्थर निकलता है। इन खदानों में सिर्रोद क्षेत्र की कुछ खदानों को छोड़कर अधिकांश वन क्षेत्र एवं खातेदारी भूमि में है वहीं करीब चार दर्जन खदानों को पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिल सकी है इसके बाद भी यहां अवैध रुप से सैण्डस्टोन की निकासी की जाती है। यहां होने वाले अवैध खनन को करने वाले प्रभावशाली एवं राजनैतिक सरंक्षण मिले होने के कारण बेरोकटोक खनन करते है और कार्रवाई के दौरान गरीब तबके के लोगों प्रशासन की गिरफ्त में आ जाते है। सवाल यह है कि पुलिस की ओर से खनन क्षेत्र से लेकर रीको क्षेत्र तक के रास्ते में पुलिस थाने एवं पुलिस चौकी होने के अलावा चैकपोस्ट नाके स्थापित किए जाने के बाद भी चोरी छिपे पत्थर की निकासी कैसे हो पा रही है वहीं बयाना उपखण्ड के बंध बारैठा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सैण्ड स्टोन की अवैध निकासी की जाती है। इसके अलावा खण्डा बोल्डर के रुप में भी यहां अवैध रुप से खनन जारी है। रूपवास क्षेत्र के रुदावल-रूपवास मार्ग एवं मठ बदलेश्वर-रूपवास मार्ग पर खण्डा पत्थर की निकासी होती है और यह खण्डा बोल्डर क्षेत्र में लगी क्रशर प्लांटों तक पहुंचने के बजाए भरतपुर, कुम्हेर एवं मथुरा तक सप्लाई होता है।
तभी ऐसे थानों से रहता है खाकी का लगाव

यह भी सच है कि खनन वाले इलाकों के थानों में ही नहीं बल्कि प्रशासनिक तंत्र में पोस्टिंग के लिए सिफारिश चलती है। खनन वाला इलाका होने के साथ ही सुकून भरी ड्यूटी होने से पुलिस कांस्टेबल से लेकर थाना प्रभारी तक के अधिकारी बयाना, पहाड़ी, भुसावर, रूपवास एवं रुदावल थाने के प्रति अधिक आकर्षित रहते है। जानकारों के अनुसार हर बार तबादला सूची निकलने के समय इन थानों पर अपनी तैनाती के लिए बड़ी बड़ी एप्रोच लगती है।नियमों के अनुसार नहीं होती कार्रवाईअगर अवैध खनन के खिलाफ कार्रवाई की जाती है तो नियम है कि खान का पिट मैजरमेंट कराकर खनन किए गए पत्थर और जारी किए गए रवन्ना की गणना कर जांच कराई जाए। खान में विभाग के रिकार्ड और जारी किए गए रवन्ना के हिसाब से कितना खनन किया गया और पिट मैजरमेंट के हिसाब से खनन की गणना कर खान में अधिक मात्रा में किए गए खनन और अवैध खनन की गणना कर संबंधित से वसूली की जानी चाहिए। सीमा में लगे आसपास के क्षेत्र में गणना कर विभागीय दरों से वसूली का प्रावधान है, लेकिन यहां जिले में विभाग सिर्फ खानापूर्ति ही करता है।
कहां से आ रहा है इतना विस्फोटक

सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि अवैध खनन लंबे समय से चल रहा है, लेकिन इसके लिए विस्फोटक किसके माध्यम से सप्लाई किया जा रहा है। यह बात हमेशा रहस्य बनी रहती है। चूंकि बताते हैं कि वैध और अवैध के बीच विस्फोटक भी डेढ़ गुना कीमत में आसानी से मिल जाता है। इसी कारण पिछले काफी समय से अवैध विस्फोटक के खिलाफ कार्रवाई नहीं होना भी संदेह के घेरे में आता है। बात चाहे जिले के किसी भी इलाके की हो, विस्फोटक की सप्लाई पर सवाल खड़ा होता ही रहा है। परंतु उससे भी बड़ी बात यह है कि संबंधित लाइसेंस धारक के खिलाफ जांच तक नहीं होती है, बल्कि मामला सामने आने पर भी खानापूर्ति कर दी जाती है।
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