भदोही. कालीन बुनकरों के लिये अच्छी खबर है। जल्द ही उनके काम में इजाफा होने की उम्मीद है। उनकी कारीगरी का उचित मूल्य मिलेगा और अधिक कमाई हो सकती है। अब तक उनके हाथों के बनाए मखमली कालीन ज्यादातर विदेशी बाजारों में ही बिकते रहे हैं। जहां इनकी मांग काफी अधिक है। पर जल्द ही भारत भी इन कालीनों का बड़ा बाजार बनकर उभर सकता है। दुनिया भर में भारतीय कालीन बेचने वाली विदेशी कंपनियां अब भाारत में भी अपनी कालीनें बेचेंगी। इससे कालीनों की खपत बढ़ने से रोजगार भी बढ़ने की उम्मीद है। इस दिशा अमेरिकी कंपनियों ने शुरूआत कर दी है।
अभी तक अमेरिकी कम्पनियां भारत से कालीनें आयात कर अपने देश मे बेचती थीं। लेकिन भारत में हुनरमंद कारीगर और सस्ता श्रम होने के चलते इनकी निगाहें यहां के बुनकरों और भारतीय बाजार पर भी है। एक्सपोर्ट के साथ ही देशी बाजार में डिमांड बढ़ने से काम बढ़ेगा। एक अमेरिकी कम्पनी पेरेनियल्स ने कालीन के क्षेत्र में देश मे 100 करोड़ का निवेश कर इसकी शुरुआत कर दी है। कालीनों की मार्केटिंग के उसने मुम्बई में एशिया का पहला शोरूम भी खोला है। अभी तक यह कम्पनी 12 देशों में भारतीय कालीनों का निर्यात करती थी।
बताते चलें कि भारत कालीन एक्सपोर्ट के मामले में दुनिया में बेहद अहम स्थान रखता है। देश भर से हर साल करीब 12 हजार करोड़ की कालीनें एक्सपोर्ट की जाती हैं। भदोही, वाराणसी, मिर्जापुर, जयपुर, पानीपत, कश्मीर, आगरा कालीन निर्यात के प्रमुख क्षेत्र हैं। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश के कालीन बेल्ट पूर्वांचल के भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी आदि जिलों का है। भारतीय कालीनों का सबसे बड़ा खरीददार अमेरिका है। देश से विदेशों में करीब 12 हजार करोड़ का निर्यात होता है।
जानकारों की माने तो भारत खुद यहां की कालीनों का एक बड़ा बाजार साबित हो सकता है। यहां पर हर वर्ग के खरीददार हैं। महंगे से महंगा और प्रीमियम कालीन हो चाहे सस्ती दोनों तरह के कालीन के खरीददार यहां भारी संख्या में हैं। हस्तनिर्मित कालीन महंगी होने के कारण यहां का ऊद्योग इसे विदेशी बाजारों में ही निर्यात करने पर अधिक जोर देता है। स्थानीय बाजार में सिर्फ गिने चुनी कम्पनियां ही कालीनों की बिक्री करती हैं। अगर कंपनियां देश के ग्राहकों को ध्यान में रखकर कालीन तैयार करती हैं तो आने वाले समय में कारपेट इंडस्ट्री को देश में ही एक बड़ा बाजार मिल जाएगा।
By Mahesh Jaiswal