न बादशाह की सवारी निकली, न भाभियों ने मारे कोडे, न रंग बरसा पाए देवर

सालों से आयोजित किए जा रहे बादशाह मेला एवं कोडा मार होली का आयोजन नहीं हुआ, कोरोना गाइड लाइन के चलते आयोजन टाले

<p>न बादशाह की सवारी निकली, न भाभियों ने मारे कोडे, न रंग बरसा पाए देवर</p>
ब्यावर. सालों से आयोजित किए जा रहे बादशाह मेला एवं कोडामार होली का आयोजन इस साल नहीं किया जा सका। कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए आयोजकों ने इस निर्णय को टाल दिया। हर साल होली के तीसरे एवं धुलंडी के एक दिन बाद बादशाह मेला एवं कोडामार होली का आयोजन होता है। आयोजन को लेकर शहर सहित आस-पास के क्षेत्रों से बडी संख्या में लोग शामिल होते है। पूरा शहर ही गुलालमय हो जाता है। आओ बादशाह…, आओ बादशाह की धुन दूर-दूर तक सुनाई देती है।अग्रवाल समाज की ओर से शहर में बादशाह की सवारी निकाली जाती है। बताया जाता है कि अकबर ने टोडरमल को एक दिन का राजा बनाया था। इस दौरान उन्होंने प्रजा के लिए खजाने के द्वार खोल दिए। टोडरमल अग्रवाल समाज का था। इसी कारण बादशाह इसी समाज से बनता है। किवदंती है बादशाह के हाथ से गुलाल लेने पर पूरे साल घर में बरकत होती है। इसी कारण हर समाज का तबका सवारी के आगे नाचते गाते चलने के साथ गुलाल लेने के लिए लालायित रहता है। बादशाह उपखण्ड अधिकारी के साथ गुलाल का युद्ध खेलने के बाद शहर की व्यवस्था सुचारू करने के लिए फरमान जारी करता है। बादशाह की सवारी के आगे बीरबल नाचते चलता है। इन आयोजन को देखने के लिए भैरुजी के खेजेड़े से बादशाह की सवारी शुरु होने के साथ ही लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। शाम को प्रशासन के साथ गुलाल युद्ध को देखने का नजारा भी अनूठा रहत है। इस दौरान बादशाह शहर की विविध समस्याओं को लेकर प्रशासन को फरमान सुनाता है। इसमें आमजन की विविध समस्या एवं शहर की आवश्यकताओं को प्रशासन ने पहुंचाने का जरिया भी सालों से बना है। इस साल कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते यह आयोजन नहीं हो सके। ऐसे में शहरवासियों ने एक दूसरे को बादशाह मेला की शुभकामनाएं देकर इस दिन को याद किया। इसी प्रकार बादशाह मेला शुरु होने से पहले ही मुख्य बाजार में कोडामार होली का आयोजन होता है। इसमें देवर भाभियों पर रंग बरसाते है। भाभियां देवरों पर कोडे मारती है। यह आयोजन भी कोरोना संक्रमण को देखते हुए इस साल टाल दिया गया।
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