…तो थम गए कदम, रुक गई सांस

अतीत का गौरव अनदेखी का शिकार : अजमेरी गेट का प्लास्टर गिरा, अन्य गेटों की भी हो रही अनदेखी, अंग्रेजों के समय बने भवन मांग रहे मरम्मत, रखरखाव की ओर नहीं दिया जा रहा ध्यान, डाक बंगला हो चुका है धराशाही

<p>&#8230;तो थम गए कदम, रुक गई सांस</p>
ब्यावर. शहर के गौरवशाली अतीत को अपने में समेटे ऐतिहासिक धरोहर की अनदेखी हो रही है। इन ऐतिहासिक इमारतों के रखरखाव की और ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अजमेरी गेट का गत दिनों प्लास्टर गिरने के बाद से मुख्यद्वार में बलिया लगाकर आवाजाही रोक दी गई है। इसके अलावा अन्य गेटों सहित सालों पहले बनी इमारतों के रखरखाव की आवश्यकता है। राजनीतिक कमजोर इच्छाशक्ति के कारण इन ऐतिहासिक इमारतों की ओर ध्यान नहीं दिया गया। यहीं कारण है कि अब अनदेखी के कारण जर्जर होती जा रही है। ब्यावर शहर को बसाए जाने के दौरान चार गेट बनाए गए। इसमें अजमेरी गेट, चांगगेट, सूरजपोल गेट एवं मेवाडी गेट शामिल है। इन गेटों का समय-समय पर रखरखाव नहीं होने से यह क्षतिग्रस्त होते जा रहे है। इन ऐतिहासिक दरवाजों के आस-पास भी अतिक्रमण होने के साथ ही मनमाने ढग़ से उपयोग शुरु हो गया। इससे इसकी सुंदरता भी प्रभावित हुई। अब इन दरवाजों के रखरखाव की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जबकि इनकी बनावट आज भी शहर की सुंदरता में चार चांद लगाती है।
डाक बंगला हो चुका है धराशाही…

आजादी से पहले बने डाक बंगला भी अनदेखी व समय पर रखरखाव की ओर ध्यान नहीं दिए जाने से धराशाही हो चुका है। आजादी के बाद सालों तक इस भवन में उपखंड कार्यालय संचालित होता रहा। यह भवन भी धराशाही होने के बाद से ही यहां पर मलबा पड़ा है। इस ऐतिहासिक धरोहर को वापस दुरुस्त करवाने की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके अलावा प्रशासन की ओर से ध्यान नहीं दिए जाने के कारण शहर का अधिकांश परकोटा टूट चुका है। कहीं स्थानों पर लोगों ने अपनी आवश्यकता के अनुरुप उसका उपयोग कर लिया है।
इनको भी मरम्मत की दरकारअमृतकौर चिकित्सालय का मुख्य भवन भी सालों पहले बना था। इस भवन को भी अब मरम्मत की दरकार है। चिकित्सालय प्रशासन ने कहीं पर इसके प्रस्ताव बनाकर भिजवाए लेकिन अब तक बजट नहीं मिल सका है। ऐसे में इस भवन की मरम्मत भी नहीं हो पा रही है। इससे वार्ड में भर्ती मरीजों को भी परेशानी हो रही है। बरसात के समय पानी टपकता रहता है। इसके बावजूद इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके अलावा पटेल उच्च माध्यमिक विद्यालय भवन, तहसील कार्यालय भवन एवं रोडवेज बस स्टैंड का कार्यालय भवन को भी मरम्मत की दरकार है। इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो इन भवनों का भी प्लास्टर गिरने लगेगा।
यह महत्व है अजमेरी गेट का

ब्यावर मध्य अरावली पर्वत शृंंखला के दक्षिण में दिवेर से लेकर उत्तर दिशा में नरवर तक का मेरवाड़ा स्टेट रहा है। इसकी सीमा उत्तर में खरवा तक, पूर्व में बघेरा तक, दक्षिण में दिवेर तक तथा पश्चिम में बबाईचा तक थी। वर्ष1823 में अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में सैनिक छावनी बनाई। अंग्रेज शासक कर्नल जार्जडिक्सन ने एक फरवरी 1836 को अजमेरी गेट के दाहिने गोखे के नीचे सनातन धर्म विधि से आधारशिला रख ब्यावर को नागरिक बस्ती की शक्ल दी। इस शहर की किलेबंदी करने में तीन वर्ष का समय लगा। वर्ष 1839 ई.में मेरवाड़ा स्टेट की 144 मेरवाड़ा बटालियन सेना के साथ ब्यावर शहर को मेरवाड़ा स्टेट की घोषणा के साथ मुख्यालय बनाया गया। 25 जून 1857 ई. तक डिक्सन मेरवाड़ा व अजमेर संयुक्त अंग्रेजी स्टेट के कमिश्नर व सुपरिन्टेन्डेंट रहे। एक मई 1867 ई.में ब्रिटिशराज ने, मेरवाड़ा स्टेट के ब्यावर में शासन प्रशासन की दृष्टि से कमिश्नरी राज (प्रजातांत्रिक गणराज्य) की स्थापना की। जो भारत की स्वतंत्रता 14 अगस्त 1947 तक अक्षुण्ण कायम रही। बाद में मेरवाड़ा व अजमेर संयुक्त रूप से एक स्वतंत्र भारत का केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया। सन् 1952 ई.में भारत सरकार की ओर से इसे मेरवाड़ा अजमेर संयुक्त नाम से ‘सÓ श्रेणी का स्वतंत्र प्रदेश घोषित किया गया। तब तक आबू तहसील भी ब्यावर मेरवाड़ा राज्य का अंग रही।
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