स्पेशल ट्रेन : मदर्स-डे का तोहफा हमें मिला, जिंदगी भर रहेगा याद

-मां तो पास नहीं है, लेकिन आज ये मां हमे अपनी मां से मिलाने ले जा रही है-अपनों से हजारों किमी दूर श्रमिकों की खुशी का नहीं रहा ठिकाना-श्रमिक स्पेशल ट्रेन से बाड़मेर से मोतीहारी के लिए रवानगी

<p>मदर्स-डे का तोहफा हमें मिला, जिंदगी भर रहेगा याद</p>
महेन्द्र त्रिवेदी/मूलाराम सारण
बाड़मेर. काफी दिनों से थके हारे श्रमिकों के चेहरे आज मानों खुशी से दमक रहे थे। परेशानी जरूर थी, लेकिन आज मन की मुराद पूरी हो रही थी। लॉकडाउन के डेढ़ महीने बाद रविवार को घर जाने के लिए ट्रेन मिल गई थी। बस एक झलक ट्रेन की देखने के लिए तेज धूप में सैकड़ों श्रमिक स्टेशन के भीतर जाने का इंतजार करते दिखे। आज उनका लम्बे इंतजार के बाद एक सपना पूरा हो रहा था। इसके कारण कईयों को विश्वास नहीं हो रहा कि वास्तव में आज वे अपने घर जा रहे हैं।
खुशी के पल में देखा जाता है कि बड़ों में एक बच्चा कहीं नजर आता है, यह दृश्य आज पूरी तरह से बाड़मेर स्टेशन पर दिखाई दिया। तेज धूप और कई दिनों से परेशानी तो मानों आज सभी भूल गए थे। बस इच्छा एक ही थी, घर पहुंचे जाएं और आज पूरी हो रही थी।
प्रवेश मिला तो दौड़ पड़े कोच की तरफ
स्टेशन पर टोकन की जांच के बाद जैसे ही प्रवेश मिला यात्री अपने कोच की तरफ दौड़ते दिखे। सीट पर बैठने के बाद एक लम्बी सांस ली और ऊपर वाले का शुक्रिया करते हुए बस एक ही बात मुहं से निकली चलो अब घर पहुंच जाएंगे।
परिजनों से मिलने की आस होगी पूरी
अधिकांश श्रमिक काम के सिलसिले में अकेले ही रहते हैं। काम नहीं होने पर उनको घर की याद ज्यादा सता रही थी। ट्रेन के संचालन की खबर से ही उनको परिवार के लोगों से मिलने की आस पूरी होती दिखाई दी, जो रविवार को आखिर उनको अपने घर पहुंचाती दिखी।
ट्रेन आज मां से कम नहीं
घर जाने की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। जब पता चला कि ट्रेन से जाएंगे तो बिहार में घर में तो मानो हर कोई बस हमारा ही इंतजार कर रहा है। ट्रेन आज मां जैसी ही है जो हमें अपनी छांव में घर पहुंचाएगी। मदर्स-डे पर इससे अच्छा तोहफा कोई नहीं हो सकता है, यह जिंदगी भर याद रहेगा।
-आलम
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अपने घर जैसा कुछ नहीं
हम यहां बहुत परेशानी में थे। यहां काम मिला इसलिए आए। काम नहीं है तो अब यहां रुकने से क्या मतलब है। अपने घर जैसा कुछ नहीं होता है। वहां जो भी काम मिलेगा कर लेंगे। कम से कम घर वालों के साथ तो जीएंगे। यहां तो पिछले 43 दिनों से कोई काम तक नहीं था।
-रियाज
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खुशी का नहीं ठिकाना
खुशी कितनी है, यह मत पूछिए। कोई ठिकाना नहीं हैं। हमें तो जल्दी है कि बस घर पहुंच जाएं। वहां काम नहीं होगा तो भी कोई गम नहीं, कम से कम अपना घर तो हैं। यहां हम किसके भरोसे पर हैं। काफी दिन रह लिए, अब घर जा रहे हैं तो बस एक ही बात हैं खुशी।
-सुभाष
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ये मेरा इंडिया है
आज मदर्स-डे के रूप में हमे उपहार मिला है। ये मेरा इंडिया है जो अपनों को कभी भी तकलीफ में नहीं देख सकता है। ऐसा कुछ भारत में ही हो सकता है। आज हम बहुत खुश है। वास्तव में जिंदगी हमें बहुत कुछ सीखाती है, बस हमें ऊपर वाले का शुक्रगुजार होना चाहिए, आज हम अपने घर जा रहे हैं, थैंक्यू इडिया।
-रोहित चौहान
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