बाराबंकी

चाइना-अमेरिका नहीं अब बाराबंकी में ही उग रही चिया सीड, रिटायर्ड फौजी हरिश्चंद्र की मेहनत को पीएम मोदी ने सराहा

मन की बात में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि हेल्‍थ अवेयरनेस से जुड़े लोगों में चिया सीड (Chia Seed) की मांग काफी ज्यादा है। भारत में इसे पहले बाहर से मंगाया जाता था।

बाराबंकीMar 01, 2021 / 12:29 pm

नितिन श्रीवास्तव

चाइना-अमेरिका नहीं अब बाराबंकी में ही उग रही चिया सीड, रिटायर्ड फौजी हरिश्चंद्र की मेहनत को पीएम मोदी ने सराहा

बाराबंकी. जनपद बाराबंकी के निवासी हरिश्चंद्र की मेहनत अब रंग लाई है। हरिश्चंद्र द्वारा की जा रही चिया सीड (Chia Seed) की खेती की कोशिशों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मन की बात (Man Ki Baat) कार्यक्रम में सराहा। अपने कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा कि हेल्‍थ अवेयरनेस से जुड़े लोगों में चिया सीड की मांग काफी ज्यादा है। भारत में इसे पहले बाहर से मंगाया जाता था, लेकिन अब देश में चिया सीड उत्‍पादन में आत्‍मनिर्भरता आ रही है। यूपी के बाराबंकी जिले में चिया सीड की खेती शुरू की गई है। पीएम ने कहा कि उनकी मेहनत इस खेती को भी बढ़ाएगी, साथ ही इससे देश को आत्‍मनिर्भर बनने में सहयोग भी मिलेगा।
पीएम मोदी ने सराहा

मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चिया सीड की खेती करने वाले जिस हरिश्चंद्र सिंह की बात की, वह और कोई नहीं, बल्कि एक रिटायर्ड फौजी और इस समय सुलतानपुर के जिला सैनिक कल्याण अधिकारी हैं। अभी तक चिया सीड की खेती चीन में सबसे ज्यादा होती है। इसके बाद अमेरिका में भी इसे खाने के लिए उगाया जाता है। वहीं अभी तक देश के मंदसौर और नीमच में इसकी खेती होती थी। लेकिन अब यूपी के बाराबंकी में पहली बार यह सिद्धौर के अमसेरूवा गांव में भी होने लगी है।
मिली काफी खुशी

वहीं चिया सीड की खेती करने वाले प्रगतिशील किसान हरिश्चंद्र सिंह ने कहा कि मन की बात में प्रधानमंत्री जी ने उनका नाम लिया, इसकी उन्हें काफी खुशी है। उन्होंने बताया कि चिया सीड की फसल रामदाना जैसी होती है जोकि 1500 से 1800 रुपये प्रति किलो की दर बिकती है। प्रति बीघा 75 हजार का खर्च आता है और शुद्ध मुनाफा डेढ़ से दो लाख रुपये तक होती है। चिया सीड अंतरराष्ट्रीय बाजार से सिर्फ ऑनलाइन ही मंगाया जा सकता है। इसकी खेती के लिए जलवायु हल्की ठंडी होनी चाहिए। चिया सीड से लड्डू, चावल, हलवा जैसे व्यंजन बनते हैं, जो वीआइपी भोजन में इस्तेमाल होता है। उन्होंने बताया कि किसान परंपरागत खेती छोड़कर नए तरीकों की फसल उगाएं, इससे उन्हें काफी फायदा मिलेगा।

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