मंजिल की प्राप्ति के लिए सीढिय़ों पर चढऩा जरूरी-आचार्य महेन्द्रसागर

धर्मसभा का आयोजन

<p>मंजिल की प्राप्ति के लिए सीढिय़ों पर चढऩा जरूरी-आचार्य महेन्द्रसागर</p>
बेंगलूरु.महावीर स्वामी जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ त्यागराज नगर में विराजित आचार्य महेंद्र सागर सूरी ने कहा कि संसार को विष वृक्ष कहा है। क्योंकि उसमें आपत्तियां बहुत हंै। यहां यंत्रवत सब कुछ चलता है। दूर रहते और ना चाहते हुए भी कठिनाइयां बहुत आती हैं। कष्ट घेर लेते हैं फिर सारे जीवन भर का क्रम हो जाता है, उन कठिनाइयों से लडक़र अपने लिए सुख सुविधा की स्थिति तैयार करना। इसी प्रयास में सारा जीवन बीत जाता है। जब पीछे मुडक़र देखते हैं तब पश्चाताप होता है कि यह जीवन कठिनाइयों में ही बीत गया, ना मिला सुख, ना पाई शांति, मस्तिष्क में सुखों की तृष्णा का अंबार लाद लिया। दुख का कारण क्या है यह विचारणीय बात है। भगवान महावीर प्रभु ने कहा अज्ञान ही दुख का कारण है और महात्मा बुद्ध ने भी कहा अविद्या दुख जननी, अज्ञान दुखों को जन्म देता है। सारे जीवन के क्रियाकलापों को जब हम प्रकृति की माया के साथ तौलते हैं तब पता चलता है कि संसार समष्टि के रूप जैसा था हमने उसे अज्ञानता वश में ऐसा ही वैसा ही नहीं लिया। वरन उसे अपने अनुकूल बनाने का प्रयत्न करते रहे। संसार इतना बड़ा है कि हम उसे अपने अनुकूल बना ही नहीं सकते थे। अपने इस अज्ञान का फल दुख रूप में मिला। दुख से बचने का ज्ञान का रास्ता ही युपयुक्त था। भीगी हुई लकडिय़ों को आग जला नहीं पाती। उसी प्रकार ज्ञान से भीगे मनुष्य को मानसिक दुख वेदना नहीं दे सकता है। संसार समुद्र है ज्ञान युक्ति उसकी नौका। जो इस नाव पर चढ़ लेता है उसके सांसारिक दुख भी मिट जाया करते हैं। सही ज्ञान की दशा में व्यक्ति कभी विचलित नहीं होता है। ज्ञान के द्वारा संसार की यथार्थ स्थिति जानने के कारण जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। सद्ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयास अवश्य किया जाना चाहिए। सीढिय़ां देखते रहना ही पर्याप्त नहीं है, मंजिल की प्राप्ति के लिए सीढिय़ों पर चढऩा भी जरूरी है।
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