बढ़ते कंटेनमेंट जोन सरकार के लिए बड़ी चुनौती

लॉकडाउन प्रतिबंध हटने के बाद कई मोर्चों पर खतरा बढ़ा

बेंगलूरु.
शहर बेंगलूरु में कंटेनमेंट जोन की बढ़ती संख्या सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बनती जा रही है। एक तरफ लॉकडाउन प्रतिबंध हटाए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ कंटेनमेंट जोन बढ़ते जा रहे हैं। इससे बृहद बेंगलूरु महानगरपालिका (बीबीएमपी) और सरकार दोनों की मुशिकलें बढ़ती जा रही हैं। राज्य के 52 कंटेनमेंट जोन में से अकेले बेंगलूरु में ही 26 हैं।
पिछले 22 मई को कुल 20 सक्रिय कंटेनमेंट जोन थे लेकिन एक सप्ताह के दौरान कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या बढऩे के साथ ही कंटेनमेंट जोन भी बढ़ गए। पिछले दो दिनों के दौरान शहर में 50 से अधिक कोविड-19 मरीजों की पुष्टि हुई है। इससे शहर में कुल संक्रमित मरीजों की संख्या 360 के ऊपर जा पहुंची है। इनमें से 115 मरीज अब भी सक्रिय हैं। लेकिन, चिंता की बात यह है कि नए कोरोना मरीज संपर्क के कारण संक्रमित हुए। इससे अधिकारियों के सामने कंटेनमेंट जोन बढ़ाने और मरीजों को अलग रखने की चुनौती है। अब मरीजों के संपर्क की निगरानी भी चुनौती बनती जा रही है क्योंकि लॉकडाउन खुलने से भीड़ बढ़ती जा रही है। सामुदायिक संक्रमण का खतरा भी मंडराने लगा है। बीबीएमपी आयुक्त बीएच अनिल कुमार ने कहा कि चुनौती यह है कि कैसे संपर्कों की निगरानी की जाए और तुरंत उन्हें क्वारंटाइन में भेजा जाए। उन्होंने कहा कि 1 जून के बाद कोरोना मामलों में तेजी आ सकती है।
कंटेनमेंट जोन के जैव अपशिष्ट का निपटान भी चुनौती
कंटेनमेंट जोन की बढ़ती संख्या के साथ चुनौतियां जैव अपशिष्ट (बायोमेडिकल कचरे) में हो रही वृद्धि से निपटने की भी है। हालांकि, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बीबीएमपी ने कहा है कि कंटेनमेंट जोन के जैव अपशिष्ट से निपटने के लिए उचित व्यवस्था की गई है। लेकिन, घरों और औद्योगिक स्थलों से मास्क और दस्ताने जैसे खतरनाक कचरे के से निपटने की भी चुनौती है। इनमें से अधिकांश खतरनाक कचरे रोजमर्रा के कचरे में मिल जाते हैं क्योंकि कचरा पृथक्करण की व्यवस्था दुरुस्त नहीं है। सुरक्षित रिसाइक्लिंग की व्यवस्था नहीं होने से सड़क पर कचरा बिखरने और वायरस के सार्वजनिक स्थलों पर फैलने का खतरा है। सरकार ने 8 जून से चरणबद्ध तरीके से धार्मिक स्थलों, मॉल, होटल और मेट्रो जैसी सार्वजनिक सेवाओं और अन्य गतिविधियों को फिर से खोलने का फैसला किया है। चूंकि, राज्य की अर्थव्यवस्था बेंगलूरु पर काफी हद तक केंद्रीत है इसलिए सरकार के पास जोखिम उठाने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है।
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