बरबादी के कागार पर पोल्ट्री उद्योग

एक लाख से अधिक मुर्गियां मारी गईं, कोरोना और लॉकडाउन से दोहरा झटका

बेंगलूरु.
कोरोना महामारी को लेकर लॉकडाउन से प्रदेश का मुर्गीपालन उद्योग बरबादी के कागार पर पहुंच गया है। राज्य के कई पोल्ट्री फार्म मालिक मुर्गियों को मार रहे हैं। पिछले एक सप्ताह के दौरान लगभग एक लाख मुर्गियों को मारा जा चुका है।
लॉकडाउन के कारण कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ जिससे पोल्ट्री फार्म चलाने वाले मुर्गियों को मारने के लिए विवश भी हुए हैं। मुर्गीपालन उद्योग से जुड़े डीलरों का कहना है कि शिवमोग्गा, कोलार सहित राज्य के अन्य जिलों में बड़े पैमाने पर मुर्गियां मारी जा रही हैं। कारोबार में तीव्र गिरावट आई है। ना तो ग्राहक हैं और ना ही मुर्गियों की आपूर्ति हो रही है। मुर्गीपालन उद्योग से जुड़ा हर कारोबारी संकट के दौर से गुजर रहा है। कई मुर्गीपालन उद्योग से जुड़े कारोबारियों ने भारी घाटा उठाया है।
चन्नपट्टण, रामनगर, आनेकल और इसके आसपास अपना कारोबार चलाने वाले एक कारोबारी ने कहा कि लगभग सभी फार्मों में 4-4 हजार मुर्गियों को मारने के लिए विवश हुए। लेकिन, वे अकेले नहीं हैं। उन्हें 64 ऐेेसे बड़े फार्मों के बारे में जानकारी है जिनके पास मुर्गियों को मारने के सिवा कोई विकल्प नहीं था। पिछले एक सप्ताह से एक लाख से अधिक मुर्गियां मारी जा चुकी हैं क्योंकि उन्हें रखना भारी पड़ रहा है। दरअसल, मुर्गियों को जिंदा रखने के लिए फीड की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही है। फीड के अभाव में अगर मुर्गियां और चूजे मरने लगे तो यह एक अलग बीमारी का कारण बनेगा।
एक फार्म मालिक ने कहा कि हर एक मुर्गी के लिए तीन दिन में एक किलो आनाज चाहिए। आनाज का भाव 32 रुपए प्रति किलोग्राम है। उनके फार्म में दो लाख मुर्गियां हैं। अब जबकि कारोबार पूरी तरह मंद पड़ा है तो इन्हें कैसे खिलाएं और कैसे बचाएं। इस उद्योग को दोहरा झटका लगा है। कोरोना के संक्रमण को लेकर एक तो लोगों ने चिकन खाना बंद कर दिया है दूसरा लॉकडाउन के कारण इनका परिवहन रोक दिया है। फार्म मालिक के मुताबिक पिछले एक महीने में उन्हें 15 लाख का नुकसान हुआ है और अगर स्थिति नहीं सुधरी तो हालात और बिगड़ेंगे। पोल्ट्री फार्म एसोसिएशन ने इस संदर्भ में पशुपालन एवं मत्स्य विभाग को एक ज्ञापन सौंपा है और इनके परिवहन की मांग की है।
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