दरअसल, रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने सार्वजनिक रूप से ट्वीट कर कहा है कि 700 किलोग्राम वजनी कार्टोसैट-2 एफ उपग्रह उसके उपग्रह के करीब आ गया था। दोनों भू-अवलोकन उपग्रह हैं। एजेंसी ने दावा किया कि यह घटना 27 नवम्बर को भारतीय समयानुसार सुबह लगभग 7.19 बजे घटी।
एजेंसियां आपस में चर्चा कर सुलझाती हैं ऐसे मसले: शिवन
इसरो अध्यक्ष के.शिवन ने ‘पत्रिका’ से बात करते हुए कहा कि ‘उपग्रह एक-दूसरे के करीब आते रहते हैं। ऐसा नियमित रूप से होता है। जब इनकी नजदीकियां किसी तरह खतरा बनती हैं तो दोनों अंतरिक्ष एजेंसियां इस पर आपस में चर्चा करती हैं और किसी एक उपग्रह के मैनुवर का फैसला किया जाता है। हम अपने उपग्रह के मैनुवर का फैसला तभी करेंगे जब उनके बीच की दूरी 150 मीटर से कम होगी।Ó उन्होंने कहा कि इसमें चिंता की कोई बात नहीं है। कई उपग्रह एक-दूसरे के करीब आते हैं। लेकिन, दूरियां खतरनाक हो जाती हैं तभी दोनों एजेंसियां एक-दूसरे से बात करती हैं। रूस और भारत के उपग्रहों के बीच की दूरी ऐसी नहीं थी। हाल ही में स्पेन के एक उपग्रह के साथ ऐसा ही हुआ था। अमूमन एजेंसियां इस तरह की समस्याएं आपस में सुलझा लेती हैं। गौरतलब है कि कार्टोसैट-2 एफ का प्रक्षेपण 12 जनवरी 2018 को पीएसएलवी सी-40 से किया गया था।
इसरो अध्यक्ष के.शिवन ने ‘पत्रिका’ से बात करते हुए कहा कि ‘उपग्रह एक-दूसरे के करीब आते रहते हैं। ऐसा नियमित रूप से होता है। जब इनकी नजदीकियां किसी तरह खतरा बनती हैं तो दोनों अंतरिक्ष एजेंसियां इस पर आपस में चर्चा करती हैं और किसी एक उपग्रह के मैनुवर का फैसला किया जाता है। हम अपने उपग्रह के मैनुवर का फैसला तभी करेंगे जब उनके बीच की दूरी 150 मीटर से कम होगी।Ó उन्होंने कहा कि इसमें चिंता की कोई बात नहीं है। कई उपग्रह एक-दूसरे के करीब आते हैं। लेकिन, दूरियां खतरनाक हो जाती हैं तभी दोनों एजेंसियां एक-दूसरे से बात करती हैं। रूस और भारत के उपग्रहों के बीच की दूरी ऐसी नहीं थी। हाल ही में स्पेन के एक उपग्रह के साथ ऐसा ही हुआ था। अमूमन एजेंसियां इस तरह की समस्याएं आपस में सुलझा लेती हैं। गौरतलब है कि कार्टोसैट-2 एफ का प्रक्षेपण 12 जनवरी 2018 को पीएसएलवी सी-40 से किया गया था।