कर्नाटक में ब्लैक फंगस के मामले बढ़े, अध्ययन के लिए विशेषज्ञ समिति गठित

समिति की प्राथमिकता संक्रमण के स्रोत का पता लगाना है। राज्य में अभी तक 97 मामलों के साथ मरीजों की पुष्टि हुई है।

<p>कर्नाटक में ब्लैक फंगस के मामले बढ़े, अध्ययन के लिए विशेषज्ञ समिति गठित</p>

– संक्रमण स्रोत का पता लगाना प्राथमिकता : सुधाकर
– राज्य में मिले कवक संक्रमण के 97 मरीज
– अस्पतालों के लिए मरीज की जानकारी देना अनिवार्य

बेंगलूरु. राज्य में कोविड मरीजों में बढ़ते ब्लैक फंगस (कवक संक्रमण) के मामलों को रोकने व समय रहते मरीजों को उपचार उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने विशेषज्ञों की अध्ययन समिति गठित की है। समिति की प्राथमिकता संक्रमण के स्रोत का पता लगाना है। राज्य में अभी तक 97 मामलों के साथ मरीजों की पुष्टि हुई है।

बेंगलूरु मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट में इएनटी विभाग के प्रमुख डॉ. एच. एस. सतीश समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं। समिति में मिंटो अस्पताल की बीएल सुजाता राठौड़ और नारायण नेत्रालय के डॉ भुजंग शेट्टी भी हैं। राज्य सरकार ने ब्लैक फंगस को नोटिफाइएबल डिसीज करार दिया है। इसका तात्पर्य यह है कि सभी अस्पताल इसके मरीजों की जानकारी सरकार को देंगे।

विशेषज्ञ समिति के साथ सोमवार को हुई बैठक के बाद स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ. के. सुधाकर ने कहा कि उन्होंने समिति को संक्रमण स्रोत का पता लगाने के लिए कहा है। ऑक्सीजन में अशुद्धता, ह्यूमिडिफायर या वेंटिलेटर सिस्टम उपकरण में समस्या के कारण अगर मरीज ब्लैक फंगस का शिकार हो रहे हैं तो इसका पता लगाना जरूरी है।

मंत्री ने बताया कि राज्य में रविवार तक ब्लैक फंगस के 97 मामले सामने आए हैं। बॉरिंग अस्पताल में सभी का प्रायोगिक तौर पर उपचार जारी है। उन्होंने लोगों से चिंतित नहीं होने की अपील करते हुए कहा कि यह संक्रामक बीमारी नहीं है। विशेषज्ञ समिति स्थिति का मूल्यांकन कर जल्द ही सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। कोरोना के कुछ मरीज इससे संक्रमित हुए हैं और पिछले साल की तुलना में इस बार ज्यादा मामले आए हैं। अस्पतालों से अब स्वस्थ होने वाले कोरोना मरीजों को इएनटी जांच के बाद ही छुट्टी दी जाएगी। सुधाकर ने कहा कि इस बात की संभावना है कि ऑक्सीजन दिए जाने के कारण स्वच्छता और प्रोटोकॉल का सही से पालन नहीं किए जाने के कारण भी ऐसा हो रहा हो। उन्होंने पारा मेडिकल कर्मचारियों से स्टारलाइज्ड पानी का ही उपयोग करने की अपील की। उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमित मधुमेह रोगियों में शुगर का स्तर नियंत्रित नहीं होने पर भी कवक संक्रमण का खतर बढ़ जाता है।

उन्होंने कहा कि लीपोजोमल एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन से मरीजों का उपचार जारी है। एक मरीज को 40-60 वायल की जरूरत पड़ती है। केंद्र सरकार ने 1050 वायल को मंजूरी दी है। इसमें से 450 वायल की आपूर्ति हो चुकी है। राज्य सरकार ने 20 हजार वायल के लिए आर्डर दिया है।
बैठक में मौजूद नारायण नेत्रालय के अध्यक्ष डॉ. भुजंग शेट्टी ने बताया कि अमूमन कोविड से ठीक होने के एक से दो सप्ताह बाद ब्लैक फंगस के मामले सामने आते हैं। मरीजों में ज्यादातर वैसे लोग हैं जिन्हें मधुमेह है और कोविड के उपचार के दौरान स्टेरॉयड का इस्तेमाल हुआ। कोविड व स्टेरॉयड के कारण रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। समय पर उपचार नहीं मिलने से फंगस नाक से आंखों तक पहुंचने की क्षमता रखता है और तेजी से फैलता है। मस्तिष्क चपेट में आ जाए तो उपचार बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। ज्यादातर मरीजों की उम्र 35-45 वर्ष है।

जिलों में भी उपचार की सुविधा
मरीजों के उपचार के लिए मैसूरु मेडिकल कॉलेज, शिवमोग्गा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस, गुलबर्गा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, कर्नाटक इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, मणिपाल स्थित कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज और मेंगलूरु स्थित वेनलॉक सरकारी अस्पताल को क्षेत्रीय केंद्र के रूप में चिन्हित किया गया है। ब्लैक फंगस के मरीज जल्द ही इन अस्पतालों में अपना उपचार करा सकेंगे।

कुछ अहम जानकारी
– बिना चिकित्सक की सलाह के स्टेरॉयड नहीं लेना चाहिए। होम आइसोलेशन में रहने वाले कोविड मरीजों को सरकार स्टेरॉयड नहीं दे रही है।
– सरकारी व निजी अस्पतालों में सामने आए मरीजों की जानकारी सरकार के पास है। सरकार सभी को उपचार उपलब्ध कराएगी।
– कोविड और ब्लैक फंगस के मरीजों का नि:शुल्क उपचार हो रहा है।

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