दैवीय प्रकोप से बचने कई गांवों में नहीं जलाते होलिका, दूसरे दिन सूखी होली खेलते हैं

रविवार को देशभर में होलिका जलाई जाएगी। बालोद जिले के कई ऐसे गांव हैं जहा अलग- अलग कारणों से होलिका नहीं जलाई जाती है। यह परंपरा इन गांवों में सैकड़ों वर्षों से है। कोरोना काल में गाइडलाइन के तहत होली खेली जाएगी।

<p>दैवीय प्रकोप से बचने कई गांवों में नहीं जलाते होलिका, दूसरे दिन सूखी होली खेलते हैं</p>
बालोद. रविवार को देशभर में होलिका जलाई जाएगी। बालोद जिले के कई ऐसे गांव हैं जहा अलग- अलग कारणों से होलिका नहीं जलाई जाती है। यह परंपरा इन गांवों में सैकड़ों वर्षों से है। कोरोना काल में गाइडलाइन के तहत होली खेली जाएगी। वहीं रविवार को विधि विधान से होलिका की पूजा कर मात्र 5 लोगों की उपस्थिति में होलिका दहन किया जाएगा। ग्रामीणों के मुताबिक कहीं दैवीय प्रकोप, तो कहीं होलिका जलाने से गांव में आग के गोले बरसने की घटना, कहीं और कारण से होलिका नहीं जलाते।
पहले लगती थी आग, तब से नहीं जलाते होलिका
गुरुर विकासखंड के सोहपुर में 151 साल से होलिका दहन नहीं किया गया है। ग्रामीणों ने बताया कि जब भी होलिका दहन किया जाता था तो गांव में आग के गोले बरसने लगते थे। किसी न किसी के घर में आगजनी की घटना होती थी। ऐसे में बुजुर्गों ने होलिका दहन नहीं करने का फैसला किया। सोहपुर के 60 वर्षीय पटेल तुकाराम सोरी ने बताया कि आगजनी से पूरा गांव परेशान था। ज्योतिषाचार्य ने गांव में हनुमान की मूर्ति स्थापित कर पूजा-अर्चना करने कहा। ग्रामीणों का दावा है यहां आज भी जमीन के अंदर घरों के जलने के अवशेष मिलते हैं। लोग होली के दिन सूखी होली मनाते हैं।
हैजा के कारण नहीं जलाते होलिका
गुंडरदेही ब्लॉक के ग्राम चंदनबिरही में 9 दशकों से होलिका नहीं जली। ग्रामीणों के मुताबिक गर्मी के दिनों में गांव में हैजा प्रकोप बन कर टूट पड़ता था, बच्चे मर रहे थे। यह बात है 1925 से पहले की है। ग्रामीण महिलाओं को गर्भ के समय गांव से बाहर भेजने लगे, लेकिन जब महिलाएं वापस आती थीं तो बच्चे मरने लग जाते थे। तब चंदनबिरही के जमींदार निहाल सिंह, जो गुंडरदेही के राजा थे। उन्होंने गांव में होली खेलना और जलाना बंद करा दिया, तब से ना ही होलिका जली और ना ही होली खेली गई।
झलमला में नहीं जलाते होलिका
बालोद जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग में स्थित ग्राम झलमला गंगा मैया स्थल के कारण पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध है, लेकिन होली पर होलिका नहीं जलाई जाती है, लेकिन दूसरे दिन रंग और गुलाल से होली खेली जाती है। ग्रामीण पालक ठाकुर का कहना है कि यह परंपरा 110 वर्षों से भी ज्यादा समय से चली आ रही है। उनके बुजुर्ग ने बताया कि होलिका दहन करने से गांव में कुछ बुरा हो जाएगा।
होलिका जलाने से लगती थी बोरतरा में आग, इसलिए बंद कर दहन करना
तार्रीभरदा. गुरुर विकासखंड के ग्राम बोरतरा में वर्षों से होलिका नहीं जलाई जाती। आज भी कोई इसका पुख्ता कारण नहीं जानता। ग्रामीण 82 वर्षीय फूलसिंह सिन्हा ने बताया कि गांव में होलिका दहन कब से नहीं होती, इसकी उन्हें जानकारी नहीं है। बुजुर्गों ने पहले बताया था कि होलिका दहन के दिन गांव में आग लगने जैसी घटना हुई थी, इस कारण होलिका दहन नहीं मनाने की परपंरा निभा रहे हैं।
नहीं होता पर्यावरण प्रदूषण
ग्राम के 68 वर्षीय एनुराम पटेल ने बताया कि गांव में होली का पर्व एकसाथ मिल कर मनाते हैं, लेकिन होलिका दहन नहीं करते। यह गांव की परपंरा है। बुजुर्गों की इस परपंरा को आगे भी निभाते रहेंगे। इससे गांव में लकड़ी जलाकर पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता। ग्राम के 70 वर्षीय नारायण सिन्हा ने बताया कि बुजुर्गों के बताए अनुसार गांव में होलिका दहन नहीं किया जाता, जिससे गांव में सुख, शांति बनी रहे। होली पर्व तो मनाया जाता है, लेकिन उनकी जानकारी में आज तक गांव में होलिका नहीं जलाई गई है।
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